सरगना पर नकेल

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की प्रतिबंध समिति आज जब एक बार फिर आतंकी गिरोह जैशे-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव पर विचार करेगी, तो सबकी नजर चीन के रवैये पर होगी. बीते 10 सालों में चौथी बार यह मुद्दा समिति के सामने है. भारत ने अमेरिका के अलावा सऊदी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 13, 2019 5:54 AM
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की प्रतिबंध समिति आज जब एक बार फिर आतंकी गिरोह जैशे-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव पर विचार करेगी, तो सबकी नजर चीन के रवैये पर होगी. बीते 10 सालों में चौथी बार यह मुद्दा समिति के सामने है.
भारत ने अमेरिका के अलावा सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और तुर्की से समर्थन के लिए बात की है. इन देशों का सहयोग महत्वपूर्ण है, क्योंकि पाकिस्तान के साथ इनके घनिष्ठ संबंध हैं. भारत कहता रहा है कि पाकिस्तान अपनी धरती पर सक्रिय उन गिरोहों पर ठोस कार्रवाई करे, जो भारत में आतंकी हमलों के षड्यंत्रकारी हैं तथा भारत में हिंसा और अस्थिरता फैलाने के लिए लिए प्रयासरत हैं.
संयुक्त राष्ट्र समेत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को लगातार समर्थन मिलता रहा है, लेकिन मसूद अजहर के मामले में चीन के रुख से उस पर पाबंदी नहीं लगायी जा सकी है. सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य के रूप में मिले विशेषाधिकार से वह सरगना को बचा लेता है. यह एक विडंबना ही है, क्योंकि जैशे-मोहम्मद संयुक्त राष्ट्र की उस सूची में शामिल है, जिसमें पाकिस्तान के 139 आतंकी समूहों का नाम है.
यह सवाल चीन और पाकिस्तान से पूछा जाना चाहिए कि जब गिरोह को आतंकी सूची में शामिल किया जा सकता है, तो उसके सरगना को क्यों नहीं. चीन ने एक बार फिर सुरक्षा परिषद् के नियमों और अपने रुख का हवाला देते हुए मसूद अजहर के विरुद्ध सबूतों की मांग की है. उसने इस मुद्दे पर बातचीत की जरूरत भी बतायी है. इससे जाहिर है कि उसकी मंशा फिर प्रस्ताव को रोकने की है. पाकिस्तान में भारी निवेश करनेवाले चीन को इन गिरोहों के बारे में जानकारी न हो, यह बात गले नहीं उतरती है.
दरअसल, दक्षिण एशिया में चीन अपने सबसे करीबी सहयोगी पाकिस्तान को नाराज नहीं करना चाहता है. यह उसके निवेश की सुरक्षा की गारंटी भी है, जिसके लिए उसे पाकिस्तानी सरकार और सेना के साथ चरमपंथी और आतंकी समूहों का साथ भी चाहिए. चीन उन मंचों पर पाकिस्तान का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करता रहा है, जहां उसका प्रतिनिधित्व नहीं है, जैसे- इस्लामिक सहयोग संगठन और गुटनिरपेक्ष आंदोलन.
चीन को अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से भारत के संबंधों की बेहतरी रास नहीं आ रही है. वह न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप और सुरक्षा परिषद् में सदस्यता के भारतीय दावे विरोध करता रहा है. साउथ चाइना सी, हिंद-प्रशांत क्षेत्र और बेल्ट-रोड परियोजना में चीन के आक्रामक विस्तार की नीति का भारत आलोचक रहा है.
इन मसलों पर कूटनीति का रास्ता अपनाने के बजाय चीन आतंकियों का परोक्ष साथ देकर दक्षिण एशिया में अशांति और अस्थिरता को ही बढ़ावा दे रहा है. बहरहाल, भारत को आतंक के मुद्दे पर व्यापक समर्थन मिल रहा है और उम्मीद है कि देर-सबेर चीन और पाकिस्तान भी बुद्धि और विवेक का प्रयोग करेंगे.

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