घोषणापत्रों के वादे और इरादे

योगेंद्र यादव अध्यक्ष, स्वराज इंडिया yyopinion@gmail.com पिछले हफ्ते भाजपा और कांग्रेस के मेनिफेस्टो जारी हुए. अगर मेनिफेस्टो से चुनाव जीते जाते तो कांग्रेस यह चुनाव जीत जाती. अगर इस देश के वोटर पार्टियों के घोषणापत्र को पढ़कर नंबर देते, तो भाजपा जरूर परीक्षा में फेल हो जाती. भाजपा का ‘संकल्प पत्र’ पढ़कर समझ नहीं आता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 11, 2019 5:47 AM
योगेंद्र यादव
अध्यक्ष, स्वराज इंडिया
yyopinion@gmail.com
पिछले हफ्ते भाजपा और कांग्रेस के मेनिफेस्टो जारी हुए. अगर मेनिफेस्टो से चुनाव जीते जाते तो कांग्रेस यह चुनाव जीत जाती. अगर इस देश के वोटर पार्टियों के घोषणापत्र को पढ़कर नंबर देते, तो भाजपा जरूर परीक्षा में फेल हो जाती.
भाजपा का ‘संकल्प पत्र’ पढ़कर समझ नहीं आता कि इस दस्तावेज में कहा क्या गया है. दिक्कत यह नहीं है कि भाजपा ने जुमलेबाजी का सहारा लिया है. दरअसल, भाजपा के दस्तावेज में असंभव वादे बहुत कम हैं, सच कहें तो स्पष्ट वादे ही बहुत कम हैं.
इसमें ना तो पिछले पांच साल का हिसाब दिया गया है और ना ही अगले पांच साल के लिए कोई भी नयी घोषणा या बड़ी योजना प्रस्तावित है. लगता है मेनिफेस्टो लिखनेवालों को स्पष्ट हिदायत थी- पचास पेज भर दो, लेकिन ऐसा कुछ मत लिखना कि बाद में जवाब देना पड़ जाये. इसलिए सिर्फ गोल-मोल बातें लिखी गयी हैं. राममंदिर और धारा 370 के बारे में भी जलेबी बना दी गयी है. कहीं-कहीं ‘प्रयास करेंगे’ जैसा नुक्ता जोड़ दिया गया है, ताकि बाहर निकलने का रास्ता खुला रहे.
उधर, कांग्रेस का दस्तावेज महीनों की मत्था-पच्ची के बाद बनाया गया है. वे मुद्दे उठाये गये हैं, जो उठाये जाने चाहिए: गरीबी, किसान की आय, युवा बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा. वादे ठोस हैं, पर अधिकांश ऐसे हैं जिनकी भविष्य में जांच हो सकती है. कुछ बातों को छोड़कर हर वादे के बारे में सोचा है कि उसे कैसे लागू किया जायेगा. यह दस्तावेज एक दिशा दिखाता है, एक बहस को आमंत्रित करता है.
दिक्कत यह है कि कांग्रेस को लगता है कि कागज पर सही योजनाएं बना देने से लोग भरोसा कर लेंगे. कांग्रेस के पास न तो अपनी घोषणाओं को साधारण वोटर तक पहुंचाने का कोई तंत्र है, न ही उन्हें यह भरोसा दिलाने का कोई तरीका है कि कांग्रेस इन घोषणाओं के प्रति ईमानदार है. अगर भाजपा के संकल्प पत्र के पीछे कोई प्रकल्प नहीं है, तो कांग्रेस के घोषणापत्र के पीछे कोई उद्घोष नहीं है.
आज देश के दो सबसे बड़े मुद्दे यानी कृषि और बेरोजगारी के संकट पर इस दोनों घोषणापत्रों की जांच करने से यह यह अंतर साफ हो जाता है. भाजपा का घोषणापत्र किसानों की प्रमुख मांगों पर मौन है.
देशभर के किसान आंदोलनों ने बार-बार दो मांग उठायी है- फसल का पूरा दाम और कर्ज से मुक्ति. कर्ज में डूबे किसान की कर्ज-मुक्ति के सवाल पर इस घोषणापत्र में एक शब्द भी नहीं कहा गया है. भाजपा साफ कह रही है कि इस सवाल पर वह कुछ नहीं कर सकती, और आगे कुछ करने का उसका इरादा भी नहीं है. किसानों को फसल का दाम दिलाने के बारे में भी इसमें कुछ नहीं कहा गया है. ना एमएसपी, ना स्वामीनाथन आयोग, ना सरकारी खरीद के बारे में एक भी शब्द है. बस इशारा किया गया है कि बाजार से किसान को सही दाम मिल सके, इसके लिए ‘प्रयास किया जायेगा’. यानी कि इस सवाल से भी भाजपा पूरा पल्ला झाड़ रही है.
