हार से सबक लेकर उठायें कदम
आकार पटेल कार्यकारी निदेशक,एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया delhi@prabhatkhabar.in इस तरह की जबरदस्त हार से विपक्ष खुद को कैसे बाहर निकाल पायेगा? हममें से वे लोग जो राजनीति में नहीं हैं, वे संभवत: ऐसी बड़ी पराजय को पूरी तरह कभी नहीं समझ पायेंगे. हार की समस्याएं व्यक्तिगत तौर पर शुरू होती हैं. खुद में विश्वास की कमी […]
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक,एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
delhi@prabhatkhabar.in
इस तरह की जबरदस्त हार से विपक्ष खुद को कैसे बाहर निकाल पायेगा? हममें से वे लोग जो राजनीति में नहीं हैं, वे संभवत: ऐसी बड़ी पराजय को पूरी तरह कभी नहीं समझ पायेंगे. हार की समस्याएं व्यक्तिगत तौर पर शुरू होती हैं. खुद में विश्वास की कमी और हार के बाद जिस अलग नजर से लोग देखते हैं, उसका सामना हम जैसे लोगों को इस स्तर पर नहीं करना पड़ता है. अपने काम के दौरान हमें जो हार और घाटा मिलता है, वह ज्यादातर व्यक्तिगत होता है और दूसरे उसे तभी जान पाते हैं, जब हम खुद उन्हें इसकी जानकरी देते हैं. विपक्षी नेताओं के लिए यह सब कुछ सार्वजनिक है. इसके बाद आपको उस विरोधी का सामना करना है, जिसने आपको बुरी तरह हराया है. युद्ध में पराजित होनेवालों के लिए मृत्यु होती है या फिर समर्पण.
राजनीति में हार अतीत बन जाता है. जो हो गया, सो हो गया. यह वर्तमान है और अब आपको इसी में जीना है और उन्हीं लोगों के साथ काम करना है, जिन्हें आप कल तक भला-बुरा कह रहे थे. लेकिन अब यहां कोई तर्क नहीं बचा है और आप हार चुके हैं. अब यहां से आपको क्या करना चाहिए? पराजित होनेवाले नेताओं को सलाह देनेवालों की कमी नहीं होगी, विशेषकर मीडिया की तरफ से कि क्या गलत हुआ और अब आपको क्या करना चाहिए. उनमें से कुछ उपयोगी होंगी, लेकिन मेरा अनुमान है कि उनमें से ज्यादातर अनुपयोगी ही होंगी.
वस्तुत: लिखने का तीस या चालीस साल का अनुभव किसी रैली को पैंतीस मिनट संबोधित करने और भीड़ से आते हुए संदेश का विकल्प नहीं हो सकता है. हार और जीत में छिपे गहन कारकों को हारनेवाले से बेहतर कोई नहीं समझ सकता है. वे सभी युद्धक्षेत्र से होकर आ चुके हैं. उन्होंने अपने योद्धाओं और विरोधियों की आंखों में आंखें डालकर देखा है. उनके पास जो जानकारी है, वह वास्तविकता और सच्चे अनुभव पर आधारित है.
तो, इस समझ के साथ और उन्हें सलाह दिये बिना, आइए देखें कि हमें क्या लगता है कि वे कैसे कदम उठा सकते हैं. वर्ष 1950 के दशक में जब पाकिस्तानी जनरल अयूब खान ने खुद को देश का राष्ट्रपति घोषित किया, तब उन्होंने कहा था कि उन्होंने सबसे पहले अपनी स्थिति का आकलन किया. आम तौर पर यह एक सैन्य अवधारणा है, जो उस स्थिति को रेखांकित करता है, जिसमें एक व्यक्ति स्वयं को पाता है. मेरे विचार से यह एक अच्छा पहला कदम होगा.
जीत का आकलन करना दिलचस्प होता है. सैन्य इतिहास के छात्र फार्सलस में जूलियस सीजर या झेलम में सिकंदर के मानचित्र के बारे में घंटों अध्ययन करते हैं. संभवत: हार की स्थिति का आकलन करने के लिए यह कष्टकारी है, परंतु फिर भी ऐसा किया जाना चाहिए. राज्य-दर-राज्य और प्रत्याशी-दर-प्रत्याशी के हिसाब से अपनी स्थिति का मूल्यांकन होना चाहिए. मेरा मतलब निर्णय से नहीं है. इस आकलन में विरोधी का एक ईमानदार और भावनाविहीन अध्ययन होना चाहिए.
