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हंगामा कोई हल नहीं, बहस जरूरी

16वीं लोकसभा के पहले बजट सत्र का पहला ही दिन हंगामे की भेंट चढ़ गया. तेजी से बढ़ती महंगाई और बजट से पहले ही सरकार द्वारा तेल मूल्यों व रेल किराये में बढ़ोतरी का सवाल विपक्षी दलों द्वारा संसद में और संसद के बाहर उठाया जाना स्वाभाविक है. इस पर विशेष बहस की मांग भी […]

16वीं लोकसभा के पहले बजट सत्र का पहला ही दिन हंगामे की भेंट चढ़ गया. तेजी से बढ़ती महंगाई और बजट से पहले ही सरकार द्वारा तेल मूल्यों व रेल किराये में बढ़ोतरी का सवाल विपक्षी दलों द्वारा संसद में और संसद के बाहर उठाया जाना स्वाभाविक है. इस पर विशेष बहस की मांग भी जनभावनाओं के अनुरूप है.

सरकार की जिम्मेवारी है कि वह सदन के माध्यम से जनता को मूल्य वृद्धि की वस्तुस्थिति और इसे नियंत्रित करने के लिए किये जा रहे उपायों से अवगत कराये. परंतु, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे महत्वपूर्ण मसले पर बहस के बजाय लोकसभा का एक दिन पक्ष-विपक्ष के आरोपों-प्रत्यारोपों के शोरगुल में बर्बाद हो गया. लोकसभा के एक दिन के कामकाज का खर्च दो करोड़ रुपये से अधिक है. इससे पहले 15वीं लोकसभा भारतीय संसद के इतिहास की सबसे कम काम करनेवाली लोकसभा थी.

इसने कुल 345 बैठकों में महज 2070 घंटे काम किया था, जिनमें सिर्फ 276 घंटे विधेयकों पर चर्चा में खर्च हुए थे. लेकिन, ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे सांसदों ने पिछले लोकसभा के निराशाजनक प्रदर्शन से कोई सबक नहीं लिया है. सदन को सुचारु रूप से चलाने की जिम्मेवारी जितनी सरकार की है, उतनी ही विपक्ष की भी. विपक्ष द्वारा उठाये जानेवाले जनहित के मसलों और सवालों पर सरकार को संतोषजनक जवाब देना चाहिए. साथ ही, उत्तेजित विपक्ष को शांत करने की कोशिश करनी चाहिए. इसी तरह, यह विपक्ष का भी उत्तरदायित्व है कि वह सदन के कामकाज में अनावश्यक अवरोध उत्पन्न न करे. परंतु, यह विडंबना ही है कि संसद में हाल तक यूपीए सरकार को हंगामे और शोरगुल से घेरनेवाले एनडीए के दलों को आज विपक्ष में बैठे सांसद उन्हीं सवालों पर घेर रहे हैं.

यानी संसद में पक्ष और विपक्ष में चेहरे बदल जाने के बाद भी संसदीय कार्यवाही की सूरत नहीं बदली है. ऐसे में पूछा जा सकता है कि सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के सांसदों की रुचि समस्या के ठोस समाधान में है या सिर्फ हंगामे की सतही राजनीति में? आज जरूरत यह है कि दोनों पक्ष मिलजुल कर महंगाई जैसी परेशानियों से आम जनता को राहत दिलाने का संतुलित रास्ता निकालें. जनहित के मसलों पर संसद में हंगामा जारी रहने से आखिरकार नुकसान देश की जनता को ही है.

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