इन दोनों मुद्दों पर भाजपा की चुप्पी मानीखेज है, क्योंकि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने कर्ज-मुक्ति और किसानों को फसल का उचित मूल्य दिलवाने के लिए नयी व्यवस्था के बारे में ठोस घोषणाएं की हैं. कांग्रेस का घोषणापत्र कहता है कि वह कई राज्यों में की गयी कर्ज-माफी से आगे बढ़कर अब किसान की संपूर्ण कर्ज-मुक्ति करेगी. कर्जदार किसान के खिलाफ चेक बाउंस के बहाने फौजदारी मुकदमे पर पाबंदी लगायी जायेगी.
किसान को लागत का डेढ़ गुना दाम दिलाने की बात तो कांग्रेस ने नहीं की, लेकिन कृषि लागत और मूल्य आयोग के बदले एक नये कमीशन का वादा किया है. साथ में कांग्रेस का घोषणापत्र किसान बजट का प्रस्ताव भी रखता है. अलग बजट से किसान को कुछ मिले न मिले, कम-से-कम हिसाब तो मिलेगा कि सरकार ने किसान के लिए क्या किया. कांग्रेस की घोषणाओं के बाद आशा की जा रही थी कि भाजपा उससे बेहतर घोषणा करेगी. लेकिन, इन दोनों सवालों पर चुप्पी रख भाजपा ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है.
कुछ ऐसा ही मामला बेरोजगारी का है. नोटबंदी के बाद से बेरोजगारी ने आज तक के रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं. जाहिर है, विपक्षी होने के नाते कांग्रेस के लिए इस सच को बोलना आसान है, भाजपा के लिए इसे स्वीकारना कठिन है. ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस का दस्तावेज इस मुद्दे पर कुछ ठोस सुझाव देता है. सबसे पहले तो कांग्रेस केंद्र और राज्य सरकारों की नौकरी में 22 लाख वैकेंसी भरने का वादा करती है. सरकारी नौकरी में आवेदन के वक्त आवेदन शुल्क हटाने की बात मानती है. हर ग्राम पंचायत और म्युनिसिपॉलिटी में ‘सेवा मित्र’ का पोस्ट बनाने और बड़े गांव में एक और ‘आशा’ सेवक की बहाली का वादा करती है.
बेहतर होता अगर कांग्रेस जिन राज्यों में राज कर रही है, वहां इन सुझावों को लागू करवाती. लेकिन, भाजपा का संकल्प पत्र तो रिक्त पड़े पदों और नयी नौकरी के सवाल पर मौन है. यानी यदि भाजपा दोबारा सत्ता में आती है, तो यह तय है कि रिक्त पदों को खत्म किया जायेगा.
बेरोजगारी का सवाल सिर्फ सरकारी नौकरी से सुलझ नहीं सकता. कांग्रेस का मेनिफेस्टो रोजगार सृजन की एक योजना देता है. एक नया मंत्रालय होगा, जिसके जरिये प्राइवेट सेक्टर को रोजगार सृजन में प्रोत्साहन दिया जायेगा.
नया बिजनेस शुरू करने पर तीन साल तक नियम-कानून से छूट मिलेगी. हर उद्योग को अप्रेंटिस लगाना जरूरी होगा, जिन्हें स्टाइपेंड मिलेगा और पक्की नौकरी में प्राथमिकता दी जायेगी. ग्रामीण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन की योजना के अभाव में कांग्रेस के प्रस्ताव अधूरे हैं. लेकिन भाजपा तो अपने दस्तावेज में बेरोजगारी का नाम भी नहीं लेती है.
पार्टी के कुल 75 मुख्य संकल्पों में एक भी रोजगार बढ़ाने के बारे में नहीं है. दस्तावेज में एक जगह स्टार्टअप के लिए सस्ते लोन और 22 तरह के उद्योगों को प्रोत्साहन की बात की गयी है. युवाओं वाले हिस्से में मात्र दो बिंदु रोजगार के बारे में हैं, लेकिन छह बिंदु खेल-कूद से जुड़े हैं! स्किल मिशन और मुद्रा लोन की बात को दोहरा दिया गया है. अगर बेरोजगारी की समस्या इससे दूर होती, तो अब तक क्यों नहीं हुई?
कुल मिलाकर इस घोषणापत्र के जरिये किसानों और नौजवानों को भाजपा यही संदेश दे रही है- ‘हमने पिछले पांच साल में तुम्हारे साथ जो किया, वैसा ही अगले पांच साल में भी करेंगे!’ अब नीतियां नहीं नेता की नीयत पर चुनाव लड़े जाते हैं.
यही आज के भारत की विडंबना है. जिसके पास नीति है, उसके नेता और नीयत में देश को भरोसा नहीं है. जिसके पास प्रचार-प्रसार और प्रभाव है, उसके पास देश के लिए सकारात्मक प्रकल्प नहीं है.

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