‘मां मुङो कोख में मत मारो’ इस वाक्य की वेदना आज भी समाज में मौजूद क्रूरता को समाप्त नहीं कर पायी है. सरकार और समाज द्वारा आयोजित विभिन्न गोष्ठियां, बनाये गये कानून और लागू की गयी तमाम योजनाएं तब तक आधी आबादी के लिए फलदायी साबित नहीं होंगी, जब तक कन्या भ्रूणहत्या बंद नहीं होगी. कई राज्यों में लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में काफी कम है.
वंश चलाने और बढ़ाने के नाम पर सबको बेटा चाहिए, बेटी नहीं. निस्संदेह इसे रोकने के लिए कड़े कानून हैं, पर जब तक कोई कानून की शरण में नहीं जायेगा, तब तक अपराध थमेगा कैसे? देखा गया है कि ऐसे मामलों में माताएं अक्सर चुप रह जाती हैं, घर में घुटती रहती हैं, पर मुंह नहीं खोलतीं. लेकिन अब समय आ गया है कि आप भी अपनी आवाज बुलंद करें. इस अभिशाप से समाज एवं देश को मुक्त करें.
रानी शर्मा, हिनू, रांची