पुलिस बल में महिला भागीदारी
।। अंजलि सिन्हा ।। महिला मामलों की जानकार गौरतलब है कि पुलिस में महिलाओं के लिए आरक्षण की जरूरत इसलिए महसूस की गयी, क्योंकि महिला विरोधी हिंसा का ग्राफ बढ़ता जा रहा था. यानी महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुद्दे को सरकार महज पुलिस बल के माध्यम से हल करना चाहती है! महिलाओं के खिलाफ […]
।। अंजलि सिन्हा ।।
महिला मामलों की जानकार
गौरतलब है कि पुलिस में महिलाओं के लिए आरक्षण की जरूरत इसलिए महसूस की गयी, क्योंकि महिला विरोधी हिंसा का ग्राफ बढ़ता जा रहा था. यानी महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुद्दे को सरकार महज पुलिस बल के माध्यम से हल करना चाहती है!
महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बढ़ते ग्राफ को देखते हुए महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार ने पुलिस बल में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण की बात कही है. हालांकि, इस काम के लिए सरकार ने कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की है. महिलाओं के खिलाफ होनेवाली हिंसा एक गंभीर मसला है. यह बात भी कई स्तरों पर उठी है कि पुलिस जेंडर मामलों में असंवेदनशील है तथा वहां महिला पुलिसकर्मियों की संख्या भी बहुत कम है.
थानों में महिलाएं शिकायत लेकर जाने की हिम्मत जुटा पायें, इसके लिए जरूरी है कि थानों का पौरुषपूर्ण वातावरण बदला जाये. पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी कुल मिला कर प्रतीकात्मक ही है और हरियाणा जैसे कुछ राज्यों में पौरुषपूर्ण वातावरण का आलम यह है कि वहां महिला पुलिसकर्मियों की संख्या कम हो रही है. वहां कुल पुलिसकर्मी 41,683 हैं, जिनमें महिलाएं 1,691 हैं. एक सर्वे के मुताबिक हरियाणा में कोई परिवार अपनी बेटियों को पुलिस की नौकरी में भेजना नहीं चाहता.
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक, दिल्ली पुलिस की 71,631 की कुल संख्या में महिला पुलिस संख्या मात्र 5,069 यानी 7 प्रतिशत है. 37 उच्च पदों पर एक भी महिला नहीं है और 33 डीसीपी में सिर्फ तीन महिला हैं. हालांकि, चतुर्थ श्रेणी में तुलनात्मक रूप से महिलाओं की संख्या अधिक है. वहां महिलाओं की उपस्थिति 18.66 प्रतिशत है. केंद्रीय गृह मंत्रलय पहले ही राज्य सरकारों को लिख चुका है कि महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ायी जाये. महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराध तथा आपराधिक घटनाओं में महिलाओं की भागीदारी के कारण ऐसा करना जरूरी है. राष्ट्रीय पुलिस कमीशन ने भी नवंबर, 1980 में ही सिफारिश की थी कि हर पुलिस स्टेशन पर महिलाकर्मियों की संख्या 10 प्रतिशत की जानी चाहिए.
इसी विचार-विमर्श के बीच पिछली यूपीए सरकार ने पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए अपील जारी की थी. अब नवगठित राजग सरकार ने पिछली सरकार के इस निर्णय को आगे बढ़ाते हुए उसमें तेजी लाने का संकेत दिया है. सरकार ने केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस बल में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने और सभी राज्य सरकारों से इसे लागू करने की बात कही है. गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्तर पर पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी महज 5.33 फीसदी है.
सरकार के इस कदम से एक तरफ जहां महिलाओं की रोजगार क्षेत्र में उपस्थिति बढ़ेगी, वहीं थानों के अंदर महिलाओं की संख्या बढ़ने से वहां के वातावरण को सहज बनाया जा सकता है. यद्यपि यह नहीं कहा जा सकता है कि महिला कर्मियों की उपस्थिति मात्र से पुलिस बल जेंडर संवेदनशील हो जायेगा. लेकिन, सार्वजनिक दायरे में महिलाओं की अधिकाधिक उपस्थिति पुरुष वर्चस्व की मानसिकता को तोड़ेगी.
अब तक यही देखा गया है कि पुलिसिया आतंक से अपराधी तो डरते नहीं हैं, अपराधों के शिकार लोग उससे मदद मांगने में जरूर डरते हैं. यदि किसी के दरवाजे पुलिस की वर्दी में कोई आये, तो वह समाज में संकोच और बेइज्जती महसूस करता है कि लोग क्या सोचेंगे? पुलिसकर्मियों को लोगों के बीच घुल-मिल कर ही काम करना चाहिए न कि खौफ बना कर. ऐसे में पुलिस थानों के वातावरण पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है, ताकि पीड़ित बिना भय के अपनी शिकायत लेकर वहां जा सके. वर्तमान महिला पुलिसकर्मियों से जब मीडिया ने बात की, तब उन्होंने थानों के माहौल को सुधारने को बड़ी जरूरत के तौर पर रेखांकित किया. कुछ समय पहले मुंबई पुलिस की तरफ से एक अनूठी पहल के तहत वरिष्ठ महिला पुलिसकर्मी की मौजूदगी में महिला पुलिसकर्मियों के साथ जेंडर कार्यशाला का आयोजन किया गया था, जिसमें महिला पुलिस कर्मियों ने अपने अनुभव साझा किये थे. उन्होंने बताया कि थाने में पुरुष पुलिसकर्मियों की भाषा बहुत असंवेदनशील होती है.
यह भी गौर करने लायक बात है कि इस आरक्षण की जरूरत को इसलिए महसूस किया गया, क्योंकि महिला विरोधी हिंसा का ग्राफ बढ़ता जा रहा था. यानी महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुद्दे को सरकार महज पुलिस बल के माध्यम से हल करना चाहती है और वह भी महिला पुलिस पर जिम्मेवारी डालेगी. यानी पुलिस बल में महिलाओं को समान अवसर मिले, यह सोच अब भी नहीं है और यह एक गंभीर समस्या का सतही समाधान पेश करने का प्रमाण है. इस फैसले से स्त्रीविरोधी हिंसा पर कितना लगाम लगेगा, इसका आकलन सरकार करती रहे. फिलहाल इस फैसले का स्वागत होना चाहिए, क्योंकि हर क्षेत्र में न सिर्फ 33 फीसदी बल्कि बराबर भागीदारी का हक महिलाओं को मिले, यह जरूरी है. सरकारों की जिम्मेवारी यह बननी चाहिए कि वे इसे कभी आरक्षण तो कभी बिना आरक्षण के भी लागू करने का प्रयास करें.