हर राज्य में हों कैंसर अस्पताल
डॉ एसएन मिश्रा पूर्व सचिव, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, दिल्ली delhi@prabhatkhabar.in बीते रविवार की शाम गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का निधन हो गया. पर्रिकर पैंक्रियाटिक कैंसर से पीड़ित थे. पैंक्रियाटिक कैंसर यानी अग्नाशय का कैंसर एक बहुत ही गंभीर रोग है. इसके बेहद गंभीर होने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि […]
डॉ एसएन मिश्रा
पूर्व सचिव, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, दिल्ली
delhi@prabhatkhabar.in
बीते रविवार की शाम गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का निधन हो गया. पर्रिकर पैंक्रियाटिक कैंसर से पीड़ित थे. पैंक्रियाटिक कैंसर यानी अग्नाशय का कैंसर एक बहुत ही गंभीर रोग है. इसके बेहद गंभीर होने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पैंक्रियाटिक कैंसर के लक्षण आसानी से समझ में नहीं आते.
और इसीलिए इसे मूक कैंसर भी कहा जाता है. हालांकि, कैंसर के लिए ऐसी किसी शब्दावली की जरूरत नहीं है, हर कैंसर अपने आप में एक भयानक बीमारी है. सिर्फ कैंसर ही क्यों, अगर सही समय पर किसी छोटी बीमारी का इलाज न किया जाये, तो वह भी किसी बड़ी बीमारी का रूप ग्रहण कर सकती है. इसलिए हमारे देश में स्वास्थ चेतना का विस्तार होना बहुत जरूरी हो गया है.
कैंसर से आज भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लोग परेशान हैं. क्या डॉक्टर, क्या मरीज और क्या परिवार के लोग, हर कोई इस बीमारी की दहशत से डरता है. डरना भी चाहिए, यह स्वाभाविक भी है. लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे बचा नहीं जा सकता. कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से बचने के लिए और इसके समुचित समाधान के लिए कई स्तरों पर काम करना होगा. सबसे पहले तो इसे लेकर जागरूकता बहुत जरूरी है.
एक बात तो हम सबको गांठ बांध लेनी चाहिए कि बीमारी जितनी ही बड़ी और गंभीर होती है, उसके लिए जागरूकता अभियान भी उतना ही बड़ा और व्यापक होना चाहिए. विडंबना है कि हमारे देश में आज भी स्वास्थ्य को लेकर जैसी चेतना होनी चाहिए, वैसी चेतना है ही नहीं और न ही लोग भी अपनी चेतना बढ़ाने को उत्सुक हैं.
दुनियाभर में लोग कैंसर से अपनी जान गंवा रहे हैं. दुनियाभर में इसके उपाय भी तलाशे जा रहे हैं और निरंतर शोध भी हो रहे हैं, फिर भी अभी तक हम उस ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाये हैं, जिससे कि किसी व्यक्ति को कैंसर हो जाये, तो हम उसे पूरी तरह से ठीक कर सकें.
दुनिया के बाकी देशों का तो नहीं मालूम, लेकिन भारत में अक्सर यह बात देखी गयी है कि हम लोग किसी बीमारी के हो जाने पर उसे डॉक्टर या वैद्य को दिखाने के बजाय छुपाते फिरते हैं. अक्सर महिलाओं में स्तन कैंसर की खबरें आती हैं. यहां सवाल यह है कि क्या यह कैंसर अचानक हो गया?
बिल्कुल नहीं. वह धीरे-धीरे ही बढ़ा होगा, लेकिन जब पकड़ा गया, तब उसे खत्म करने के उपाय तलाशे जाने लगे. दरअसल, यह जागरूकता की कमी है. ब्रेस्ट कैंसर की शुरुआत एक छोटी सी गांठ से होती है. डॉक्टरों और शोध करनेवालों ने यह बात सामने लायी है कि महिलाएं नहाने के वक्त जब अपने स्तनों में ऐसे किसी गांठ को महसूस करती हैं, तो ज्यादातर महिलाएं उसकी अनदेखी करती हैं.
जाहिर है, इस अनदेखी का कारण शर्म और झिझक ही है. इसका नतीजा यह होता है कि वह छोटी सी गांठ आगे चलकर ब्रेस्ट कैंसर का रूप ले लेती है. ऐसे में अगर जागरूकता बढ़े, तो बड़ी से बड़ी और दबे-छुपे अंगों में पनप रहे इसके लक्षणों को पहचान कर जल्द-से-जल्द उसका इलाज हो सकता है.
दूसरी बात है सरकारी स्तर पर एक बड़ी पहल की जरूरत. कैंसर के इलाज को सस्ता बनाने के लिए देशभर की सरकारों को एक बड़ा कदम उठाना चाहिए. कहने का अर्थ यह है कि देशभर के कुछ ही कैंसर अस्पताल नहीं होने चाहिए, बल्कि देश के हर राज्य में कैंसर अस्पतालों को खोलना होगा.
और यह काम सरकार के स्तर पर ही संभव है, निजी अस्पतालों से इसकी उम्मीद न रखी जाये. आज देशभर से लोग दिल्ली के धर्मशिला या राजीव गांधी कैंसर अस्पताल और मुंबई के टाटा कैंसर इंस्टीट्यूट जैसे कुछ कैंसर अस्पतालों में इलाज के लिए जाते हैं.
कैंसर तो अपने आप में एक दहशत का नाम है ही, वहीं देश के सदूर हिस्से से इलाज के लिए दिल्ली-मुंबई की यात्रा भी कम पीड़ादायी नहीं होती है. अमीर लोग तो कहीं न कहीं इलाज की व्यवस्था कर भी लेते हैं, लेकिन वहीं गरीब लोग तो अपनी हिम्मत ही हार जाते हैं.
इसलिए देश के हर राज्य में और हर बड़े शहर में कैंसर अस्पतालों की स्थापना करके लोगों को एकदम सस्ता इलाज मुहैया कराना सरकारों का दायित्व होना चाहिए. इस पहल के साथ ही कैंसर के बड़े-बड़े खतरों को कम किया जा सकता है. और यह बात सिर्फ कैंसर बीमारी पर ही लागू नहीं होती, बल्कि हर उस असाध्य बीमारी पर लागू होती है, जिसके इलाज के अभाव में लोग प्रभावित होते हैं.
किसी भी बीमारी के बढ़ने का अर्थ है कि एक तो उसे लेकर समाज में कोई जागरूकता नहीं है और दूसरे उसका इलाज महंगा है. ज्यादा अस्पताल होंगे, तो ज्यादा से ज्यादा डॉक्टरों की भर्ती की जरूरत भी होगी. अस्पतालों के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जायेगा और कर्मचारी भी बढ़ेंगे, जिससे रोजगार में इजाफा होगा.
हर राज्य में अस्पताल होने से लोगों की पहुंच आसान होगी, तो मरीजों में हिम्मत भी आयेगी बीमारी से लड़ने की. कैंसर के इलाज से संबंधित जितनी भी जरूरी चीजें हैं, सबका विस्तार होना चाहिए और सब चीजों के प्रति समाज में जागरूकता होनी चाहिए.
मसलन, लोग यह जानें कि कैंसर के लक्षण क्या होते हैं, देश में कहां-कहां इसका इलाज संभव है, किन-किन चरणों से होकर गुजरना होता है, आदि बहुत सी जरूरी चीजें हैं, जो जागरूकता और इलाज का आयाम हैं. देश का हर नागरिक जब स्वस्थ होता है, तभी देश स्वस्थ होता है.