समाज का दागदार चेहरा हुआ उजागर

बोकारो जिले के गोमिया थाने के गुलगुलिया धौड़ा में मंगलवार को जो हुआ, उसने समाज के दागदार चेहरे को बेनकाब कर दिया. बलात्कार का बदला लेने के लिए कथित आरोपी की नाबालिग बहन से बलात्कार की जितनी भी भर्त्सना की जाये कम है. सरेआम बिरादरी की पंचायत में उस युवक की नाबालिग बहन से बलात्कार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 10, 2014 4:32 AM

बोकारो जिले के गोमिया थाने के गुलगुलिया धौड़ा में मंगलवार को जो हुआ, उसने समाज के दागदार चेहरे को बेनकाब कर दिया. बलात्कार का बदला लेने के लिए कथित आरोपी की नाबालिग बहन से बलात्कार की जितनी भी भर्त्सना की जाये कम है. सरेआम बिरादरी की पंचायत में उस युवक की नाबालिग बहन से बलात्कार का न सिर्फ फरमान सुनाया गया, बल्कि धमकी दी गयी कि फैसले का विरोध करनेवाले का भी यही हश्र होगा.

निर्भया कांड के बाद देश भर में आक्रोश उफनने लगता है, पर इसी देश की एक बस्ती में नाबालिग बच्‍ची को बलात्कार कर लहूलुहान कर दिया जाता है और एक आवाज तक नहीं उठती. कुछ दिनों पहले झरिया के कतरास मोड़ स्थित गुलगुलिया बस्ती के एक युवक से कर्ज के एवज में उसके दो नाबालिग भाई को बंधक रख लिया गया था.

करार के मुताबिक तय समय पर कर्ज की वापसी नहीं करने पर उसकी नाबालिग बेटी को उठा लेने का एक मामला प्रकाश में आया था. यह ठीक उसी तरह का उदाहरण है कि एक ही ट्रेन की एसी बोगी में शान से सफर करनेवाले लोग भी चलते हैं तो उसी ट्रेन की साधारण बोगियों में आलू-प्याज की तरह लोग ठुंस कर सफर करते हैं. ये गुनाह उस समाज में हो रहे हैं जिसने कुप्रथाओं और अंधविश्वास में सांस लेना सीखा है. जीवन के सभ्य रास्तों से कबका इनका वास्ता खत्म हो चुका है. अधिकारों से वंचित रखी गयी, विकास की मुख्य धारा से दरकिनार कर दी गयी ऐसी ही जनजातियों को अंगरेजों ने आपराधिक जनजातियों के रूप में चिह्न्ति किया था.

प्रख्यात बांग्ला उपन्यासकार महाश्वेता देवी ने इनके मान-सम्मान पूर्ण जीवन और इनके संवैधानिक हकों के लिए एक मुहिम भी चला रखी है. परंपरा और रूढ़ि के नाम पर भारतीय समाज का बड़ा तबका अब भी कई खतरनाक ढकोसलों के बोझ तले पिस रहा है. जब परंपरा और आदर्श पर नाज करनेवाले सभ्य समाज को परंपरा और रूढ़ि का फर्क नहीं पता, तो ऐसा तबका जो शिक्षा और विकास से कोसों दूर रखा गया है उससे किस विचार और विवेक की अपेक्षा की जा सकती है. यह उस व्यवस्था के लिए घोर कलंक का सवाल है कि जहां से राजनीति को वोटर मिलते हैं. यह कलंक उस समाज पर भी है जिसे अपनी जिम्मेदारी का ख्याल नहीं.

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