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क्यों घुटनों के बल आया पाक

आरके सिन्हा सांसद, राज्यसभा rkishore.sinha@sansad.nic.in विंग कमांडर अभिनंदन भारत लौट आये हैं. भारतीय वायुसेना का एक लड़ाकू विमान का पायलट, जो शत्रु के घर पर हमला करता है, उसकी तुरंत दो दिनों के अंदर स्वदेश वापसी का हो जाना हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. यह नये भारत का असर है कि पाकिस्तान ने घुटने […]

आरके सिन्हा
सांसद, राज्यसभा
rkishore.sinha@sansad.nic.in
विंग कमांडर अभिनंदन भारत लौट आये हैं. भारतीय वायुसेना का एक लड़ाकू विमान का पायलट, जो शत्रु के घर पर हमला करता है, उसकी तुरंत दो दिनों के अंदर स्वदेश वापसी का हो जाना हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. यह नये भारत का असर है कि पाकिस्तान ने घुटने टेककर अभिनंदन को ससम्मान भारत भेज दिया.
पुलवामा हमले से नाराज भारत का पाकिस्तान की सरहद के अंदर घुसकर सैकड़ों आतंकियों को मार गिराना उस भारत की तस्वीर पेश करता है, जो आत्मविश्वास से लबरेज है. उस भारत में अब धैर्य नहीं है कि वह हमलों को निरीह बनकर झेलता ही रहे.
सारी दुनिया ने देखा था पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के भयाक्रांत चेहरे को, जब वे अपने देश की संसद में अभिनंदन की रिहाई की घोषणा कर रहे थे. हालांकि कुछ लोग कह रहे हैं कि पाकिस्तान को अभिनंदन को रिहा करना ही था, क्योंकि जेनेवा संधि के तहत कोई भी देश युद्धबंधियों के साथ दुर्व्यवहार नहीं कर सकता.
इन ज्ञानियों से पूछा जाना चाहिए कि कारगिल युद्ध के दौरान इसी पाकिस्तान ने युद्धबंदी विंग कमांडर अजय आहूजा और कैप्टन सौरभ कालिया की हत्या क्यों कर दी थी. तब भी तो जेनेवा संधि थी. उसे तब यह खूनी खेल खेलते वक्त रत्तीभर शर्म नहीं आयी थी कि भारत ने तो 1971 की जंग में पाकिस्तान के 93 हजार युद्धबंदियों को ससम्मान रिहा कर दिया था. वे जब तक भारतीय जेलों में रहे, तब तक उन्हें पूरी इज्जत से रखा गया था.
पुलवामा हमले के बाद भारत ने कूटनीति के मोर्चे पर पाकिस्तान को पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया था. इसी के कारण पुलवामा हमले की जिम्मेदारी लेनेवाले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की सुरक्षा परिषद् में अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने प्रस्ताव पेश किया.
फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने प्रस्ताव में मसूद की वैश्विक यात्राओं पर प्रतिबंध लगाने और उसकी सभी संपत्ति फ्रीज करने की मांग भी की. यह सब यूं ही नहीं हो गया. यह कहते हैं नेतृत्व के हनक का असर. आज मोदीजी ने विश्व को अपनी नेतृत्व क्षमता का मुरीद बना दिया है. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था.
बहरहाल, अभिनंदन को रिहा करके इमरान ने यह संकेत देने की कोशिश की कि वे पाकिस्तान सेना के दबाव से मुक्त हैं. पर वस्तुस्थिति तो यह है कि अभिनंदन की रिहाई में वहां की सेना की सहमति अवश्य ही रही होगी.
बंदरभभकी देने में मशहूर पाक सेना को भी यह अच्छी तरह पता है कि भारत के साथ मुठभेड़ में उसके दांत खट्टे कर दिये जायेंगे. अभिनंदन की रिहाई के बाद हमारे अपने देश के भी कुछ लोग इमरान खान को महान नेता के रूप में पेश कर रहे हैं. यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि उन्हें यह सब करने का अधिकार हासिल है. पर वे यह न भूले कि इमरान खान मुंबई से लेकर पठानकोट और अब पुलवामा हमले का भी साक्ष्य मांगते हैं. क्या इमरान खान को पता नहीं है कि मुंबई पर हमला करनेवाले कौन थे?
