‘विकास’ के बजट में बुजुर्ग

।। चंदन श्रीवास्तव ।। एसोसिएट फेलो, सीएसडीएस आर्थिक रूप से खस्ताहाल बुजुर्गो की मदद के नाम पर अब तक सरकार पेंशन योजनाओं के अलावा कुछ खास नहीं कर पायी है. केंद्र सरकार बेसहारा बुजुर्गो की मदद के नाम पर पेंशन के तौर पर अपनी तरफ से 200 रुपये देती है. अपने विकास के एजेंडे को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 7, 2014 5:21 AM

।। चंदन श्रीवास्तव ।।

एसोसिएट फेलो, सीएसडीएस

आर्थिक रूप से खस्ताहाल बुजुर्गो की मदद के नाम पर अब तक सरकार पेंशन योजनाओं के अलावा कुछ खास नहीं कर पायी है. केंद्र सरकार बेसहारा बुजुर्गो की मदद के नाम पर पेंशन के तौर पर अपनी तरफ से 200 रुपये देती है.

अपने विकास के एजेंडे को नरेंद्र मोदी ने कुछ बीज-शब्दों के भीतर समेटने की कोशिश की है. ये बीज-शब्द हैं- ट्रेडीशन (परंपरा), टैलेंट (प्रतिभा), ट्रेड (व्यापार), टूरिज्म (पर्यटन) और टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी). भारत के विकास के संदर्भ में कोई परंपरा की बात करे, तो एक संस्था के रूप में ‘परिवार’ का जिक्र आना लाजिमी है, क्योंकि परिवार परंपरा को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के हाथ में पहुंचाने का काम करता है. विडंबना देखिए कि मोदी के विकास-फामरूले का एक ‘टी’ (परिवार) दूसरे ‘टी’ (टैलेंट) के हाथों र्दुव्‍यवहार का शिकार हो रहा है और तीसरा ‘टी’ (प्रौद्योगिकी) इस समस्या के समाधान में कुछ खास कारगर साबित नहीं हो रहा.

अगर यह बात किसी बुझौव्वल की तरह लग रही हो, तो बेसहारा बुजुर्गो की समस्याओं और उनके समाधान के लिए काम करनेवाली संस्था ‘हेल्पेज इंडिया’ की नयी रिपोर्ट ‘एल्डर्स एब्यूज इन इंडिया’ के तथ्यों पर गौर फरमाइये. इसके अनुसार देश में 60 साल या उससे ज्यादा की उम्र पार कर चुकी पीढ़ी र्दुव्‍यवहार का शिकार हो रही है, वह भी अपने परिवार-जन के हाथों. रिपोर्ट में तकरीबन 50 फीसदी बुजुर्गो ने माना है कि उनके साथ र्दुव्‍यवहार करनेवालों में बहू-बेटे सबसे आगे हैं. फिलहाल, भारत में विकासगाथा लिखने को आतुर नीति-निर्माता यह बताते नहीं थकते कि भारत को डेमोग्राफिक डेवीडेंट हासिल है, क्योंकि आधी से ज्यादा आबादी 35 साल से कम उम्र की है. इस युवा आबादी की प्रतिभा के बूते व्यापार की संभावनाओं के सभी कायल हैं. प्रधानमंत्री ने शायद इसी आबादी को लक्ष्य कर अपने एजेंडे में टैलेंट शब्द गढ़ा है.

