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छिपाने से नहीं मिटेगी गरीबी

गरीबी का आकलन कोई नयी बात नहीं है और इस पर मतभेदों या विवादों का उभर आना भी नया नहीं है. इसका आकलन कैसे किया गया, इसकी पद्धति क्या थी, इसके नतीजे को किस रूप में रखा और देखा गया, इन सबको लेकर सवाल उठते रहते हैं, लेकिन इन विवादों के बीच यह समस्या अनसुनी […]

गरीबी का आकलन कोई नयी बात नहीं है और इस पर मतभेदों या विवादों का उभर आना भी नया नहीं है. इसका आकलन कैसे किया गया, इसकी पद्धति क्या थी, इसके नतीजे को किस रूप में रखा और देखा गया, इन सबको लेकर सवाल उठते रहते हैं, लेकिन इन विवादों के बीच यह समस्या अनसुनी रह जाती है कि आखिर यह गरीबी कैसे मिटेगी? सरकार का पूरा जोर तो इसी पर होता है कि अपनी शासन-व्यवस्था में वह गरीबों की संख्या कम से कम दिखाये, ताकि दुनिया भर में उसकी वाहवाही हो सके.

सरकार को इसका पहला फायदा तो यह मिलता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उसकी छवि निखरती है. इसके बाद वह अपनी आर्थिक नीतियों का डंका पीट पाती है. इसके अलावा, उसे कल्याणकारी खर्चो में कटौती की इजाजत मिल जाती है, लेकिन सवाल उठता है कि इसी तरह गरीबों की संख्या छिपायी जाती रही, तो फिर गरीबी जड़ से मिटेगी कैसे?

नम्रता, रांची

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