दुष्कर्म, यौन प्रताड़ना, महिला हिंसा की घटनाएं आज समूचे देश में भयावह रूप ले चुकी हैं. तभी तो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी इस पर चिंतन प्रारंभ हो गया है. लोगों की मानसिकता वीभत्स, विकृत होती जा रही है. अगर इस पर तुरंत रोक नहीं लगी तो स्थिति काफी भयावह हो जायेगी. हमारे देश के जिम्मेदार राजनेताओं, शिक्षाविदों या बुद्धिजीवियों ने सिवाय बेतुकी बयानबाजी के क्या कभी इस पर गहन चिंतन किया है?
क्या हमारे द्वारा बच्चों में भरे जाने बाले संस्कार में कमी नहीं है? बच्चों को दी जानी वाली आजादी का यह नतीजा तो नहीं है? हमारी शिक्षा नीति तो गलत नहीं है? इन सब सवालों के लिए हम दूरदर्शन पर, सीरियलों के माध्यम से, विज्ञापन के माध्यम से दिखाए जानेवाले अर्धनग्न-अश्लील दृश्यों को अधिक जिम्मेवार कह सकते हैं.
चाहे विज्ञापन कोई भी हो, कैसा भी हो, किसी भी तरह का हो, उसमें छद्म लाभ की खातिर महिला की अर्धनग्न छवि दिखाकर क्या सारे महिला जगत की इज्जत को तार-तार नहीं किया जाता? यही कारण है जो कहीं न कहीं युवाओं के दिलोदिमाग पर इसका बुरा असर पड़ता है और एक चिंगारी-सी पनपती रहती है जो यौन हिंसा जैसी घिनौने कार्य में तबदील हो जाता है. हमें केवल शिक्षा में बदलाव लाकर नहीं, बल्कि घरों में भी अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने होंगे. दूर-दर्शन पर, सीरियलों के माध्यम से, विज्ञापन के माध्यम से दिखाई जाने वाले अर्धनग्न और अशलील दृश्यों को बंद कराना होगा. युवाओं को भी अपनी मिली आजादी का सही इस्तेमाल करना होगा. आपसी वैमनस्यता से नहीं, अपनी दिनचर्या में शुचिता और रहन-सहन, पहनावे में बदलाव लाकर ही ऐसी घटनाओं की रोकथाम की जा सकती है.
गौरी बैद्य, पिस्का मोड़, रांची