पर्यावरण की चिंता

देश की ऊर्जा आवश्यकताओं और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन साधने के प्रयासों के बावजूद कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी चिंताजनक है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2018 में 2,299 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हुआ है, जो 2017 की तुलना में 4.8 फीसदी अधिक है. अमेरिका और चीन की तुलना में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 28, 2019 8:18 AM
देश की ऊर्जा आवश्यकताओं और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन साधने के प्रयासों के बावजूद कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी चिंताजनक है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2018 में 2,299 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हुआ है, जो 2017 की तुलना में 4.8 फीसदी अधिक है. अमेरिका और चीन की तुलना में हमारे देश में कार्बन कम उत्सर्जित होता है, किंतु बढ़ोतरी की यह दर इन दोनों से ज्यादा है.
भारत में पिछले साल उत्सर्जन बढ़ने का प्रमुख कारण कोयला का बढ़ता इस्तेमाल है. अर्थव्यवस्था की गति को बरकरार रखने और बड़ी आबादी के लिए ऊर्जा की मांग पूरी करना एक बड़ी चुनौती है. इस वजह से वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में भारत का हिस्सा सात फीसदी है और इसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वैश्विक औसत का करीब 40 फीसदी है. लेकिन यह सवाल भी है कि अगर ऊर्जा हमारी जरूरत है, तो उत्सर्जन का सामना भी हमें ही करना है. ग्रीनपीस की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया के 30 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 22 भारत में हैं.
वाहनों और औद्योगिक संयंत्रों से निकलता धुआं इस प्रदूषण का मुख्य कारण है. यह जानलेवा जहर प्लास्टिक कचरे और जल प्रदूषण के साथ भयानक स्तर पर पहुंच चुका है. प्लास्टिक कचरे के आयात पर रोक, एकल उपयोग प्लास्टिक पर पाबंदी, नदी सफाई योजनाएं आदि सराहनीय पहल हैं, पर समेकित रूप से त्वरित उपायों की जरूरत है.
भारत जलवायु परिवर्तन के असर से निपटने और धरती के बढ़ते तापमान में कमी लाने के अंतरराष्ट्रीय पहलों में सक्रिय भागीदारी कर रहा है. कोयले के इस्तेमाल में फिलहाल कटौती संभव नहीं है, पर ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के विस्तार पर सरकार गंभीरता से ध्यान दे रही है. वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में कमी करने का कठिन लक्ष्य निर्धारित किया गया है. भारत ने तब तक अपनी 40 फीसदी ऊर्जा जरूरतों को स्वच्छ स्रोतों से पूरा करने का संकल्प भी लिया है.
इसके लिए 2022 तक 100 गीगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किये जायेंगे. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने रेखांकित किया है कि 2017 की तुलना में 2018 में स्वच्छ ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना में 10.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. यह उत्साहवर्द्धक है, पर अभी यात्रा लंबी है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की स्वच्छ ऊर्जा सूची में 115 देशों में भारत 76वें पायदान पर है. इस प्रयास में बड़ा अवरोध निवेश की अनुपलब्धता है. भारत का आकलन है कि जलवायु संकल्पों को पूरा करने के लिए करीब 150 ट्रिलियन रुपये की जरूरत है.
यह खर्च इस मद में सभी विकासशील देशों के अनुमानित खर्च का लगभग 71 फीसदी है. स्वच्छ ऊर्जा खर्च में सहयोग करने में विकसित देशों की आनाकानी से भी मुश्किलें आ रही हैं. देश और दुनिया के बेहतर भविष्य के लिए भारत को हर स्तर पर अपनी सक्रियता को तेज करने की दरकार है.

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