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पुरुषों की सोच महिलाओं की कमजोरी

21वीं सदी को भारत के लिए बड़े विकासकाल के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन आज भी देखा जाये तो इस पुरुष प्रधान देश में महिलाओं को लेकर पुरुष मानसिकता में कोई परिवर्तन नहीं आया है. हमेशा महिलाओं की शारीरिक संरचना को लेकर टिप्पणी की जाती है, लेकिन शायद ही कभी किसी ने पुरुषों […]

21वीं सदी को भारत के लिए बड़े विकासकाल के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन आज भी देखा जाये तो इस पुरुष प्रधान देश में महिलाओं को लेकर पुरुष मानसिकता में कोई परिवर्तन नहीं आया है. हमेशा महिलाओं की शारीरिक संरचना को लेकर टिप्पणी की जाती है, लेकिन शायद ही कभी किसी ने पुरुषों की शारीरिक संरचना पर कोई टिप्पणी सुनी होगी.

हमेशा लड़कियों के पहनावे को लेकर हमारा समाज अभद्र बातें करता है. हमारे समाज में तरक्की करने वाली महिलाओं का सीधा संबंध उसकी मेहनत से न जोड़ कर उसके शारीरिक रिश्तों से जोड़ दिया जाता है. मीडिया क्षेत्र में काम करने वाली लड़कियों के बारे में यह कहा जाता है कि लड़की है न इसलिए इसे न्यूज आसानी से मिल जाती है. क्यों कोई यह नहीं देखता कि जला देने वाली धूप और तेज बारिश का सामना कर के भी यह लड़की हर रोज अपने बीट पर जाकर मेहनत करती है.

औरों की तरह फोन पर खबरों का इंतजाम नहीं करती. महिलाओं के काम को क्यों उनकी मेहनत के आधार पर नहीं तौला जाता है. कार्यक्षेत्र पर समान मेहनत और काम करने पर भी महिलाओं को आज भी कम वेतन मिलता है. हर निगाह उनके काम को उनके शरीर के आधार पर क्यों मापती है. बेनजीर भुट्टो हों या इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा हों या किरन बेदी, कहीं उन्हें भी पितृसत्तात्मक समाज में ऐसे दंश भरे जुमले सुनने को जरूर मिले होंगे. नारी अगर प्रतिकार करे तो भी वह दोषी होती है और नहीं करे तो गाज भी उसी पर गिरती है. पुरुषवादी सोच से भरे इस समाज में महिलाओं को उनका हक दिलाना आसान नहीं है. महिला सशक्तीकरण की बात करनेवाला यह समाज आज भी हमें इनसान कम, एक लड़की, महिला या नारी समझ अपनी सीमा में कैद कर रखना चाहता है.

निहारिका सिंह, सोनारी, जमशेदपुर

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