जहर बनती हवा
दुनियाभर में वायु प्रदूषण जानलेवा गति से बढ़ रहा है. भारत जैसे तेजी से विकसित हो रहे देशों में यह समस्या अधिक ही गंभीर है. संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण विशेषज्ञों ने बताया है कि इस कारण वैश्विक स्तर पर हर साल 70 लाख से ज्यादा लोगों की असमय मौत हो जाती है तथा आबादी का […]
दुनियाभर में वायु प्रदूषण जानलेवा गति से बढ़ रहा है. भारत जैसे तेजी से विकसित हो रहे देशों में यह समस्या अधिक ही गंभीर है. संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण विशेषज्ञों ने बताया है कि इस कारण वैश्विक स्तर पर हर साल 70 लाख से ज्यादा लोगों की असमय मौत हो जाती है तथा आबादी का करीब 80 फीसदी हिस्सा प्रदूषित हवा में सांस लेने के लिए विवश है.
यह बेहद चिंताजनक है कि दुनिया में 10 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के सात शहर शामिल हैं. दिल्ली तो पहले से ही सर्वाधिक प्रदूषित राजधानी के तौर पर जानी जाती है. पिछले कई वर्षों से ऐसा देखने में आ रहा है कि जाड़ा आने के साथ दिल्ली और आसपास के इलाकों में हवा की गुणवत्ता गिरने लगती है.
अमेरिका स्थित इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, उत्तर भारत में किसानों द्वारा पराली जलाने के कारण पैदा होनेवाले वायु प्रदूषण से दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में श्वसन संक्रमण बढ़ा है और इससे देश की अर्थव्यवस्था पर 30 अरब डॉलर का झटका भी लग रहा है. चिंताजनक बात है कि इस समस्या की चपेट में सबसे ज्यादा बच्चे, बुजुर्ग तथा बीमार लोग आ रहे हैं. एक तो जहरीली हवा पहले से बीमार लोगों की मुश्किलें बढ़ाती है और दूसरी ओर स्वस्थ लोगों को भी अस्वस्थ बनाती है.
अनेक अध्ययनों ने इंगित किया है कि वायु प्रदुषण की समस्या सिर्फ बड़े और औद्योगिक शहरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कस्बे और ग्रामीण क्षेत्रों में भी हवा खराब होती जा रही है. यह विडंबना ही है कि इस संकट से आगाह होने के बावजूद प्रदूषण पर अंकुश लगाने तथा उसे कम करने के लिए ठोस नीतिगत पहल नहीं किये जा रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र को भी यह कहना पड़ा है कि लोगों का ध्यान इस समस्या की तरफ इसलिए नहीं है, क्योंकि वायु प्रदूषण से होनेवाली मौतें अन्य आपदाओं या महामारियों से होनेवाली मौतों की तरह नाटकीय नहीं हैं. अभी 155 देशों में नागरिकों को स्वच्छ हवा उपलब्ध कराना मौलिक अधिकारों में शामिल है, जिसे वैश्विक मान्यता दिलाने के प्रयास किये जाने चाहिए. पर्यावरण की रक्षा सरकारों और समाजों की प्राथमिकता में होना चाहिए.
यदि हम वायु प्रदूषण के साथ साफ पानी का अभाव, खाना-पान की चीजों में रसायनों की मौजूदगी तथा कचरे के समुचित प्रबंधन की अवहेलना जैसे आयामों को जोड़ लें, तो हमारे सामने एक भयावह तस्वीर उभरती है. भारत ने बीते कुछ सालों में तत्परता दिखाते हुए करोड़ों गरीब परिवारों को पर्यावरण-अनुकूल रसोई तकनीकों से जोड़ा है. स्वच्छ ऊर्जा, स्वच्छ भारत, नदियों की सफाई की योजनाएं आदि आवश्यक प्रयास हो रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अन्य विश्व-नेताओं के साथ मिलाकर जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान बढ़ने की चुनौतियों का सामना करने की पहलों में शामिल हैं. प्रदूषण की समस्या अब इतनी खतरनाक हो चुकी है कि इससे निपटने में उद्योग जगत, स्वयंसेवी संस्थाओं तथा नागरिकों को सरकारी प्रयासों के साथ मजबूती से खड़ा होना होगा.