काम का दबाव

विश्व व्यापार संगठन ने ‘बर्नआउट’ को मानसिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में चिह्नित किया है. कार्यस्थल के लगातार दबाव से समुचित ढंग से छुटकारा नहीं पाने के कारण ‘बर्नआउट’ की स्थिति पैदा होती है. शोधार्थियों का कहना है कि यह आधुनिक समाज के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी उन समस्याओं में है, जिनके बारे में बहुत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 31, 2019 2:44 AM

विश्व व्यापार संगठन ने ‘बर्नआउट’ को मानसिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में चिह्नित किया है. कार्यस्थल के लगातार दबाव से समुचित ढंग से छुटकारा नहीं पाने के कारण ‘बर्नआउट’ की स्थिति पैदा होती है. शोधार्थियों का कहना है कि यह आधुनिक समाज के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी उन समस्याओं में है, जिनके बारे में बहुत चर्चा हुई है.

कुछ पेशेवर समूहों में तो ‘बर्नआउट’ की पैठ 69 फीसदी तक है. इसके मुख्य लक्षणों में ऊर्जा की कमी या थकान, अपने काम से मानसिक दूरी बढ़ना या उसके प्रति नकारात्मक भाव आना तथा पेशेवर क्षमता में कमी प्रमुख हैं. आखिरकार इस महीने समस्या के रूप में चिह्नित होने के बाद इससे परेशान लोग अब चिकित्सकीय सहायता और सलाह ले सकेंगे. अर्थव्यवस्था और नगरीकरण के तीव्र विस्तार के कारण भारत में भी विभिन्न पेशेवर समूहों की संख्या और प्रतिस्पर्धा का दबाव निरंतर बढ़ रहा है.
एडमिनिस्ट्रेटिव साइंस क्वाॅर्टरली में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, हमेशा काम पर लगे रहने की संस्कृति लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को तो प्रभावित कर ही रही है, इससे काम की गुणवत्ता और उत्पादकता में भी बढ़ोतरी नहीं हो रही है. रहन-सहन के क्षेत्र में सिग्ना द्वारा जारी अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण में भी भारतीय पेशेवरों पर तनाव के नुकसानदेह असर को रेखांकित किया गया है. निर्धारित समय से अधिक काम करने से भले ही पेशेवरों को अधिक भत्ते या प्रोन्नति जैसे लाभ मिले हों, परंतु मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य खराब हुआ है.
वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में बताया गया था कि लगभग 15 फीसदी वयस्कों को चिकित्सकीय सलाह और मदद की दरकार है. एक चिंताजनक संकेत यह भी है कि पुरुषों से कहीं अधिक कामकाजी महिलाएं ज्यादा तनाव में पायी गयीं. बेहतर काम करने का दबाव और नौकरी से निकाले जाने का डर इस तनाव का सबसे बड़ा कारण होता है. सर्वेक्षण के अनुसार, समस्या के समाधान के लिए प्रबंधन या रोजगारदाता की ओर से किये गये इंतजाम से कर्मचारी संतुष्ट नहीं हैं.
संतोषजनक है कि कुछ बड़ी कंपनियां इस दिशा में प्रभावी प्रयास कर रही हैं तथा सिग्ना सर्वेक्षण ने भारत को उन देशों की सूची में रखा है, जहां हालात बेहतर हो रहे हैं. इसी सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि 10 में से नौ भारतीय तनाव से ग्रस्त हैं. विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक, भारत में आत्महत्या या आत्महत्या के प्रयास के मामले भी हर साल बढ़ रहे हैं. इन समस्याओं के बारे में जागरूकता कम होने के कारण भी मुश्किल आती है.
परेशान व्यक्ति परिवार, मित्रों और सहकर्मियों से इस बाबत चर्चा करने में हिचकता है. उम्मीद है कि राष्ट्रीय नीति में मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने से स्थिति सुधरेगी. प्रशिक्षित सलाहकारों की संख्या बढ़ाने और कंपनियों द्वारा उनका सहयोग लेने की दिशा में गंभीरता से पहल की जानी चाहिए. मानसिक स्वास्थ्य को बहाल रखने के लिए काम के साथ आराम और रचनात्मक गतिविधियों के संतुलन पर जोर देना होगा.

Next Article

Exit mobile version