बीते कुछ वर्षों से कमतर बारिश और सूखे की वजह से देश के ज्यादातर हिस्सों में जल संकट बढ़ता जा रहा है. कुछ हफ्ते पहले केंद्रीय जल आयोग ने जलाशयों के गिरते जलस्तर पर चिंता व्यक्त की थी. बीते एक दशक में जलाशयों में औसत जल संग्रहण में 20 प्रतिशत की कमी आ चुकी है. आज जब देश जल संकट के अब तक के सबसे भयावह दौर के मुहाने पर है, तब मॉनसून-पूर्व बारिश के कम होने से चिंताएं बढ़ गयी हैं. आइआइटी, गांधीनगर द्वारा संचालित सू्खा चेतावनी प्रणाली ने पहले ही बता दिया है कि 40 फीसदी से ज्यादा हिस्से में सूखे के स्पष्ट संकेत उभर रहे हैं.
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गहराता जल संकट
बीते कुछ वर्षों से कमतर बारिश और सूखे की वजह से देश के ज्यादातर हिस्सों में जल संकट बढ़ता जा रहा है. कुछ हफ्ते पहले केंद्रीय जल आयोग ने जलाशयों के गिरते जलस्तर पर चिंता व्यक्त की थी. बीते एक दशक में जलाशयों में औसत जल संग्रहण में 20 प्रतिशत की कमी आ चुकी है. […]
देशभर में मॉनसून-पूर्व बारिश (मार्च से मई माह के बीच) में 23 प्रतिशत की कमी रही है, जो बीते छह वर्षों में सबसे कम है. एक अनुमान के मुताबिक इस बार दक्षिण-पश्चिम मॉनसून केरल में चार से पांच दिन की देरी से दस्तक देगा. बारिश की कमी बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के आंतरिक हिस्सों के लिए समस्या बढ़ा सकती है. मॉनसून के कमजोर रहने का सीधा मतलब खेती के लिए खतरे की आहट.
एक उम्मीद यह है कि अगर प्रशांत महासागर के तापमान में कमी आती है, तो दक्षिण-पश्चिम मॉनसून अवधि का दूसरा हिस्सा बेहतर हो सकता है. अलनीनो के कमजोर रहने का अनुमान भी आशा की एक किरण है. देश के लगभग हर भाग में लगातार बढ़ते जा रहे जल संकट से निपटने के लिए हमें जल स्रोतों और जलाशयों, भूजल तथा सिंचाई संसाधनों का विवेकपूर्ण और उचित उपयोग सीखना होगा. बीते दशक में जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक गतिविधियों और उपभोग की बदलती आदतों से वैश्विक स्तर पर जल की खपत हर साल एक फीसदी की दर से बढ़ रही है.
जलवायु परिवर्तन और औसत तापमान में बढ़ोतरी की वजह से भी कई क्षेत्रों में सूखापन बढ़ रहा है. दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और हैदराबाद समेत देश के 20 से अधिक शहरों में भूजल स्तर की गिरावट समस्याग्रस्त भविष्य का स्पष्ट संकेत है. नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगले एक वर्ष में जलसंकट की इस समस्या से 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे, वहीं 2030 तक देश की 40 प्रतिशत आबादी इस गंभीर समस्या की चपेट में होगी. इस आसन्न संकट से निपटने के लिए ठोस पहल की जानी चाहिए.
सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं को प्राथमिकता, सूखा प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देने, वर्षा जल का संग्रहण और पौधारोपण जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा देना होगा. जल प्रबंधन, कृषि, शहरी नियोजन और पारिस्थितिकी संरक्षण के लिए भी बड़े स्तर पर मुहिम चलानी होगी. पानी के संरक्षण, संग्रहण और उपयोग पर व्यापक नीति बनाने तथा केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय पर ध्यान दिये बिना जल संकट का दीर्घकालिक समाधान नहीं हो सकता है.
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