धैर्य खोते राजनेता और गुम होती दलीय निष्ठा

अनुज कुमार सिन्हा हाल में चुनाव से जुड़ीं कुछ राजनीतिक घटनाआें-खबराें पर नजर डालिए. सारी स्थिति स्पष्ट हाे जायेगी. झारखंड की घटनाआें की ही चर्चा करें. पहली खबर : भाजपा आैर आजसू के बीच समझाैता हाेने के बाद गिरिडीह लाेकसभा सीट आजसू के खाते में जाती है. भाजपा सांसद रवींद्र पांडेय का टिकट कट जाता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 26, 2019 8:50 AM
an image
अनुज कुमार सिन्हा
हाल में चुनाव से जुड़ीं कुछ राजनीतिक घटनाआें-खबराें पर नजर डालिए. सारी स्थिति स्पष्ट हाे जायेगी. झारखंड की घटनाआें की ही चर्चा करें. पहली खबर : भाजपा आैर आजसू के बीच समझाैता हाेने के बाद गिरिडीह लाेकसभा सीट आजसू के खाते में जाती है. भाजपा सांसद रवींद्र पांडेय का टिकट कट जाता है.
पूरे क्षेत्र में विराेध प्रदर्शन कर दबाव बनाने का प्रयास किया जाता है. दूसरी खबर : रांची में सांसद रामटहल चाैधरी का टिकट कटने की खबर (अंतिम निर्णय के पहले ही) आते ही भाजपा कार्यालय के बाहर प्रदर्शन हाेने लगता है. तीसरी खबर : महागठबंधन में राजद काे दाे सीट नहीं मिलने पर प्रदेश राजद अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी नयी दिल्ली जाकर अपने कई सहयाेगियाें के साथ भाजपा में शामिल हाे जाती है.
ये तीनाें घटनाएं बहुत कुछ बाेल जाती हैं. पहली दाेनाें घटनाएं टिकट कटने काे लेकर है लेकिन तीसरी घटना थाेड़ी अलग है. पहली दाेनाें घटना भाजपा की नीतियाें-रणनीतियाें की है जबकि तीसरी घटना अखबाराें की विश्वसनीयता से भी जुड़ी है.
इसी 18 मार्च काे प्रभात खबर में खबर छपती है कि अन्नपूर्णा देवी भाजपा के संपर्क में है. दूसरे दिन अन्नपूर्णा देवी संवाददाता सम्मेलन कर भाजपा के संपर्क में हाेने की खबर का खंडन करती है. पाठक यही समझते हैं कि खबर गलत थी. 25 मार्च काे अन्नपूर्णा देवी दिल्ली जाती है आैर भाजपा में विधिवत शामिल हाे जाती है. यानी खबर साै फीसदी सही थी. ताे सवाल, क्याें किया खंडन? भाजपा में जाने की खिचड़ी ताे पक ही रही थी. यूपीए के साथ सीटाें काे लेकर माेलभाव (एक सीट या दाे सीट) ताे चल ही रहा था. यह सिर्फ अन्नपूर्णा देवी की बात नहीं है. अमूनन राजनेता नहीं चाहते कि सच्ची खबरें सार्वजनिक हाें. पहले बयान देना आैर फिर हंगामा हाेने पर मुकर जाना अधिकांश नेताआें के चरित्र में शामिल हाे गया है.
सारा दाेष मीडिया पर मढ़ देना. दूसरे दलाें के नेताआें ने भी हाल में ऐसा ही किया है. अगर एक-एक कर सारे मामलाें का पाेस्टमार्टम हाेने लगे ताे ऐसे नेताआें की कलई खुल जायेगी. कभी भारतीय राजनीति चरित्र के मामले में बहुत समृद्ध हुआ करती थी. कथनी आैर करनी में फर्क नहीं हाेता था. एक बार अगर कहा, बयान दिया ताे उस पर अडिग रहते थे. अब माैकापरस्ताें का समय है. समय आैर लाभ-हानि देख कर बयान बदल दिये जा रहे हैं. ऐसे नेताआें पर समाज कैसे भराेसा करे.
चुनाव का वक्त है. अब दलीय निष्ठा में कमी आयी है. स्वार्थ हावी है. आज एक दल में टिकट कटा ताे दूसरे दल से टिकट लेने का भरपूर प्रयास हाेता है. मूल्य (वैल्यूज) की काेई क्याें चिंता करे? किसी तरह, किसी भी दल से चुनाव लड़ना है, जीतना है. नैतिक आैर अनैतिक पर कहां गाैर किया जाता है. झारखंड भी इससे अछूता नहीं रहा है. पहले भी दल बदल कर चुनाव लड़ने की परंपरा रही है.
ब्लैकमेलिंग की राजनीति का जमाना है. काेई जाति के नाम पर राजनीतिक धाैंस दिखाता है ताे काेई साधन आैर पकड़ के नाम पर. निगेटिव पॉलिटिक्स की धमकी अलग से. अधिकांश नेताआें में धैर्य नहीं है.
टिकट मिलना या कटना चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा है. इसे स्वीकार करना चाहिए. अगर आप सच्चे राजनेता हैं ताे जनता की सेवा के लिए संसद या विधानसभा में पहुंचना आवश्यक नहीं है. बगैर वहां गये ही आप जनसेवा कर सकते हैं लेकिन हर काेई सांसद-विधायक बनना चाहता है. चार-छह बार सांसद-विधायक बनने के बावजूद मन नहीं भरता. इच्छा जाे न करा दे. ध्यान रहे कि सब्र करने का फल मीठा हुआ करता है.
पर इसी राजनीति में कई ऐसे लाेग हैं जाे टिकट मिले या न मिले, उन्हें फर्क नहीं पड़ता. ऐसे उदाहरणाें से राजनीति का कद बढ़ता है, आस्थाएं बढ़ती हैं, जनता का नेताआें पर भराेसा बढ़ता है. कड़िया मुंडा का ही उदाहरण लीजिए. खूंटी से उन्हें इस बार टिकट नहीं मिला है.
लेकिन बयान देखिए. कहते हैं-राजनीति मेरा पेशा नहीं. पहले भी खेती करता था आैर आगे भी करूंगा. काेई गिला-शिकवा नहीं. पार्टी ने जाे उन्हें दिया, उनके लिए वह महत्वपूर्ण है न कि टिकट. टिकट न मिलने के बाद जाे भी नेता ऐसे विचार रखते हाें, उनके लिए आगे का रास्ता कभी बंद नहीं हाेता. राजनीति में धैर्य भी आवश्यक है जिसकी कमी अब दिखती है. राष्ट्रीय स्तर पर सभी दलाें में ऐसे नेता मिल जायेंगे, जाे आज इधर, कल उधर. बार-बार इधर से उधर हाेने से जनता की नजर में ये नेता गिर जाते हैं.
काश, इस बात काे नेताआें ने महसूस किया हाेता. अभी चुनाव का समय है. फायदा दिखा ताे उछल-कूद हाेती रहेगी. इसे अब काेई राेक नहीं सकता. लेकिन ये नेता गाैर करें कि इतिहास उसी राजनेता काे सम्मान के साथ याद करता है जिसने गरिमा, ईमानदारी, मूल्याें के साथ काेई समझाैता नहीं किया.
Exit mobile version