खंडित ही होगा तमिल जनादेश
आर राजागोपालन वरिष्ठ पत्रकार rajagopalan1951@gmail.com जे जयललिता एवं एम करुणानिधि जैसे कद्दावर नेताओं के निधन के पश्चात तमिलनाडु तो जैसे अब एक नेता विहीन राज्य बन गया है. अगली लोकसभा के लिए आगामी 18 अप्रैल, 2019 को तमिलनाडु में संपन्न होनेवाले आम चुनावों के अभियान में इन दोनों नेताओं की कमी शिद्दत से महसूस की […]
आर राजागोपालन
वरिष्ठ पत्रकार
rajagopalan1951@gmail.com
जे जयललिता एवं एम करुणानिधि जैसे कद्दावर नेताओं के निधन के पश्चात तमिलनाडु तो जैसे अब एक नेता विहीन राज्य बन गया है. अगली लोकसभा के लिए आगामी 18 अप्रैल, 2019 को तमिलनाडु में संपन्न होनेवाले आम चुनावों के अभियान में इन दोनों नेताओं की कमी शिद्दत से महसूस की जायेगी. पहले तो डीएमके ने यह घोषणा की कि प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गांधी उसके पसंदीदा उम्मीदवार होंगे. उसके बाद एडीएमके ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपना विश्वास व्यक्त किया.
एडीएमके ने भाजपा के साथ ही विजयकांत के ‘डीएमडीके’ एवं डॉ रामादोस के ‘पीएमके’ के साथ अपने शक्तिशाली गठबंधन को अंतिम रूप देकर डीएमके के सामने कड़ी चुनौती पेश कर दी है. उसी तरह डीएमके ने भी कांग्रेस तथा कुछ अन्य छोटी राज्यस्तरीय पार्टियों के साथ अपना गठबंधन कर स्वयं को मजबूत करने की कोशिश की है. डीएमके ने तमिलनाडु में मोदी विरोधी अभियान का नेतृत्व कर ऐसी हवा बनाने की कोशिश की थी कि वह तमिलनाडु तथा पुडुचेरी की सभी 40 सीटें जीत लेगा.
पर जयललिता के नक्शे-कदम पर चलते हुए एडापडी पलानीस्वामी ने बगैर किसी शोर-शराबे के भाजपा के साथ होशियारी से गठजोड़ कर तमिलनाडु विधानसभा में अपने अल्प बहुमत के बावजूद सत्तारूढ़ बने रहने में कामयाबी हासिल कर ली.
दरअसल, तमिलनाडु की सियासत समझने के पहले उत्तर भारतीय पाठकों को इस राज्य में विभिन्न जातियों का आपसी समीकरण समझने की जरूरत है.
थेवर, नडार, गोंडर तथा वन्निआर- ये चार जातियां मिलकर तमिलनाडु में सरकारें बनाने या बिगाड़ने की हैसियत रखती हैं. जयललिता तथा करुणानिधि ने इस समीकरण को संभाले रखा, पर एमके स्टालिन इसमें उतने सफल साबित न हो सके. मगर उन्होंने अल्पसंख्यकों को अपने पाले में जरूर कर रखा है.
वहीं दूसरी ओर, एडीएमके अपने 33 प्रतिशत वोटबैंक को सुरक्षित रखने में सफल रहा है. ये ऐसे मतदाता हैं, जो एमजी रामचंद्रन एवं जयललिता के घोर समर्थक रहे हैं. लेकिन, करुणानिधि के बाद डीएमके के पास कोई उनके जैसा करिश्माई नेता नहीं रह गया है.
इस तरह, इस राज्य की राजनीति में एक शून्य सरीखा उत्पन्न हो गया है. क्या नरेंद्र मोदी इस शून्य की भरपाई कर इसका लाभ उठा सकेंगे अथवा इस कार्य में राहुल गांधी बाजी मार ले जायेंगे? पिछले तीन महीनों के दौरान नरेंद्र मोदी इस राज्य का चार बार दौरा कर चुके हैं.
