नहीं सुधरेगा पाकिस्तान
विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई को भले ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी भलमनसाहत कहा हो, पर उनका और उनकी सेना का इरादा भारत के साथ अमन-चैन से रहने का कतई नहीं है. जम्मू-कश्मीर से लगी नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तानी सेना की लगातार गोलाबारी यही इंगित करती है. पुलवामा की घटना […]
By Prabhat Khabar Digital Desk |
March 4, 2019 7:07 AM
विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई को भले ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी भलमनसाहत कहा हो, पर उनका और उनकी सेना का इरादा भारत के साथ अमन-चैन से रहने का कतई नहीं है. जम्मू-कश्मीर से लगी नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तानी सेना की लगातार गोलाबारी यही इंगित करती है. पुलवामा की घटना के बाद अहम देशों और वैश्विक मंचों से भारत को मिला व्यापक समर्थन उसे रास नहीं आ रहा है.
पाकिस्तानी धरती पर बने आतंकी गिरोह जैशे-मोहम्मद के ठिकाने को निशाना बना कर भारत ने यह भी जता दिया है कि उसके सब्र का बांध टूट चुका है. बौखलाहट में जब पाकिस्तान ने लड़ाकू विमानों के जरिये घुसपैठ की कोशिश की, तो उसे करारा जवाब मिला. विंग कमांडर अभिनंदन के मामले में भी उसे भारतीय कूटनीति क्षमता और अंतरराष्ट्रीय दबाव के सामने झुकना पड़ा. पाकिस्तान को यह बखूबी पता है कि न तो युद्ध में और न ही कूटनीति में वह भारत का सीधा सामना कर सकता है. ऐसे में उसके पास आतंक, घुसपैठ और युद्धविराम के उल्लंघन की पुरानी नीति पर लौटना पड़ा है.
अगर यह मान भी लिया जाए कि इमरान खान दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य करना चाहते हैं, तो फिर उनकी कथनी और करनी में इतनी बड़ी खाई क्यों है? आज दुनिया उनसे यही सवाल पूछ रही है कि पुलवामा हमले के बाद उन्होंने आतंकी गिरोहों और सरगनाओं के खिलाफ क्या कार्रवाई की? कश्मीर में आतंकवादियों और अलगाववादियों के पक्ष में बयान लगातार क्यों आते रहे?
आखिर किसकी शह पर आतंकी अब भी सक्रिय हैं? सबसे बड़ा सवाल यह है कि पाकिस्तानी सेना द्वारा युद्धविराम के उल्लंघन के सिलसिले को रोकने के लिए उन्होंने क्या पहलकदमी की है? दरअसल, इमरान खान भी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह भारत में अस्थिरता और अशांति फैलाने की नीति पर चल रहे हैं. ऐसा ही पाकिस्तान अपने अन्य पड़ोसी देशों- अफगानिस्तान और ईरान- के साथ भी कर रहा है.
पिछले साल युद्धविराम के उल्लंघन की करीब तीन हजार घटनाएं हुई हैं. पुलवामा के बाद तनाव के युद्ध में बदल जाने की आशंकाओं के बाद भी इनमें कमी नहीं आ रही है. कश्मीर के भीतर अपने घटते प्रभाव से भी पाकिस्तान बेचैन है. पुलवामा हमले के बाद भारतीय सेना के 111 रिक्त पदों के लिए लगभग तीन हजार कश्मीरी युवकों का आवेदन इंगित करता है कि कश्मीरी युवा शांति और सुरक्षा के साथ देश की मुख्यधारा के साथ विकास की राह पर बढ़ने का आकांक्षा रखता है.
कुछ दिनों पहले संपन्न पंचायत चुनाव में लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी सुविधाओं, खेल-कूद आदि से जुड़ीं सरकारी पहलों में कश्मीरी जनता की भागीदारी बढ़ रही है. इन प्रयासों को पाकिस्तानी सरकार और सेना आतंक, अलगाव और हमलों से कमजोर करना चाहते हैं ताकि लोगों को गुमराह कर सकें. ऐसे में भारत को कश्मीर में और सीमा पर चौकस और आक्रामक बने रहने की आवश्यकता है.