सतत फूलाय नम:!

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार puranika@gmail.com अप्रैल-फूल विषय पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में चालू विश्वविद्यालय ने इस निबंध को प्रथम पुरस्कार विजेता घोषित किया है- अप्रैल-फूल में दो शब्द होते हैं, एक अप्रैल और दूसरा फूल. फूल गुलाब का भी होता है गेंदे का भी. गुलाब के फूल की डिमांड का मौसम 14 फरवरी के वैलेंटाइन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 1, 2019 1:39 AM

आलोक पुराणिक

वरिष्ठ व्यंग्यकार
puranika@gmail.com
अप्रैल-फूल विषय पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में चालू विश्वविद्यालय ने इस निबंध को प्रथम पुरस्कार विजेता घोषित किया है-
अप्रैल-फूल में दो शब्द होते हैं, एक अप्रैल और दूसरा फूल. फूल गुलाब का भी होता है गेंदे का भी. गुलाब के फूल की डिमांड का मौसम 14 फरवरी के वैलेंटाइन डे के आसपास रहता है, पर अप्रैल वाले फूल का मौसम बारह महीनों रहता है, खासकर चुनाव में तो अप्रैल वाले फूल का जलवा ही अलग होता है.
नेता यूं तो आम तौर पर पब्लिक को बारह महीने फूल ही समझता है, पर चुनाव के ठीक पहले इस फूल को खास फूल बनाया जाता है. रोटी कपड़ा और मकान के प्राॅमिस पुराने हो गये हैं. अब तो सैटेलाइट, हर घर के सामने एयरपोर्ट और मेट्रो स्टेशन. घसौंडा नामक कांस्टीट्यूएंसी से खड़े एक पहलवान ने घोषणा की है कि उसके गांव में बिकनेवाले आइटमों पर जीएसटी नहीं लगेगा, गांव में पंद्रह एयरपोर्ट होंगे. ऐसी घोषणाओं के फूलपन अगर पहलवानजी को कोई याद दिलाये, तो पहलवानजी कहते हैं कि अगर फूल ही बनाना है, तो बड़ा वाला बनाओ. छोटा-मोटा फूल बनाने का क्या फायदा है.
अप्रैल वाले फूल की एक खासियत यह होती है कि यह फूल बनने के लिए तैयार ही नहीं, बल्कि प्रतिबद्ध तक होता है. दरअसल, यह बात औसत फूल की तमाम गतिविधियों को देखकर समझी जा सकती है. फूल जो सीरियल देखता है, उसमें नागिन और चुड़ैल मार मचाये रहती हैं. फूल इन सीरियलों को हिट करा देता है.
जो चुड़ैलों को हिट करा दे, नेताओं को उनसे बहुत उम्मीद हो जाती है, यह तो हमें भी हिट करा देगा. चुड़ैल भी हिट होती हैं और नेता भी. फूल एक चुड़ैल से दूसरी पर चला जाता है, एक नेता से दूसरे पर चला जाता है, पर उसका बुनियादी फूलपन कम नहीं होता.
भारत में फूलपुर एक लोकसभा कांस्टीट्यूएंसी का नाम भी है. कहा जा सकता कि संपूर्ण भारत ही फूलपुर है. फूल से फूल मिलते हैं, तो मामला फूलपुर का हो जाता है.
फूल ना पूछता कि जो नेता कल तक राष्ट्रवादी पार्टी का प्रचंड समर्थक था, वह रातों-रात कतई घणा कांग्रेसी कैसे हो गया? फूल के अगाध फूलपन पर नेताओं को परम अगाध भरोसा होता है, और जैसा कि पहले बताया गया है कि फूल निराश नहीं करता.
लोकतंत्र में फूल महोत्सव सतत चलते हैं. लोकसभा चुनाव निपटे, तो विधानसभा चुनाव आ लेते हैं. विधानसभा चुनाव निबटे, तो कहीं-कहीं नगर निगम चुनाव और पंचायती चुनाव भी आ लेते हैं. मतलब हर सीजन में कहीं-ना-कहीं कोई फूल बन ही रहा होता है. इसलिए तो परम विद्वान संपूर्ण भारत को फूलपुर घोषित करते हैं. जिसमें हर कहीं फूल बनने और फूल बनाये जाने की संभावनाएं प्रबल रहती हैं.
अगर कोई एक अप्रैल को अप्रैल फूल कहे, तो उसे जवाब दिया जाना चाहिए कि हम तो सतत फूल बनते हैं, सतत फूलाय नम:! तो फिर आइए संपूर्ण फूलपुर के निवासी परस्पर एक-दूसरे को कहें- सतत फूलाय नम:!

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