झारखंड के खूंटी, गुमला, सिमडेगा जिले पीएलएफआइ के कब्जे में हैं. सरकार भले कुछ भी दावा करती रहे, लेकिन सच यह है कि इन तीन जिलों में पीएलएफआइ का राज है. इनके एक इशारे पर स्कूल बंद हो जाते हैं, सड़कें सूनी हो जाती हैं, काम बंद हो जाता है, गाड़ियां नहीं चलतीं. किसकी मजाल कि इनका हुक्म न माने. जिसने विरोध किया, उसका बुरा हाल.
जान तक देनी पड़ती है. पुलिस कुछ कर नहीं पाती. छह दिनों से खूंटी के लगभग 400 स्कूलों को इसलिए बंद कर देना पड़ा क्योंकि पीएलएफआइ के एक नेता ने बंद करने का आदेश दिया था. पीएलएफआइ का तर्क है कि स्कूल में पुलिस ठहरती है, इसलिए उसे बंद करने का आदेश दिया. हालांकि बाद में पीएलएफआइ ने बंदी का आदेश वापस ले लिया. चिंता की बात यह है कि पीएलएफआइ का आतंक कम नहीं हो रहा है. स्कूलों को बंद करने से 40-50 हजार छात्र पढ़ नहीं पाये.
इसके लिए कौन जिम्मेवार है? जिन स्कूलों में पुलिस ठहरती है, उनकी संख्या बहुत कम है, फिर अन्य स्कूलों को बंद क्यों कराया गया? यह पूरा क्षेत्र आदिवासी बहुल है और सरकारी स्कूलों में गरीब बच्चे पढ़ते हैं. अगर ये बंद रहे तो नुकसान तो स्थानीय आदिवासी बच्चों का ही होगा. उनकी पढ़ाई बंद होगी. भविष्य उनका खराब होगा. यह भी तय है कि इन स्कूलों में पीएलएफआइ के उग्रवादियों के बच्चे या परिजन भी पढ़ते होंगे. ऐसे में स्कूल बंद करने का आदेश देकर उन्होंने अपने ही बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है. ग्रामीण भी महसूस करते हैं कि स्कूल बंद नहीं होना चाहिए लेकिन वे खुल कर कैसे बोलें. यह जिम्मेवारी सरकार और अधिकारियों की है.
उग्रवाद प्रभावित जिलों के डीसी-एसपी की जिम्मेवारी है कि कानून-व्यवस्था को ठीक रखें. इन जिलों में हजारों की संख्या में पुलिसकर्मी तैनात हैं. इसके बावजूद उग्रवादियों की एक धमकी पर स्कूल बंद हो जाते हैं, क्षेत्र बंद हो जाते हैं. इसका सीधा अर्थ है कि जनता को पुलिस पर भरोसा नहीं है. कैंपों में पुलिस के रहने से किसी का भला नहीं होनेवाला. पुलिसकर्मियों को कानून-व्यवस्था सुधारने के लिए सड़कों पर उतरना होगा. शाम होने के बाद खुद पुलिस नहीं निकलती.ऐसे में जनता कैसे निकलेगी? पुलिस के लिए यह एक बड़ी चुनौती है.