मूल्यांकन पद्धति सुधारे बोर्ड
10वीं और 12वीं के विभिन्न बोर्ड के नतीजे आ रहे हैं. कुछ बच्चों को 500 में 499 अंक आये हैं, तो कुछ को 498 अंक. एक समय था, जब 80%-85% अंक का एक अलग कद हुआ करता था. प्रश्न यह है कि क्या सच में आज के छात्र इतने योग्य हो गये हैं कि उनको […]
10वीं और 12वीं के विभिन्न बोर्ड के नतीजे आ रहे हैं. कुछ बच्चों को 500 में 499 अंक आये हैं, तो कुछ को 498 अंक. एक समय था, जब 80%-85% अंक का एक अलग कद हुआ करता था. प्रश्न यह है कि क्या सच में आज के छात्र इतने योग्य हो गये हैं कि उनको भाषा के विषयों में भी शत-प्रतिशत अंक दिये जा सकें? क्या वे व्याकरण में पारंगत हैं?
क्या उनकी पूरी उत्तरपुस्तिका में कहीं त्रुटि नहीं पायी गयी? क्या ये बच्चे राजेंद्र प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, विलियम शेक्सपियर आदि विद्वानों से भी तेज हैं? निश्चित तौर पर स्थिति गंभीर हो चुकी है तथा मूल्यांकन पद्धति में सुधार की जरूरत है.
अगर यही आलम रहा, तो बच्चे भाषा के ज्ञान को बहुत हल्के में लेंगे और आगे चल कर अच्छे साहित्यकारों, उपन्यासकारों और कवियों की भारी कमी हो जायेगी. संस्कृत की तरह हिंदी का भी अस्तित्व खत्म हो जायेगा. कुछ छात्रों को गायन व वादन में पूर्णांक मिले हैं. इनके आगे तो तानसेन भी लज्जित हो जाएं. अगर इसी तरह अंक बंटते रहे, तो उच्चतम अंको की कोई अहमियत ही नहीं रह जायेगी.
उत्सव रंजन, नीमा, हजारीबाग