मुद्दों पर बहस हो

चुनावी मैदान में संघर्षरत विभिन्न दल और उम्मीदवार अपने वादों और दावों के साथ मतदाताओं का दरवाजा खटखटाना शुरू कर चुके हैं. आगामी दिनों में करीब 90 करोड़ भारतीय अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. हमारा देश न सिर्फ आबादी और आकार के लिहाज से एक बड़ा देश है, बल्कि वह सबसे तेजी से उभरती हुई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 27, 2019 6:48 AM
चुनावी मैदान में संघर्षरत विभिन्न दल और उम्मीदवार अपने वादों और दावों के साथ मतदाताओं का दरवाजा खटखटाना शुरू कर चुके हैं.
आगामी दिनों में करीब 90 करोड़ भारतीय अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. हमारा देश न सिर्फ आबादी और आकार के लिहाज से एक बड़ा देश है, बल्कि वह सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था भी है. हमारे सामने गंभीर समस्याओं की भरमार भी है.
ऐसे में चुनाव प्रचार सिर्फ ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करने की कवायद नहीं है. इस प्रक्रिया में सरकार में शामिल और समर्थन कर रहे दल जहां अपनी उपलब्धियों का हिसाब देते हैं, वहीं विपक्षी खेमा उनकी खामियों का ब्यौरा जनता के सामने रखता है. इस दौरान दोनों पक्ष भविष्य की योजनाओं की रूप-रेखा भी प्रस्तुत करते हैं.
परंतु, चुनाव अभियान में मुद्दों पर गंभीर चर्चा की कमी है. विभिन्न मसलों पर सामान्य बयानबाजी कर पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में ऊर्जा खर्च कर रही हैं. प्रतिष्ठित संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के सर्वे के मुताबिक, रोजगार के अच्छे अवसर, बेहतर स्वास्थ्य सेवा, पेयजल, अच्छी सड़कें और सार्वजनिक यातायात के साधन लोगों के लिए प्रमुख मुद्दे हैं. खेती-किसानी से जुड़े मसले भी मतदाताओं के लिए अहम हैं. प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे में बताया गया है कि लोग बेरोजगारी की समस्या का ठोस समाधान चाहते हैं और कारोबार को बढ़ाने की जरूरत महसूस करते हैं.
सुरक्षा को लेकर भी लोगों में चिंता है. इस अध्ययन में यह भी पाया गया है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लोगों का भरोसा बढ़ रहा है. तमाम खामियों के बावजूद हमारी लोकतांत्रिक संस्थाएं लगातार मजबूत होती रही हैं तथा पूर्ववर्ती और मौजूदा सरकारों के नेतृत्व में भारत उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है. चुनाव को अनाप-शनाप बयानों या हरकतों से विवादित या मजाक बना देना बेहद नुकसानदेह हो सकता है.
पार्टियों का वैचारिक तनाव मुद्दों को चिन्हित करने, उन्हें विश्लेषित करने तथा उनका समाधान निकालने की दिशा में निर्देशित होना चाहिए. अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी का फायदा जन-जन तक पहुंचे और दूर-दराज के इलाकों में भी विकास हो सके, दलों की जोर-आजमाइश का ध्यान इस पर होना चाहिए. अभद्र टिप्प्णियों और भेद-भाव बढ़ानेवाले बयानों से परहेज किया जाना चाहिए. पार्टियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि उन्हें बार-बार जनता की अदालत में पेश होना है. उन्हें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मतदाताओं का बड़ा हिस्सा युवा है और देश के भविष्य के साथ उनका भविष्य जुड़ा हुआ है.
चुनाव मुद्दों पर हों और इनमें शुचिता बनी रहे, इसकी निगरानी का जिम्मा सिर्फ चुनाव आयोग और प्रशासन का नहीं है. नागरिकों और मीडिया को भी सचेत रहना चाहिए तथा गलतियों और गड़बड़ियों पर नेताओं को आगाह करना चाहिए. सभी के सकारात्मक योगदान से ही लोकतंत्र का यह महापर्व सफलतापूर्वक संपन्न हो सकेगा.

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