चुनाव में इंटरनेट
डिजिटल तकनीक हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुका है और इसका प्रसार लगातार बढ़ता जा रहा है. एक ओर जहां इससे सेवा और सूचना की उपलब्धता सुगम हुई है, वहीं झूठी खबरों और अफवाहों का खतरनाक सिलसिला भी बना है. देश-दुनिया के अनुभवों को मद्देनजर यह जरूरी हो जाता है कि चुनाव जैसी […]
डिजिटल तकनीक हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुका है और इसका प्रसार लगातार बढ़ता जा रहा है. एक ओर जहां इससे सेवा और सूचना की उपलब्धता सुगम हुई है, वहीं झूठी खबरों और अफवाहों का खतरनाक सिलसिला भी बना है.
देश-दुनिया के अनुभवों को मद्देनजर यह जरूरी हो जाता है कि चुनाव जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया में सूचना तकनीक की सकारात्मक भूमिका सुनिश्चित करने का प्रयास हो, ताकि मतदाताओं के डिजिटल डेटा की सुरक्षा भी हो सके और इंटरनेट का गलत इस्तेमाल भी न हो सके.
आज यह एक स्थापित तथ्य है कि बड़ी तकनीकी कंपनियां उपभोक्ताओं के डेटा का विश्लेषण कर उन्हें राजनीतिक तौर पर प्रभावित करने की कोशिश में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लगी हुई हैं. पश्चिमी लोकतंत्रों में आज यह एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है.
हमारे देश में भी ऐसे प्रयोगों के उदाहरण सामने आ चुके हैं. यदि ऐसा फिर से होता है, तो यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह हो सकता है. दूसरी चुनौती झूठी खबरों और अफवाहों की है. हालिया अध्ययनों से इंगित होता है कि युवाओं का बड़ा हिस्सा समाचारों के लिए वेबसाइटों और सोशल मीडिया पर निर्भर करता है.
पिछले कुछ सालों से स्मार्टफोन की तादाद बड़ी तेजी से बढ़ी है तथा सस्ती दरों पर इंटरनेट का दायरा भी विस्तृत हुआ है. यह संतोष की बात है कि चुनाव आयोग ने इंटरनेट की खूबियों और खामियों को ध्यान में रखते हुए कुछ कदम उठाये हैं. राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को सोशल मीडिया से आपत्तिजनक और विवादास्पद चीजों को हटाने का निर्देश देने के साथ आयोग ने बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों से बैठक कर उनके साइटों के दुरुपयोग को रोकने के लिए रणनीति तैयार की है.
आज हमारे देश में 46 करोड़ से अधिक इंटरनेट प्रयोक्ता हैं. इसका एक मतलब यह है कि करीब 90 करोड़ मतदाताओं में से ज्यादातर किसी-न-किसी रूप में ऑनलाइन माध्यमों से सूचना पाने की स्थिति में हैं. इस चुनाव में उम्मीदवारों और पार्टियों को सोशल मीडिया के जरिये किये गये प्रचार के खर्च का हिसाब भी देना होगा.
बंबई उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग से मतदान के दो दिन पूर्व सोशल मीडिया पर पैसे देकर राजनीतिक या चुनावी सामग्री के प्रकाशन को रोकने के बाबत जवाब मांगा है. इस संदर्भ में यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि इंटरनेट बहुत बड़ा है और वहां कुछ ही समय में सूचनाएं फैल जाती हैं. सोशल मीडिया और साइटों के जरिये झूठ और भ्रामक बातें फैला कर मतदाताओं को प्रभावित करने से रोकना चुनाव आयोग के लिए आसान काम नहीं है.
यदि मतदाताओं के साथ-साथ पार्टियां और उम्मीदवार खुद सजग रहें तथा तकनीकी कंपनियां अपने स्तर पर सक्रिय रहें, तो आयोग को बड़ी मदद मिल सकती है. सोशल मीडिया के लिए कंपनियों की सलाह से आयोग ने जो आचार संहिता तैयार की है, उसका जोर-शोर से प्रचार किया जाना चाहिए, ताकि लोगों में भी जागरूकता पैदा हो सके.