कैंसर का कहर
भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में कैंसर के मरीजों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. साल 2018 में 98 लाख लोगों को कीमोथेरेपी की जरूरत थी. लांसेट जर्नल में छपे शोध के मुताबिक, 2040 तक ऐसे लोगों की संख्या डेढ़ करोड़ तक पहुंच सकती है. कम या मध्य आय वर्ग के देशों में […]
भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में कैंसर के मरीजों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. साल 2018 में 98 लाख लोगों को कीमोथेरेपी की जरूरत थी. लांसेट जर्नल में छपे शोध के मुताबिक, 2040 तक ऐसे लोगों की संख्या डेढ़ करोड़ तक पहुंच सकती है. कम या मध्य आय वर्ग के देशों में इनमें से 67 फीसदी मरीज होंगे. चीन और अमेरिका के बाद भारत में सबसे ज्यादा कैंसर पीड़ित लोग हैं.
अध्ययन में बताया गया है कि अगर दिशा-निर्देशों के अनुसार सही ढंग से बीमारों का आकलन हो, तो हमारे देश में 2018 में 6.70 लाख नये मरीजों को कीमियोथेरेपी की जरूरत थी. साल 2040 तक यह संख्या सालाना 11 लाख से अधिक हो सकती है. अगर कैंसर की गंभीर स्थिति से जूझते मरीजों की संखा को भी जोड़ लें, यह आंकड़ा 12 से 15 लाख भी हो सकता है. इस रोग के पीड़ितों की मृत्यु दर को देख कर यह स्पष्ट है कि जांच और चिकित्सा के समुचित इंतजाम की कमी के कारण प्रारंभिक दौर में बीमारी का पता नहीं चल पाता है और रोग बढ़ता जाता है.
पिछले साल इस बीमारी से 7.84 लाख मौतें हुई थीं और 11.5 लाख नये मामले सामने आये थे. फिलहाल भारत में 22.5 लाख कैंसर मरीज हैं. यह बेहद चिंता की बात है कि 83 फीसदी रोगियों को पूरी तरह से सही उपचार नहीं मिलता है और 15 फीसदी बीमार पूरी तरह से गलत इलाज के शिकार हैं. जिन पीड़ितों को केमोथेरेपी की उचित दवाएं नहीं मिल पाती हैं, उनकी संख्या 27 फीसदी है. पिछले 26 सालों में भारत में इस रोग का भार दोगुने से भी ज्यादा बढ़ गया है.
लगातार चिंताजनक होती इस स्थिति का सामना करने के लिए 2040 तक हमें 7300 कैंसर चिकित्सकों की आवश्यकता है. इसी के साथ अन्य चिकित्साकर्मियों, सहायकों तथा अस्पतालों की बड़ी संख्या की व्यवस्था भी जरूरी है. कैंसर उपचार के बेहद कमजोर इंतजाम का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अभी देश में करीब 1250 विशेषज्ञ चिकित्सक ही उपलब्ध हैं. संसाधनों का अभाव, गरीबी, बदलती जीवन शैली, प्रदूषण, कुपोषण आदि के कारण कैंसर एक बड़े संकट के रूप में हमारे सामने है.
इस चुनौती का सामना करने के लिए व्यापक निवेश की दरकार है. पिछले साल आयी एक रिपोर्ट में जानकारी दी गयी थी कि 2012 में कैंसर के कारण 6.7 अरब डॉलर मूल्य की उत्पादकता का नुकसान हुआ था, जो हमारे सकल घरेलू उत्पादन का 0.36 फीसदी हिस्सा था. अनेक अध्ययनों ने रेखांकित किया है कि महंगे उपचार और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की बदहाली के कारण कैंसर एवं अन्य गंभीर रोगों के इलाज के कारण लाखों लोग हर साल गरीबी के चंगुल में फंस जाते हैं.
बढ़े हुए कैंसर के इलाज का खर्च देश की अधिकांश आबादी की सालाना पारिवारिक आमदनी से भी ज्यादा है. केंद्र और राज्य सरकारों को कैंसर जैसे जानलेवा रोगों के उपचार को अपने स्वास्थ्य नीति की प्राथमिकता में शामिल करना चाहिए.