इवीएम पर बार-बार उठते प्रश्न
अवधेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार awadheshkum@gmail.com विपक्षी दलों ने इवीएम को फिर निशाना बनाया है. इन दलों ने यह तय किया कि वे ईवीएम को खत्म कर मतपत्रों से चुनाव कराने की मांग जारी रखेंगे. जाहिर है, उच्चतम न्यायालय द्वारा पिछले आठ अप्रैल को दिये गये फैसले से ये दल सहमत नहीं है. उच्चतम न्यायालय ने […]
अवधेश कुमार
वरिष्ठ पत्रकार
awadheshkum@gmail.com
विपक्षी दलों ने इवीएम को फिर निशाना बनाया है. इन दलों ने यह तय किया कि वे ईवीएम को खत्म कर मतपत्रों से चुनाव कराने की मांग जारी रखेंगे. जाहिर है, उच्चतम न्यायालय द्वारा पिछले आठ अप्रैल को दिये गये फैसले से ये दल सहमत नहीं है. उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया था कि मतगणना के दौरान इवीएम के मतों को वीवीपैट पर्चियों से मिलान की संख्या पांच की जाये. अभी तक चुनाव आयोग प्रत्येक विधानसभा में एक मतदान केंद्र से वीवीपैट पर्चियों का मिलान करता था. वीवीपैट से मिलान के बाद यह सत्यापित हो जाता है कि इवीएम में डाले गये वोटों से छेड़छाड़ नहीं हुई है.
हालांकि, फैसले के तुरंत बाद कांग्रेस की प्रतिक्रिया थी कि यह फैसला तर्कसंगत नहीं है और इस पर पुनर्विचार होना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने यह फैसला दिया था. कुल 21 विपक्षी दलों ने वीवीपैट से 50 प्रतिशत ईवीएम के मिलान का आयोग को आदेश देने की अपील की थी.
न्यायालय ने आयोग का पक्ष जाना और हर उस प्रश्न का जवाब लिया जो विपक्षी दल उठा रहे थे. न्यायालय चुनाव आयोग के इस तर्क से सहमत हुआ कि ईवीएम बिल्कुल सुरक्षित प्रणाली है और इसमें छेड़छाड़ की संभावना पैदा नहीं होती. अगर न्यायालय को तनिक भी संदेह होता, तो वह ऐसा फैसला दे ही नहीं सकता था.
आयोग ने न्यायालय को दिये जवाब में कहा था कि 50 प्रतिशत मिलान के लिए भारी संख्या में कर्मचारियों की जरूरत होगी और उन्हें व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी. मतगणना के लिए भी हर जगह बड़े-बड़े हॉल चाहिए होगा. यह संभव नहीं है. ऐसा करने से चुनाव परिणाम आने में पांच-छह दिन अधिक लग सकते हैं. देश में कुल 10 लाख 35 हजार 918 मतदान केंद्र हैं. औसतन एक विधानसभा क्षेत्र में 250 मतदान केंद्र. लोकसभा चुनाव में करीब 39 लाख 60 हजार इवीएम का उपयोग होगा.
एक इवीएम और वीवीपैट के मिलान से गणना में लगभग एक घंटे का समय लगता है. अगर इसे 50 प्रतिशत तक बढ़ाया गया, तो इसमें कितना समय लगेगा इसका आकलन किया जा सकता है. चुनाव आयोग ने 22 मार्च को बताया कि 479 वीवीपैट पर्चियों और इवीएम का मिलान किया गया है, नतीजे सही आये हैं.
आखिर चुनाव आयोग के आश्वासनों पर विपक्षी दल यकीन क्यों नहीं कर रहे? जब उच्चतम न्यायालय इससे सहमत हो गया, तो विपक्षी दलों को क्यों आपत्ति है? अगर ईवीएम विश्वसनीय होगा, उसमें छेड़छाड़ या हैकिंग की संभावना होगी, तो चुनाव आयोग क्यों उसे बनाये रखने पर जोर देगा? किसी एक चुनाव आयुक्त का राजनीतिक झुकाव हो सकता है.
लेकिन कई वर्षों से सारे चुनाव आयुक्तों ने एक ही स्टैंड लिया. तो क्या इन चुनाव आयुक्तों को झूठा और बेईमान मान लिया जाये? चुनाव आयोग ने कई बार यह अवसर दिया कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ को साबित किया जाये. नेतागण बाहर बोलते रहे, लेकिन कोई भी आयोग मंे छेड़छाड़ का दावा साबित करने नहीं गया.
ये दल न चुनाव आयोग पर विश्वास कर रहे हैं और न उच्चतम न्यायालय के फैसले को मान रहे हैं. ईवीएम से परिणाम बदलना संभव होता तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव परिणाम उलट आते.
कुछ देर के लिए मान लिया जाये कि मशीन में गड़बड़ी हो सकती है. किंतु किसी एक दल को लाभ पहुंचाने के लिए व्यापक पैमाने पर गड़बड़ी करनी होगी.
उसके लिए भारतीय चुनाव आयोग, राज्यों के चुनाव आयोग, ऊपर से नीचे तक का पूरा प्रशासन, हजारों की संख्या में ऐसा करनेवाले विशेषज्ञ और तनकनीशियन चाहिए. इतने व्यापक पैमाने पर धांधली संभव है क्या? हैकिंग का आरोप पूरी तरह हास्यास्पद है.
किसी मशीन को हैक तभी किया जा सकता है, जब वह इंटरनेट से जुड़ा हो या अन्य किसी मशीन से. इवीएम को न इंटरनेट की आवश्यकता है और न अन्य मशीनों से जुड़ने की. ईवीएम का सॉफ्टवेयर कोड वन टाइम प्रोग्रामेबल नॉन वोलेटाइल मेमोरी के आधार पर बना है. निर्माता से बगैर कोड हासिल किये इसमें छेड़छाड़ हो ही नहीं सकती. इवीएम मशीन की कौन सी सीरीज किस मतदान केंद्र पर होगी, इसका पता मतदान करानेवाले दल को एक दिन पहले चलता है. मतदान के पहले मॉक पोलिंग की प्रक्रिया संपन्न होती है.
इसमें सभी पोलिंग एजेंट वोट डालते हैं, जिससे पता चल जाता है कि उनके दबाये बटन से सही उम्मीदवार को वोट गया या नहीं. हर चुनाव में 20 से 25 प्रतिशत अतिरिक्त मशीनें सेक्टर अधिकारी की निगरानी में रखी जाती हैं, जिन्हें वह मशीनों के खराब होने पर बदलता है. अतिरिक्त गर्मी या अन्य कारणों से कुछ समय के लिए सेंसर आदि में समस्या आती है. ये स्थितियां स्वाभाविक हैं.
इवीएम का मामला अनेक उच्च न्यायालयों में गया. उच्चतम न्यायालय में भी इसके पहले कई बार लाया गया. न्यायालय ने हर बार आरोपों का परीक्षण किया, आयोग का पक्ष जाना और फैसला इवीएम के पक्ष में आया. तो क्या फैसला देनेवाले सारे न्यायाधीश उन बातों को नहीं समझ सके, जिसके बारे में हमारे महान नेतागण बता रहे हैं?
उच्चतम न्यायालय ने 14वीं बार अपना फैसला दिया है. पिछले वर्ष 23 नवंबर को ही मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इवीएम की जगह मतपत्रों से चुनाव कराने की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि हर व्यवस्था में संदेह की गुंजाइश रहती है.