क्या वे इतने भोले हैं कि उन्हें यह पता ही नहीं कि मुंबई हमलों के तार लाहौर में बैठे हाफिज सईद से जुड़े हैं? पुलवामा हमलों की जिम्मेदारी जैश जैसा संगठन खुलेआम लेता है. क्या इमरान इतने नासमझ हैं कि उन्हें यह भी पता नहीं कि मसूद अजहर ही जैश का सर्वेसर्वा है?
इमरान के कुछ भारतीय मित्र उनके आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का छात्र होने के कारण भी अभिभूत हैं. उन्हें लगता है जैसे वहां से पढ़ा इंसान कोई महामानव होता होगा.
इस बीच, भारत-पाकिस्तान के बीच ताजा विवाद का एक नेरेटिव हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का संयुक्त अरब अमीरात में इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) सम्मेलन को संबोधित करना भी रहा है. सुषमा जी ने अबु धाबी में बैठक के उद्घाटन सत्र को सम्मानित अतिथि के रूप में संबोधित किया. उन्होंने इस दौरान आतंकवाद का मुद्दा उठाकर परोक्ष रूप से पाकिस्तान पर निशाना साधा.
यह पहली बार है, जब भारत को सम्मानित अतिथि के रूप में ओआईसी बैठक में आमंत्रित किया गया है. ओआईसी 56 इस्लामी देशों का एक प्रभावशाली समूह है. इसके बरक्स दुनिया के इस्लामी देशों का खुद को नेता से लेकर प्रवक्ता कहनेवाला पाकिस्तान उपर्युक्त सम्मेलन से नदारद रहा. उसे तकलीफ यह थी कि भारत को इसमें क्यों भाग लेने का अवसर दिया जा रहा है. उसने इस बाबत अपना विरोध भी दर्ज करवाया था, जिसे किसी ने सुनने की जहमत तक नहीं उठायी.
यानी पाकिस्तान ओआईसी में अलग-थलग पड़ गया. यहां यह बताना भी आवश्यक है कि पाकिस्तान इस ओआईसी का संस्थापक सदस्य है. गौरतलब है कि पाकिस्तान ने बालाकोट में जैश के कैंप पर भारतीय हवाई हमले के मद्देनजर ओआईसी की बैठक में भारत की भागीदारी पर अपना विरोध जताया था.
दरअसल, इस सम्मेलन में भारत को भागीदारी का मौका मुख्य रूप से बांग्लादेश, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की कोशिशों के फलस्वरूप मिला. इन तीनों देशों से भारत के संबंध निरंतर सुधरते जा रहे हैं.
इनका तर्क था कि चूंकि भारत में मुसलमानों की आबादी खासी अधिक है, इसलिए उसे इस संगठन का सदस्य बनाया जाना चाहिए. इससे ओआईसी के गैर-इस्लामिक संसार से मैत्रीपूर्ण संबंध बनेंगे. यह तथ्य है कि संसार में इंडोनेशिया के बाद सर्वाधिक मुसलमान भारत में ही हैं. इसलिए यदि भारत को ओआईसी में पर्यवेक्षक राष्ट्र के रूप में शामिल किया जाता है, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है.
ओआईसी में भारत का दस्तक देना सिद्ध कर रहा है कि पाकिस्तान को छोड़कर इस्लामिक दुनिया भी भारत से अपने संबंधों को प्रगाढ़ करने का इच्छुक है. पाकिस्तान अब चारों तरफ से घिर चुका है. उसके साथ कहीं कोई खड़ा नहीं दिख रहा है. उसे कोई कर्ज देने के लिए भी तैयार नहीं है. कमोबेश उसके साथ चीन खड़ा है. चीन तो स्वार्थवश उसके साथ है, क्योंकि उसके वहां अरबों रुपये का निवेश है.
देखा जाये तो उसने पाकिस्तान पर अपना नियंत्रण कर लिया है. अब पाकिस्तान उससे लाख चाहकर भी मुक्ति नहीं पा सकता. लेकिन, पुलवामा हमले के बाद जब भारत ने पाकिस्तान को हर तरफ से कसना शुरू कर दिया, तो चीन भी अब पाकिस्तान को सुधारने की सीख दे रहा है. भारत का उस पर यह दबाव जारी रहना चाहिए. उससे संबंध सुधारने या बातचीत करने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है, जब तक आतंकवाद पाकिस्तान की धरती से समूल नष्ट न हो जाये.

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