सूरमा भोपाली का अलमस्त अंदाज
शफक महजबीन टिप्पणीकार mahjabeenshafaq@gmail.com संयुक्त राज्य अमेरिका के संस्थापकों में एक बेंजामिन फ्रैंकलिन एक लेखक, व्यंग्यकार, राजनेता, वैज्ञानिक, और दार्शनिक भी थे. बेंजामिन फ्रैंकलिन कहते हैं- ‘मुसीबत ने दरवाजा खटखटाया, लेकिन हंसी सुनकर वह वापस चली गयी.’ हमारे जीवन में हंसी की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, फ्रैंकलिन की इस बात से समझा जा सकता है. […]
शफक महजबीन
टिप्पणीकार
mahjabeenshafaq@gmail.com
संयुक्त राज्य अमेरिका के संस्थापकों में एक बेंजामिन फ्रैंकलिन एक लेखक, व्यंग्यकार, राजनेता, वैज्ञानिक, और दार्शनिक भी थे. बेंजामिन फ्रैंकलिन कहते हैं- ‘मुसीबत ने दरवाजा खटखटाया, लेकिन हंसी सुनकर वह वापस चली गयी.’ हमारे जीवन में हंसी की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, फ्रैंकलिन की इस बात से समझा जा सकता है.
मनोवैज्ञानिक भी बताते हैं कि हंसने के बेशुमार फायदे हैं, जैसे तनाव कम होना, बीपी पर नियंत्रण, सिर दर्द से छुटकारा आदि. लेकिन, भाग-दौड़ भरी जिंदगी में हम तो जैसे हंसना ही भूल गये हैं. यही वजह है कि अवसाद के शिकार लोगाें की संख्या में तेजी से इजाफा होता जा रहा है.
कुछ डॉक्टर भी अपने मरीजों को कॉमेडी फिल्में देखने की सलाह देते हैं, जिसमें कॉमेडियन अपने हास्य-अभिनय से स्वस्थ मनोरंजन करते हैं. उन्हीं कॉमेडियन में एक हैं- सैयद इश्तेयाक अहमद जाफरी, जिन्हें हिंदी सिनेमा में ‘जगदीप’ के नाम से जाना जाता है. जगदीप को ‘कॉमेडी का सरदार’ का लकब हासिल है.
सैयद इश्तेयाक अहमद जाफरी का जन्म 29 मार्च, 1939 को मध्य प्रदेश के दतिया में हुआ था. भारत के विभाजन के वक्त अपनी छोटी सी उम्र में ही वे मुंबई चले गये थे. बचपन में ही पिता का हाथ छूट गया.
उनकी मां ने उनकी परवरिश की, जो यतीमखाने में खाना पकाती थीं, लेकिन इन्हें स्कूल जरूर भेजती थीं. लेकिन, मजबूरी के चलते उन्होंने पढ़ाई छोड़कर कुछ काम करने का फैसला किया. मां के मना करने पर भी वे नहीं माने और पतंग बनाने एवं साबुन बेचने लगे. जहां वे काम करते थे, वहां एक अजनबी आदमी ने उनसे फिल्म में काम करने की बात कही और तीन रुपये मिलने की बात पर वे तैयार हो गये.
जब मां के साथ वे स्टूडियो पहुंचे, तो वहां बच्चे नाटक कर रहे थे. एक उर्दू डॉयलाग को कोई बच्चा नहीं बोल पा रहा था. उर्दू जाफरी की मादरी जबान थी. एक बच्चे ने बताया कि वह डायलॉग बोलने का छह रुपये मिलेंगे, तब इन्होंने वह डायलॉग बोलकर दिखा दिया. यहीं से बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट उनके फिल्मी करियर की शुरुआत हुई.
साल 1953 में फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ में वे कॉमिक भूमिका में नजर आये. इसके बाद तो एक से बढ़कर एक फिल्मों में बेहतरीन काम किया. इन्होंने बतौर हीरो भी कई फिल्मों में काम किया, जिसमें एक फिल्म ‘भाभी’ काफी चर्चित रही. फिल्म ‘शोले’ में उनके निभाये किरदार ‘सूरमा भोपाली’ के बाद तो लोग उन्हें सूरमा भोपाली ही कहकर पुकारने लगे.
जगदीप ने उस दौर में कॉमेडी को अपना करियर बनाया, जब जॉनी वॉकर, महमूद, केष्टो मुखर्जी और असरानी जैसे दिग्गज हास्य कलाकार हिंदी सिनेमा के सिरमौर बने हुए थे.
लेकिन, इन्होंने अपने अलमस्त अंदाज से कॉमेडी किंग बनकर लोगों के दिलों पर राज किया. आज के दौर की कॉमेडी तो सिर्फ अश्लीलता से भरी हुई है. कॉमेडियन की जगह अभिनेता ही अश्लील कॉमेडी कर रहे हैं. आज स्वस्थ कॉमेडी का अभाव है. ऐसे में हमें जगदीप का योगदान बहुत याद आता है.