संभवत: एक नेता और एक प्रबंधक के पास जो सबसे धारदार हथियार होता है, वह है पारदर्शिता. एक कहावत है कि सूर्य का प्रकाश सर्वोत्तम कीटाणुनाशक होता है. पराजय के बाद और विजेताओं के उत्सव से पूर्ण रूप से निरुत्साह हो चुके योद्धाओं और समर्थकों के लिए खुलापन उत्साहवर्धक होगा. अगर पराजित होनेवाले वास्तविकता का सामना करें कि वे किन कारणों से हारे हैं और अभी वे कहां खड़े हैं, तो उनमें एकता की भावना पैदा होगी.
इसके बाद उत्तरदायित्व का मुद्दा है. मेरा मतलब दोष देना नहीं है. मेरे विचार से एक नेता के लिए पद त्यागना और दूर जाना आसान होगा और संभवत: यह सही कदम होगा. लेकिन यह सब एक क्रम में होना चाहिए, जिसमें पारदर्शिता पहले आती हो. ध्वस्त हो चुकी चीजों को एक साथ समेटने के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण कदम उठाये बिना पीछे हट जाना सिर्फ झल्लाहट और अहंकार की तरह का ही कार्य होगा. इस समय नि:स्वार्थ होने की आवश्यकता है.
मेरी राय में विपक्ष इस चुनाव में इससे अधिक कुछ और नहीं कर सकता था. इस चुनाव में जो हुआ, उसका कारण किसी गठजोड़ में हुई चूक और कहीं बेकार उम्मीदवार उतारना नहीं था. इस स्तर का परिणाम किसी रणनीति या पैंतरे से नहीं रोका जा सकता है. इसके लिए गहराई में जाकर पड़ताल करना आवश्यकता है. वह सब कुछ जिसके लिए विपक्ष को कोसा जाता था, जैसे-आक्रामक नहीं होना, लापरवाही का भाव, छुट्टियों पर चले जाना, गठबंधन के लिए उत्सुक नहीं होना आदि- इन सभी पहलुओं को ठीक किया गया था. इसके बावजूद अगर हार मिली है, तो ऐसा उसकी जागरूकता या प्रयास की कमी की वजह से नहीं हुआ है. उससे कहीं अधिक शक्तिशाली शक्तियां उसके सामने थीं.
एक और चीज जो होनी चाहिए, वह है सहयोगी और दोस्तों को इकट्ठा करना. विपक्ष के पास नागरिक समाज, मतलब गैर-सरकारी संगठन जैसे समूह, की सहानुभूति है. ये समूह उन मुद्दो के लिए लड़ते हैं, जो राजनीतिक क्षेत्र में भी हैं. इनमें से कई जमीन से जुड़े संगठन हैं. ये समूह आकलन और पुनर्निर्माण दोनों में मददगार हो सकते हैं.
एक बात यह भी है कि हारनेवाले दलों, खासकर पुरानी पार्टियों को अपने बुनियादी सिद्धांतों की तरफ वापस जाना चाहिए और परीक्षण करना चाहिए कि वर्तमान में पार्टी उन सिद्धांतों से कितनी दूर और कितनी पास है. उसके भीतर कुछ तो ऐसा था, जिसने अपनी तरफ देशवासियों को आकर्षित किया था. कैसे उसे या उसके एक संस्करण को फिर से लोगों के सामने लाया जा सकता है! यह एक अच्छा प्रश्न है, जिसके लिए कुछ चिंतन और समझ की जरूरत होगी.
दूसरी बात यह है कि उत्साह बनाये रखने की जरूरत है. दुनिया के हर हिस्से में नागरिक समाजों और स्वयंसेवी संगठनों को सफलता से कहीं ज्यादा हार का स्वाद चखना पड़ा है. वे गीतों के माध्यम से ऐसा ही करते हैं. स्वयंसेवा किसी उद्देश्य से प्रेरित होती है, लेकिन काम खुशमिजाजी से होना चाहिए और उससे ऊर्जा लेनी चाहिए.
अंतिम बात, गैर-सलाह के इस हिस्से में, एक दिनचर्या की शुरुआत करना है. दिनचर्या अद्भुत चीज है. बस उठना व एक नियत समय पर काम करना और खुद को संगठित करना कुछ चमत्कार कर सकता है. दिनचर्या हमें उन छोटे कदमों को उठाने के लिए तैयार करती है, जिसे हमें उठाना चाहिए, और यह हमारे अंदर विश्वास भरती है कि हम आगे बढ़ रहे हैं.