काहे चिंता में टिटिहरी हुए जा रहे हो भाई

।। बृजेंद्र दुबे ।। प्रभात खबर, रांची बचपन से आज तक मैंने चीजों को पल-पल बदलते देखा है. पर, मैं नहीं बदल पाया. मूल्यों-उसूलों की चिंता में लगा रहता हूं.बच्चे समझाते हैं कि अब तो बदल जाओ. सूचना क्रांति के दौर में पड़ोस की खबर भी मुङो हफ्तों बाद मिलती है. ह्वाट्स एप के जमाने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 2, 2014 3:46 AM

।। बृजेंद्र दुबे ।।

प्रभात खबर, रांची

बचपन से आज तक मैंने चीजों को पल-पल बदलते देखा है. पर, मैं नहीं बदल पाया. मूल्यों-उसूलों की चिंता में लगा रहता हूं.बच्चे समझाते हैं कि अब तो बदल जाओ. सूचना क्रांति के दौर में पड़ोस की खबर भी मुङो हफ्तों बाद मिलती है. ह्वाट्स एप के जमाने में मैं मोबाइल भी ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाता. हर सुबह पत्नी और बच्चों से इसी बात पर बहस हो जाती है कि हमारी परंपराएं कहां बिलाती चली जा रही हैं और हम लोगों को कोई चिंता ही नहीं.

आज भी इसी बहस के बीच गजोधर भाई नमूदार हुए, बोले-देखा दिल्ली में दो आइआइटी पास लड़कों ने अमेरिका की करोड़ों की नौकरी छोड़ चाय की दुकान खोल ली है. दुकान क्या खोली, पूरे देश में चाय दुकान की चेन खोलने जा रहे हैं. एक आप हैं कि बेटा इंटर में मैथ में कम नंबर लाया तो मुंह लटकाये हैं कि अब उसका क्या होगा? मेरी मानिए, तो आप भी बेटे को पढ़ाने की बजाय कोई दुकान खोलवा दीजिए. धीरे-धीरे जमा लेगा दुकानदारी. मैंने कहा, गजोधर भाई.. बात तो आपकी ठीक है, लेकिन अच्छी दुकान खोलने के लिए भी पैसा चाहिए. और सबसे बड़ी बात दुकान चलाने के लिए मेहनत और लगन की जरूरत होती है, आपकी रुचि क्या है, यह सब भी देखना पड़ता है? ऐसे ही दुकान थोड़े चल जाती है.

गजोधर भाई ठहाका लगा कर हंसे.. वाह मित्र. मैं आपका शुभचिंतक हूं, इस लिए सलाह दे रहा हूं. आप ही सोचिए, तीन साल में बेटा बीएससी करेगा (अगर पास होता गया), तो भी गारंटी नहीं कि नौकरी मिल ही जायेगी. उतने पैसे में छोटी दुकान खुल जायेगी और तीन में चल भी निकलेगी. खैर मुङो जो कहना था, कह दिया. आगे आपकी मरजी. मैंने कहा, मित्र दुनिया तेजी से बदल रही है. लोगों में आगे निकल जाने की होड़ है. क्या इसका कहीं कोई ओर-छोर है? गजोधर बोले- आप की ही तरह एक जंतु होता है.. उसका नाम है टिटिहरी.

वह जब रात को सोता है, तो पैर आसमान की तरफ ऊपर किये रहता है. उसे डर बना रहता है कि पता नहीं कब आसमान उसके ऊपर गिर पड़े. इसी लिए वह पैर ऊपर किये रहता है कि गिरेगा, तो वह अपने पैर से आसमान को रोक लेगा. अरे भाई, कुछ नहीं बदला है, सब जैसे था, वैसे ही चल रहा है.

देश में सरकार बदल गयी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आ गये. पर, महंगाई-काला बाजारी सब मनमोहन के जमाने वाली ही चल रही है. मोदी को पता है कि इस देश में चीजें वहीं रहती हैं, बस पात्र बदल जाते हैं, तो क्यों सिर खपाया जाये. मोदी बजट आने से पहले ही रेल, तेल, भोजन आदि का दाम बढ़ा चुके हैं. फिर बजट में थोड़ी-बहुत रियायत दे देंगे. लोग वाह-वाह कर उठेंगे. पहले दर्द दोगे.. तभी तो इलाज करने में मजा आयेगा. इस लिए बेटा जो कर रहा है, करने दो.आप कौन-सा अपने पिता के अरमान पूरा कर दिये थे, जो बेटे के भविष्य की चिंता में टिटिहरी हुए जा रहे हो. आसमान थोड़े ही गिरा जा रहा है. मस्त रहो.

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