प्लेटफॉर्म एक से 14 का सफर!
रांची रेलवे स्टेशन की सबसे महंगी और प्रतिष्ठित यात्री गाड़ियों में ‘राजधानी एक्सप्रेस’ का नाम है. राजधानी एक्सप्रेस की यात्रा निश्चित ही झारखंडवासियों को गरिमा प्रदान करती है. लेकिन हम जैसे आलोचनाप्रिय लोग कहीं न कहीं से नुक्ताचीनी करने का मौका ढूंढ़ ही लेते हैं, राजधानी एक्सप्रेस भी अपवाद नहीं हो सकती. अमूमन इसके यात्री […]
रांची रेलवे स्टेशन की सबसे महंगी और प्रतिष्ठित यात्री गाड़ियों में ‘राजधानी एक्सप्रेस’ का नाम है. राजधानी एक्सप्रेस की यात्रा निश्चित ही झारखंडवासियों को गरिमा प्रदान करती है. लेकिन हम जैसे आलोचनाप्रिय लोग कहीं न कहीं से नुक्ताचीनी करने का मौका ढूंढ़ ही लेते हैं, राजधानी एक्सप्रेस भी अपवाद नहीं हो सकती. अमूमन इसके यात्री सामान्य से ऊपर की हैसियत रखने वाले होते हैं.
व्यक्तिगत जीवन में ऐशो-आराम से जीने वाले लोग सार्वजनिक सवारी में भी सुविधाओं की अपेक्षा रखते हैं. अपेक्षा क्यों न रखें, आखिर रेलवे को मुंहमांगा किराया देते हैं! रेलवे की अधिकतम सुविधा देने की कोशिश जरूर होती होगी. मगर इतने बड़े नेटवर्क में कुछ तो कमी संभव है. रांची के यात्री खुशनसीब हैं जो राजधानी एक्सप्रेस रांची रेलवे स्टेशन प्लेटफॉर्म नंबर एक से खुलती है जहां कम या ज्यादा हर तरह की सुविधा उपलब्ध है. रेलवे ने शायद नहीं सोचा होगा कि दिल्ली आने वाले लोग वापस भी जायेंगे.
महंगी गाड़ियों की पार्किग से उतरते ही 14-15 नंबर प्लेटफॉर्म तक की कठिन यात्रा सोच कर होश उड़ जाते हैं और यदि कुली की मदद ली हो तो कष्ट दोगुना होगा. उस पर नयी दिल्ली का एक उजाड़-सा प्लेटफॉर्म जहां खड़ा होना भी आसान नहीं, दूसरी सुविधाओं को तो सोचना भी मुमकिन नहीं. सामान्य यात्रियों की धक्का-मुक्की के बीच अपनी ‘राजधानी’ की प्रतीक्षा करना किसी तरह से सुखद यात्रा का हिस्सा नहीं हो सकता. इरादा सामान्य यात्रियों को कम आंकना कतई नहीं, बल्कि हैसियत वाली गाड़ी और उसके यात्रियों की नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हैसियत बतलाने का है. रेलवे को न्यूनतम ढांचागत सुविधाओं का ख्याल रखना ही चाहिए.
एमके मिश्र, रातू, रांची