मनमानी करती जातीय पंचायतें

कानून जब तक कड़ाई से अपना काम नहीं करेगा, पुलिस सक्रिय नहीं रहेगी, ऐसी अवैध पंचायतों के फैसलों को माना जाता रहेगा, ऐसी घटनाएं घटती रहेंगी. राजनेताओं को ऐसी घटनाओं का विरोध करना होगा. इन्हें राजनीतिक संरक्षण देना बंद करना होगा. झारखंड के गोमिया के पास की एक शर्मनाक घटना. गुलगुलिया समुदाय का एक युवक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 14, 2014 12:10 AM

कानून जब तक कड़ाई से अपना काम नहीं करेगा, पुलिस सक्रिय नहीं रहेगी, ऐसी अवैध पंचायतों के फैसलों को माना जाता रहेगा, ऐसी घटनाएं घटती रहेंगी. राजनेताओं को ऐसी घटनाओं का विरोध करना होगा. इन्हें राजनीतिक संरक्षण देना बंद करना होगा.

झारखंड के गोमिया के पास की एक शर्मनाक घटना. गुलगुलिया समुदाय का एक युवक एक महिला के साथ दुष्कर्म की कोशिश करता है. महिला शोर मचाती है, युवक भाग जाता है. महिला पंचायत में शिकायत करती है. गुलगुलिया पंचायत की ओर से फरमान सुनाया जाता है- जिस महिला के साथ दुष्कर्म का प्रयास किया गया, उसका पति उस युवक (जिस पर आरोप है) के घर में जाये और वहां उसकी बहन मिले या बेटी, उसके साथ बलात्कार करे. महिला का पति उस युवक के घर जाकर वहां उसकी 13 साल की नाबालिग बहन को उठा लेता है और पंचायत के फैसले के अनुसार उसके साथ बलात्कार करता है. बच्ची की मां चिल्लाती रहती है, कोई सहायता के लिए नहीं आता. यह कहानी नहीं, बल्कि सच्ची घटना है.

देश में दुष्कर्म की घटनाएं रोज बढ़ती जा रही हैं, लेकिन इस प्रकार के तालिबानी फरमान की शायद यह पहली घटना है. इसी साल जनवरी में पश्चिम बंगाल के बीरभूम में कंगारू पंचायत ने एक युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म का फैसला सुनाया था. एक समुदाय की लड़की का दूसरे समुदाय के युवक के साथ प्रेम-संबंध था. युवक जब उसके घर शादी का प्रस्ताव लेकर गया, तो लड़की के समुदाय के लोगों ने लड़के को घेर लिया. अदालत लगायी गयी. दोनों का हाथ बांध कर खड़ा कर दिया गया. लड़की के परिजनों पर 25 हजार का जुर्माना किया गया. यह राशि देने में लड़की के परिजनों ने असमर्थता जतायी. कंगारू पंचायत ने फैसला सुनाया- ये लोग दंड की राशि नहीं दे पा रहे हैं, इसलिए इस लड़की को ले जाओ और इसके साथ सामूहिक दुष्कर्म करो. पंचायत के आदेश के बाद 13 युवकों ने उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया.

देश में अनेक ऐसे राज्य हैं, जहां परंपरा के नाम पर अनेक समाज/ समुदायों का अपना-अपना कोर्ट चलता है. जब इनके समुदाय/समाज में कोई घटना घटती है, तो समाज/समुदाय के लोग कानून की धज्जियां उड़ाते हुए फैसले लेते हैं. अधिकांश फैसले अमानवीय होते हैं. भले ही ऐसी अदालतों (पंचायतों) को कोई कानूनी अधिकार नहीं है, लेकिन परंपरा के नाम पर ये न्याय की जगह अन्याय करते हैं. हरियाणा एक ऐसा राज्य है, जहां खाप पंचायतों का अपना शासन चलता है. उनके अपने कोर्ट हैं, जिन्होंने अनेक विवादित फैसले सुनाये हैं, लेकिन उनका कुछ नहीं बिगड़ता. कड़े कानून होने के बावजूद ऐसी अदालतों (पंचायत) की बैठक होती है. ऑनर किलिंग में खाप पंचायतें चर्चा में रही हैं. इसी पंचायत के एक नेता ने बयान दिया था कि चाउमिन खाने के बाद दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ती हैं, क्योंकि इससे हार्मोनल बैलेंस गड़बड़ाता है. एक प्रेमी युगल को फैसला सुनाया गया कि वह भाई-बहन की तरह रहें. समय-समय पर ऐसी पंचायतों के फैसलों का विरोध होता रहा है, लेकिन उन पर पूर्णत: अंकुश नहीं लग पाया है. अपने वोट बैंक को लेकर नेता ऐसी पंचायतों को नाराज नहीं करना चाहते, इसलिए उनके खिलाफ नहीं बोलते, क्योंकि ये पंचायतें ताकतवर हैं.

अगर गुलगुलिया पंचायत दुष्कर्म करने का फैसला सुनाती है और उस फैसले के बाद दुष्कर्म हो जाता है, तो इसका सीधा अर्थ है कि ऐसे लोगों के मन में कानून के प्रति डर नहीं है. जिस समाज में ऐसी घटनाएं घट रही हैं, उस समाज के प्रबुद्ध लोगों को आगे आना होगा. जिस गुलगुलिया समाज के मुखिया ने यह फैसला सुनाया, क्या उस समाज की बुद्धि भ्रष्ट हो गयी थी? क्या इस समाज में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो विरोध कर सकता था? क्या उस समाज की महिलाओं को उक्त फैसले की जानकारी थी? क्या वे यह नहीं जानती थीं कि जिस प्रकार के अमानवीय फैसले पंचायत कर रही है, उसका शिकार कभी न कभी वे स्वयं या उनका परिवार भी हो सकता है? वह महिला (जिसके साथ दुष्कर्म का प्रयास हुआ था और जिसके पति ने नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया) क्या यह नहीं समझ सकी कि उसका पति बदला तो ले लेगा, लेकिन जब कानून अपना काम करेगा तब क्या होगा? फांसी या उम्र कैद, इससे कम सजा तो होगी नहीं (अगर कानून-पुलिस ने ठीक से काम किया). ठीक है, एक युवक ने दुष्कर्म का प्रयास किया, लेकिन इसकी सजा उसकी बेटी-बहन को क्यों? एक महिला ने अपने साथ हुए अन्याय का बदला भी लिया, तो दूसरी अबोध लड़की से. यह कैसा न्याय है?

कानून जब तक कड़ाई से अपना काम नहीं करेगा, पुलिस सक्रिय नहीं रहेगी, ऐसी अवैध पंचायतों के फैसलों को माना जाता रहेगा, ऐसी घटनाएं घटती रहेंगी. राजनेताओं को ऐसी घटनाओं का विरोध करना होगा. इन्हें राजनीतिक संरक्षण देना बंद करना होगा. स्थायी समाधान तभी होगा, जब ऐसी पंचायतों के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति जिम्मेवार हो. समाज/ समुदाय ने बेहतरी के लिए उसे शीर्ष पद पर बिठाया है, इसका उसे अहसास होना चाहिए. गलत चयन का परिणाम अच्छा नहीं होगा.

अनुज कुमार सिन्हा

वरिष्ठ संपादक

प्रभात खबर

anuj.sinha@prabhatkhabar.in

Next Article

Exit mobile version