इस मोर्चे पर राहुल गांधी भी कोई पीछे नहीं हैं. भाजपा को एडीएमके के हिंदुत्व एजेंडे का लाभ मिलेगा. यहां यह स्मरणीय है कि दक्षिण में एडीएमके वह पहली क्षेत्रीय पार्टी थी, जिसने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का समर्थन किया था. जयललिता ने पार्टी के लगभग सभी घोषणापत्रों में इसे शामिल कराया. तमिलनाडु सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध राज्य है, जहां डीएमके के अनीश्वरवादी प्रभाव के बावजूद त्योहारों के दौरान बड़ी संख्या में लोग मंदिरों में जाते रहे हैं. डीएमके ने आरक्षण को 80 प्रतिशत तक बढ़ा कर अगड़ी जाति विरोधी भावनाएं भुनाने की कोशिश की है.
आगामी चुनाव बड़े नेताओं के बाद पहली बार तमिलनाडु के द्वितीय पंक्ति के नेताओं को यह मौका देने जा रहा है कि वे इसमें अपनी नेतृत्व क्षमता को प्रमाणित करें. ऐसे में सवाल है कि पलानीस्वामी क्या जयललिता का स्थान ले सकेंगे? उधर डीएमके की आंतरिक सियासत के नजरिये से स्टालिन के लिए तो यह करो या मरो की स्थिति है.
करुणानिधि के निधन के बाद स्टालिन के भ्राता एमके अलागिरी ने पार्टी छोड़ दी. अभी इस पार्टी को करुणानिधि परिवार के छह सदस्य मिलकर संचालित कर रहे हैं. एडीएमके खुद भी विभाजित है, क्योंकि टीटीवी दिनाकरण ने उसे चुनौती दे रखी है.
तमिलनाडु की फिजा में अभी जयललिता एवं एमजी रामचंद्रन के सुरीले फिल्मी नगमे गूंज रहे हैं. उधर डीएमके ने करुणानिधि के दमदार भाषणों तथा उनके तमिल क्षेत्रीयतावादी प्रचार का सहारा ले रखा है.
एडीएमके नमो प्रभाव का फायदा उठाने के अलावा कांग्रेस तथा राहुल गांधी को श्रीलंका में दो लाख तमिलों के नरसंहार की विरासत का दोषी ठहरा रहा है. वहां श्रीलंका अब भी चुनावी मुद्दा बना हुआ है. मोदी के विरोध में डीएमके राफेल सौदे एवं तथाकथित मोदी कुशासन की बातें उठाते हुए किसानों और कामगार वर्ग के मुद्दों को हवा दे रहा है.
इतना तो तय है कि तमिलनाडु तथा पुडुचेरी के कुल 40 लोकसभा सीटों पर कब्जा जमा पाना दोनों में से किसी भी पार्टियों के लिए संभव नहीं हो सकेगा. करुणानिधि या स्टालिन के पक्ष में कोई लहर नहीं है, तो दूसरी ओर सत्तारूढ़ एडीएमके पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं.
अंततः जनादेश खंडित ही रहेगा. अनुमानों के अनुसार, सत्तारूढ़ दल के गठबंधन को 15 से 18 लोकसभा सीटें हासिल हो सकती हैं, जबकि डीएमके भी 15 से 20 सीटें पा सकता है.
इस तरह, दोनों दलों के लिए यह नतीजा लगभग 50-50 के अनुपात का होगा. वहीं, दिनाकरण द्वारा भी दो सीटें हथिया लिये जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है. केंद्र में ऊंट चाहे जिस करवट भी क्यों न बैठे, केंद्रीय मंत्रिमंडल में कम से कम पांच सदस्य तमिलनाडु से जरूर शामिल रहेंगे.
(अनुवाद: विजय नंदन)