अमेरिका की रार

बौद्धिक संपदा नियमन को लेकर अमेरिका भारत समेत अनेक देशों पर लंबे अरसे से दबाव बनाता आ रहा है. पिछले हफ्ते अमेरिकी वाणिज्य प्रतिनिधि ने एक बार फिर भारत का नाम उस सूची में बरकरार रखा है, जिसमें शामिल देशों पर उसका आरोप है कि उनकी लापरवाही से अमेरिका के बौद्धिक संपदा अधिकारों को नुकसान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 30, 2019 7:41 AM
बौद्धिक संपदा नियमन को लेकर अमेरिका भारत समेत अनेक देशों पर लंबे अरसे से दबाव बनाता आ रहा है. पिछले हफ्ते अमेरिकी वाणिज्य प्रतिनिधि ने एक बार फिर भारत का नाम उस सूची में बरकरार रखा है, जिसमें शामिल देशों पर उसका आरोप है कि उनकी लापरवाही से अमेरिका के बौद्धिक संपदा अधिकारों को नुकसान हो रहा है.
इस सूची में अन्य देश हैं- अलजीरिया, अर्जेंटीना, चिली, चीन, इंडोनेशिया, कुवैत, रूस, सऊदी अरब, यूक्रेन और वेनेजुएला. अमेरिका का कहना है कि भारतीय बाजार में उपलब्ध 20 फीसदी दवाएं नकल कर बनायी जा रही हैं. दवाओं के पेटेंट के कथित उल्लंघन के मामले में उसने चीन और भारत को विशेष रूप से दोषी ठहराया है.
भारत ने पिछले साल 19.2 अरब डॉलर मूल्य की दवाओं का निर्यात किया था. इस संबंध में भारत को उस अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत आयात शुल्कों पर छूट है, जिसके तहत विकसित देश विकासशील देशों को सहयोग करते हैं. लेकिन, अमेरिका ने दवाओं समेत अनेक आयातित वस्तुओं पर शुल्क नहीं लगाने की नीति में बदलाव के बारे में भारत को सूचित कर दिया है. ऐसा होने पर अमेरिका को होनेवाले भारतीय निर्यात पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. हालांकि, अमेरिका ने माना है कि भारत ने बौद्धिक संपदा को सुरक्षित रखने के लिए कदम उठाया है, पर उसका आग्रह नियमन को और भी कठोर बनाने का है.
निश्चित रूप से यह रुख दबाव बनाने के इरादे से अपनाया गया है. भारत ने वैश्विक नियमों के अनुरूप नियमन करने के साथ यह प्रयास भी किया है कि दवाएं सस्ती दरों पर उपलब्ध हों. विभिन्न विकासशील देशों के सार्वजनिक स्वास्थ्य को इससे बहुत मदद मिली है, क्योंकि गरीब और कम आमदनी के लोग भी दवाएं, खासकर जेनेरिक दवाएं, खरीद पा रहे हैं.
दुनियाभर में आपदा पीड़ित लोगों को चिकित्सकीय सेवाएं मुहैया करानेवाली स्वयंसेवी संस्था ‘मेडिसिन सांस फ्रंटियर्स’ का कहना है कि अमेरिका अपने ताकतवर दवा उद्योग के इशारे पर भारत पर बेमानी दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है. भारत ने अमेरिकी आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि यह सस्ती जेनेरिक दवाओं और तेजी से बढ़ते दवा निर्माण उद्योग के खिलाफ उठाया गया कदम है.
इन दवाओं की वैश्विक मांग का 20 फीसदी से अधिक हिस्सा भारत आपूर्ति करता है. अमेरिका में ही भारत के दवा निर्यात का लगभग 30 फीसदी भाग जाता है. हमारा 55 फीसदी निर्यात तो उन देशों में होता है, जहां संबंधित नियमन बहुत मजबूत हैं. ऐसे में सिर्फ अमेरिका को ही भारतीय दवाओं से परेशानी क्यों है? यदि अपने देश के भीतर दवा बाजार को देखें, तो 75 फीसदी से ज्यादा बिक्री जेनेरिक दवाओं की ही होती है.
नकली दवाओं की रोकथाम तथा अंतरराष्ट्रीय नियमन के मुताबिक, बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा पर अधिक ध्यान देने के साथ नियमन की आड़ में अमेरिका के वाणिज्यिक दबाव का सामना करने की चुनौती सरकार के सामने है.

Next Article

Exit mobile version