तमिलनाडु में कांटे का मुकाबला
आर राजागोपालन वरिष्ठ पत्रकार rajagopala- 1951@gmail.com तमिलनाडु का नाम आते ही आपके जेहन में जयललिता, एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) और करुणानिधि जैसे कद्दावर नेताओं की यादें ताजा हो जाती होंगी. वर्ष 2019 के आम चुनाव इस राज्य में ऐसे पहले चुनाव होने जा रहे हैं, जिसके अभियान से इस तिकड़ी में बाकी बचे दो नेता भी […]
आर राजागोपालन
वरिष्ठ पत्रकार
rajagopala- 1951@gmail.com
तमिलनाडु का नाम आते ही आपके जेहन में जयललिता, एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) और करुणानिधि जैसे कद्दावर नेताओं की यादें ताजा हो जाती होंगी. वर्ष 2019 के आम चुनाव इस राज्य में ऐसे पहले चुनाव होने जा रहे हैं, जिसके अभियान से इस तिकड़ी में बाकी बचे दो नेता भी अनुपस्थित हैं. तमिलनाडु में 18 अप्रैल को होनेवाले मतदान में इस राज्य के मतदाता कुल 39 लोकसभा सदस्यों के चुनाव करेंगे. पड़ोस के केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी की एक सीट के लिए भी उसी दिन मतदान होंगे.
इस बार के चुनाव अभियान में यहां के परंपरागत दो खेमों का नेतृत्व क्रमशः डीएमके से करुणानिधि के सुपुत्र एमके स्टालिन और एआइएडीएमके से तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई पलानीस्वामी कर रहे हैं. एआइएडीएमके का डॉ रामदोस की पार्टी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके), विजयकांत की देसिया मुरपोक्कू द्रविड़ कड़गम (डीएमडीके) एवं भाजपा के साथ गठबंधन है. जातियों की दृष्टि से देखने पर यह गठबंधन शक्तिशाली है. दूसरी ओर डीएमके का कांग्रेस, सीपीआइ एवं मुसलिम लीग के साथ गठबंधन है, और इसकी भी पूरे राज्य में दमदार मौजूदगी है.
तमिलनाडु की राजनीति को समझने के लिए इस राज्य में जाति तथा धर्म के प्रभाव को जानना जरूरी है. यहां थेवर, नडार, वन्निआर तथा गोंडर सर्वाधिक शक्तिशाली जातियां हैं. इस हिसाब से एआइएडीएमके ने इस संतुलन को अधिक बेहतर तरीके से थाम रखा है. उधर डीएमके की भी अन्य पिछड़ा वर्गों और अल्पसंख्यकों के बीच अच्छी राज्यव्यापी पैठ है.
स्टालिन ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर रखा है, तो उधर एआइएडीएमके इस पद के लिए नरेंद्र मोदी का समर्थन कर रही है. इससे इन दो खेमों को क्रमशः राहुल और मोदी के समर्थकों का साथ भी मिल जा रहा है. जैसे-जैसे मतदान की तिथि नजदीक आती जा रही है, इन दोनों खेमों के बीच मुकाबला और भी कठिन होता जा रहा है.
तमिलनाडु की राजनीति पर सिने सितारों का भी खासा वर्चस्व रहा है. एमजीआर तथा जयललिता ने अपने कदम सिनेमा जगत से ही सियासत में रखे थे. करुणानिधि ने भी नाटककार तथा नाटकों में अभिनेता, फिल्मों के पटकथा एवं संवाद लेखक तथा गीतकार के रूप में अभिनय एवं सिनेमा के माध्यमों द्वारा अपनी प्रारंभिक लोकप्रियता संवारी थी.
यहां आज भी सिनेमा से लोकप्रिय हुई शख्सीयतों का असर बदस्तूर कायम है. हालांकि, दक्षिण में व्यापक रूप से लोकप्रिय सिनेमा सितारे रजनीकांत इन आम चुनावों में भाग नहीं ले रहे हैं, पर कमल हासन इस अभियान में मौजूद हैं और उनकी पार्टी मक्कल निधि मैयम के उम्मीदवार तमिलनाडु तथा पुदुचेरी के सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं.
ऐसे अनुमान किये गये हैं कि इनमें से लगभग प्रत्येक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में कमल हासन के औसतन 20 हजार मत सुरक्षित हैं, जिनके बल पर उनके उम्मीदवार जीते या नहीं, वे दूसरे उम्मीदवारों की मांद में सेंध लगाने में तो अवश्य ही सफल रहेंगे. ऐसा समझा जाता है कि इससे मुख्य हानि एआइएडीएमके उम्मीदवारों को पहुंचेगी, जिसका प्रत्यक्ष लाभ डीएमके उमीदवारों को मिलेगा.
जयललिता के निधन के बाद उनकी पार्टी में वर्चस्व के लिए चले आंतरिक संघर्ष के दौर में मुख्यमंत्री ई पलानीस्वामी के नेतृत्व को टीटीवी दिनाकरन ने चुनौती दी और फिर अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम के नाम से एक नयी सियासी पार्टी की स्थापना की.
दिनाकरन की इस पार्टी के उम्मीदवार भी इन राज्यों के सभी 40 सीटों से ये चुनाव लड़ रहे हैं और वे एआइएडीएमके उम्मीदवारों के ही वोट काटेंगे. राज्य में जयललिता के कट्टर समर्थक कार्यकर्ताओं की खासी तादाद अब भी मानती है कि दिनाकरन की यह पार्टी ही जयललिता की विरासत की असली हकदार है, इसलिए वह इन उम्मीदवारों के साथ खड़ी है. अतः एआइएडीएमके उम्मीदवारों को यह नुकसान भी झेलना ही होगा.
सियासी रुझानों के मुताबिक एआइएडीएमके तथा डीएमके दोनों को 50-50 प्रतिशत सीटें दी जा रही हैं, पर चुनावी सर्वेक्षणों ने डीएमके को अधिक सीटों का फायदा मिलता बताया है.
राज्य में एआइएडीएमके की सरकार प्रधानमंत्री मोदी तथा केंद्र के समर्थन पर टिकी है. क्या मोदी की लोकप्रियता का लाभ भी एआइएडीएमके को मिल सकेगा? इस प्रश्न का उत्तर सकारात्मक ही है, क्योंकि यहां पहली बार मत दे रहे युवा मतदाताओं में नरेंद्र मोदी खासे लोकप्रिय हैं. ये युवा दस वर्षों के यूपीए शासनकाल में भ्रष्टाचार तथा घोटालों के दौर से वाकिफ हैं और उनके लिए यह एक प्रमुख मुद्दा है.
दूसरी ओर, यह भी सत्य है कि राजीव गांधी के साथ राहुल तथा प्रियंका से सहानुभूति रखनेवाले अपनी जगह कायम हैं, क्योंकि तमिलनाडु ही राजीव गांधी की निधन स्थली है. राहुल और प्रियंका जब भी तमिलनाडु के दौरे पर आते हैं, तो वे पिता को श्रद्धांजलि देने श्रीपेरुंबुदूर अवश्य जाया करते हैं.
स्थानीय मुद्दों के रूप में पानी, आवास, सड़कों की समस्याओं की अहमियत भी अपनी भूमिका निभायेगी. राज्य के आंतरिक क्षेत्रों में पानी का संकट बरकरार है, जो गर्मी में और गहरा होगा. पर चूंकि ये चुनाव उसके पूर्व ही संपन्न हो जायेंगे, सो सत्तारूढ़ पार्टी उसके दंश से बच निकलेगी.
(अनुवाद: विजय नंदन)