आतंक से लड़ाई

डिजिटल तकनीक के बिना मानव सभ्यता के वर्तमान एवं भविष्य की कल्पना करना असंभव है. लेकिन आतंकी और अपराधी गिरोहों द्वारा इस तकनीक का बढ़ता इस्तेमाल सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती भी बनता जा रहा है. सोशल मीडिया और अन्य युक्तियों के जरिये चरमपंथी समूह अपने हिंसात्मक और अतिवादी विचारों का प्रचार-प्रसार भी कर रहे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 17, 2019 2:47 AM

डिजिटल तकनीक के बिना मानव सभ्यता के वर्तमान एवं भविष्य की कल्पना करना असंभव है. लेकिन आतंकी और अपराधी गिरोहों द्वारा इस तकनीक का बढ़ता इस्तेमाल सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती भी बनता जा रहा है. सोशल मीडिया और अन्य युक्तियों के जरिये चरमपंथी समूह अपने हिंसात्मक और अतिवादी विचारों का प्रचार-प्रसार भी कर रहे हैं तथा युवाओं को गुमराह कर उन्हें आतंकी भी बना रहे हैं.

ऑनलाइन धोखाधड़ी और ब्लैकमेल जैसे अपराध भी धड़ल्ले से अंजाम दिये जा रहे हैं. हालांकि, विभिन्न सरकारें और बड़ी तकनीकी कंपनियां कुछ समय से इंटरनेट पर हो रहीं खतरनाक गतिविधियों पर अंकुश लगाने की कवायद कर रही हैं, पर उनके नतीजे बहुत संतोषजनक नहीं हैं.
ऐसे में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैकरां और न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जसिंदा आर्डेन की अगुवाई में ऑनलाइन आतंक के विरुद्ध हो रही अंतरराष्ट्रीय पहल एक जरूरी कदम है. चूंकि न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च हमले के बाद दोनों नेताओं ने ऐसे प्रयास का विचार किया था, तो इस दस्तावेज का नाम ‘क्राइस्टचर्च कॉल ऑफ एक्शन’ रखा गया है.
इसकी पहली बैठक में भारत समेत अनेक देशों तथा इंटरनेट से जुड़ी प्रमुख कंपनियों ने आतंकी मौजूदगी पर ठोस कार्रवाई के लिए दस्तावेज पर सहमति जतायी है. इंटरनेट पर सरकारें आंशिक नियंत्रण तो कर पाती हैं, लेकिन इसकी व्यापकता भौगोलिक और प्रशासनिक सीमाओं से बहुत बड़ी है.
आतंक का भी चरित्र अंतरराष्ट्रीय हो चुका है. इस स्थिति में एक बड़ी साझेदारी समय की मांग है. फिलहाल इस मसौदे का पालन देशों और कंपनियों की मर्जी पर निर्भर है. उम्मीद है कि जी-7 और जी-20 की आगामी बैठकों में इसका विस्तार होगा.
न्यूजीलैंड और श्रीलंका के हालिया आतंकी हमलों तथा नफरत और अफवाहों पर आधारित अपराधों में बढ़त ने ऑनलाइन कार्रवाई के मसले को फिर से बहस में लाया है. अनेक मामलों में सोशल मीडिया कंपनियों के रवैये की तीखी आलोचना भी होती रही है. यह संतोषजनक है कि अब उनके रुख में भी लचीलापन आ रहा है. तेज तकनीकी बदलाव के दौर में बिना कंपनियों के सहयोग के आतंकी और अतिवादी हरकतों को चिह्नित करना और रोकना संभव नहीं है.
ये कंपनियां अपनी सेवाओं को बेहतर करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश करती हैं. उनसे अपेक्षा है कि वे अपने उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर भी खर्च करेंगी. ऐसी किसी भी कोशिश में इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा विरोध और असंतोष जताने के अवसर मिलने के मुद्दे भी ध्यान में होने चाहिए.
परंतु इन लोकतांत्रिक अधिकारों की आड़ लेकर हिंसा और आतंक को बढ़ावा देने की छूट कतई नहीं दी जा सकती है. भारत ने हमेशा से आतंक के विरुद्ध किसी भी पहलकदमी में अंतरराष्ट्रीय समुदाय का साथ दिया है. उम्मीद है कि इंटरनेट से आतंक को मिटाने की कोशिश में समूचा अंतरराष्ट्रीय समुदाय मिल-जुलकर आगे बढ़ेगा.

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