पीछे रह गये पुरुष

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार kshamasharma1@gmail.com वर्षों तक गैस सिलिंडर देने के लिए एक लड़का आता था. वह दो विषयों में एमए था. दलित था, उसकी कहीं नौकरी नहीं थी. हाल ही में दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा की तस्वीर छपी थी, जहां सैकड़ों लड़के दिहाड़ी मजदूरी के लिए खड़े थे. वे उच्च शिक्षित थे, मगर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 26, 2019 6:05 AM
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
kshamasharma1@gmail.com
वर्षों तक गैस सिलिंडर देने के लिए एक लड़का आता था. वह दो विषयों में एमए था. दलित था, उसकी कहीं नौकरी नहीं थी. हाल ही में दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा की तस्वीर छपी थी, जहां सैकड़ों लड़के दिहाड़ी मजदूरी के लिए खड़े थे. वे उच्च शिक्षित थे, मगर कहीं नौकरी न मिल पाने के कारण मजदूरी करना चाहते थे. नगर-नगर कस्बे-कस्बे यही हालत है.
बेरोजगारी, बीमारी तथा अन्य विवाद जिसमें पारिवारिक विवाद शामिल हैं, के कारण हर साल चौरानबे हजार पुरुष आत्महत्या करते हैं. लेकिन ये मामूली खबर भी नहीं बनते. पता नहीं क्यों सरकारों, समाज और स्वयंसेवी संस्थाओं ने इनकी समस्याओं से आंखें मूंद ली हैं.
समाज या देश के उत्थान की जब भी बातें होती हैं, सबके भले और विकास की बातें भी होती हैं. यही लोकतंत्र का नियम भी है. लेकिन सरकार की तमाम योजनाओं से पुरुष गायब रहते हैं. मान लिया गया है कि वे सर्वशक्तिमान पैदा होते हैं, जीवनभर वैसे ही रहते हैं. उन्हें किसी भी सहायता की जरूरत नहीं.
पिछले चार दशक से विकास के अवसरों से इन्हें वंचित किया गया है. इन्हें लगातार नकारात्मक रूप से दिखाया जाता रहा है, क्योंकि वे पुरुष हैं. पुरुषों की छवि ऐसी बना दी गयी है, मानो इस देश के सारे पुरुष अपराधी हैं, दुष्कर्मी हैं, महिलाओं को सतानेवाले हैं, या घरेलू हिंसा करनेवाले हैं.
सच तो यह है कि आज भी हमारे देश में पुरुष न केवल अपने बाल-बच्चों, बल्कि अपने माता-पिता की देखभाल करते हैं. पत्नी के घर वालों को भी कई बार संभालते हैं.
दुनिया की हर जिम्मेदारी को निभाते हैं. उनसे यह भी उम्मीद की जाती है कि वे महाबली हों और हर तरह की हिंसा से अपने घर की और बाहर की भी औरतों को बचायें. जो पुरुष अपराधी हों, महिलाओं को सतानेवाले हों, उन्हें तो सजा जरूर मिलनी चाहिए. मगर दुनिया का हर पुरुष सिर्फ खलनायक है, यह सोच गलत है.
मीडिया को भी पुरुषों की ऐसी छवि निर्मित करने से बाज आना चाहिए. स्त्रियों को न्याय मिले, यह तो सब चाहते हैं, लेकिन स्त्रियों को न्याय क्या तभी मिलेगा, जब संसार के सब पुरुषों को अपराधी बना दिया जायेगा?
यह सोच इंसानियत के खिलाफ है. हमें गरीब, बेसहारा, बेरोजगार, तमाम तरह के अपराधों के शिकार पुरुषों की हालत के बारे में भी उसी मानवीयता से सोचना चाहिए, जैसे कि हम अन्य लोगों के बारे में सोचते हैं. यदि समाज में पुरुषों को पिछड़ने के लिए छोड़ दिया जाये और हर योजना से उन्हें बाहर रखा जाये, तब क्या देश और समाज का भला हो सकता है?
पुरुषों की समस्याओं को उठानेभर से किसी को स्त्री विरोधी क्यों कह दिया जाये?
पुरुषों की भी ढेरों समस्याएं हैं, जिन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष चौरानवे हजार पुरुष आत्महत्या करते हैं. वे बेहद गरीब हैं, पढ़े-लिखे होने के बावजूद बेरोजगार हैं, लेकिन उनकी समस्याओं से निपटने के लिए शायद ही कोई योजनाएं बनती हों.

Next Article

Exit mobile version