तृणमूल कांग्रेस के सांसद तापस पाल ने अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया है, वह सभ्य समाज में सर्वथा वर्जित है. खेद इस बात का है कि तापस पाल जैसे लोग एक-दो नहीं, राजनीति में बहुतेरे हैं और लगातार ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं. तापस पाल के इस बयान की सर्वत्र निंदा होनी थी, सो हुई.
ऐसा पहले भी कई बार हुआ है जब सांसद, विधायक, मंत्री, पार्टी अध्यक्ष जैसे बड़े-बड़े ओहदे संभाले जनप्रतिनिधियों ने महिलाओं के लिए आपत्तिजनक शब्दों, विचारों का इस्तेमाल किया है. कभी उन्हें कभी रात को घर से बाहर न निकलने की हिदायत दी, तो कभी लक्ष्मण रेखा न लांघने की तो कभी ढंग के कपड़े पहनने की.
हाल ही में, गोवा में एक मंत्री ने लड़कियों को समुद्र किनारे बिकनी न पहनने की सलाह दी है. चुनावों के समय मुलायम सिंह यादव का बलात्कार संबंधी यह बयान कैसे भूला जा सकता है कि लड़कों से गलतियां हो जाती हैं. इन नेताओं के ऐसे बयानों को सुन कर यकीन नहीं होता कि हम आधुनिक कहलाने वाले किसी सभ्य समाज में रह रहे हैं. तापस पाल के बयान पर मचे बवाल के बाद उन्होंने माफी मांग ली.
खबरों के अनुसार, तापस पहले भी अपने सार्वजनिक बयानों में ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते रहे हैं, जो एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि को शोभा नहीं देता. उन पर न केवल कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए, बल्कि उनकी पार्टी को भी कड़ा कदम उठाना चाहिए. लेकिन हुआ उलटा. तृणमूल कांग्रेस की मुखिया व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तापस पाल के बचाव की मुद्रा में नजर आयीं. क्या वे यह मानती हैं कि तापस पाल ने टीएमसी के वफादार सिपाही की तरह माकपा का विरोध किया है, तो उन्हें बख्श देना चाहिए?
अनिल सक्सेना, जमशेदपुर