हेल्पेज इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार र्दुव्‍यवहार के शिकार बुजुर्गो की संख्या (50 प्रतिशत) में पिछले साल (23 प्रतिशत) के मुकाबले तेज इजाफा हुआ है. इनमें से ज्यादातर बुजुर्ग (67 प्रतिशत) पुलिस हेल्पलाइन के बारे में आगाह थे, लेकिन मात्र 12 फीसदी ने पुलिस को सूचित किया. यानी एक तरफ बहू-बेटे (टैलेंट) के हाथों र्दुव्‍यवहार का शिकार होनेवाले बुजुर्गो (परंपरा) की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन मदद के लिए चलायी जा रही पुलिस हेल्पलाइन (प्रौद्योगिकी) के बारे में जानने के बावजूद बुजुर्गो को यह तरीका मंजूर नहीं. क्या इसकी एक बड़ी वजह यह हो सकती है कि ज्यादातर बुजुर्ग भावनात्मक रूप से अपने परिवार पर निर्भर हैं और वे अपने साथ हो रहे र्दुव्‍यवहार के बारे में पुलिस को सूचित कर परिवार के आसरे से वंचित नहीं होना चाहते? 8 राज्यों के 12 छोटे-बड़े शहरों के कुल 1,200 बुजुर्गो के सर्वेक्षण पर आधारित है हेल्पेज इंडिया की रिपोर्ट का एक इशारा इस ओर भी है.

बहरहाल, बुजुर्गो के साथ होनेवाले र्दुव्‍यवहार के मामले में परिवार-जन पर उनकी भावनात्मक निर्भरता को निर्णायक कारण मानना ठीक नहीं. रिपोर्ट के मुताबिक 45 फीसदी बुजुर्गो के साथ होनेवाले र्दुव्‍यवहार का प्रमुख कारण परिवार-जन पर आर्थिक रूप से निर्भर रहना है और 30 फीसदी बुजुर्गो की सोच है कि र्दुव्‍यवहार की समस्या से निपटने के लिए उनका आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना प्रभावकारी उपाय सिद्ध हो सकता है. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गो की संख्या तकरीबन 10 करोड़ है. भारत सरकार के एक आधिकारिक आकलन के अनुसार देश में आर्थिक रूप से परिवार-जन (बेटे-बहू) पर निर्भर बुजुर्गो की संख्या 85 फीसदी है, जबकि 2 प्रतिशत बुजुर्ग इससे आगे की पीढ़ी (नाती-पोते) पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं.

भारत में बुजुर्गो की 75 फीसदी तादाद ग्रामीण इलाकों में रहती है तथा इसमें तकरीबन एक तिहाई बुजुर्ग गरीबी-रेखा से नीचे जीवन बसर करते हैं. आर्थिक रूप से खस्ताहाल बुजुर्गो की मदद के नाम पर अब तक सरकार पेंशन योजनाओं के अलावा कुछ खास नहीं कर पायी है. केंद्र सरकार बेसहारा बुजुर्गो की मदद के नाम पर पेंशन के तौर पर अपनी तरफ से 200 रुपये देती है. राज्य इसमें अपनी तरफ से कुछ रकम जोड़ देते हैं. मिसाल के लिए यूपी में केंद्र द्वारा दी गयी रकम में 100 रुपये जुटता है, तो असम में 50 रुपये, जबकि तमिलनाडु में 600 रुपये. गोवा को छोड़ कर कहीं भी वृद्धा पेंशन की रकम मासिक 1,000 रुपये भी नहीं है. बुजुर्गो को हासिल पेंशन की रकम केंद्र सरकार का हिस्सा औसतन 34 फीसदी का रहा है और पिछली सरकार के आंकड़े को ध्यान में रखें तो आर्थिक रूप से खस्ताहाल बुजुर्गो में से मात्र 2 करोड़ 14 लाख बुजुर्गो को ही पेंशन के रूप में कुछ राशि हासिल हुई जो कि आर्थिक रूप से दूसरे पर निर्भर बुजुर्गो की कुल तादाद का महज 20 प्रतिशत है.

ऐसे में नये प्रधानमंत्री से यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि ट्रेडीशन को टैलेंट के हाथों हो रहे र्दुव्‍यवहार से बचाने के लिए वे बुजुर्गो को दी जानेवाली पेंशन की राशि में 10 गुना की बढ़ोतरी करेंगे. देश की आर्थिक-वृद्धि की वांछित रफ्तार (10 फीसदी) का भी यही तकाजा है.

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