सारा दोष महिलाओं पर ही क्यों?
आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. वे निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास कर रही हैं और इस पथ पर उन्हें कामयाबी भी हासिल हो रही है, लेकिन इस कामयाबी में उन्हें वह सम्मान नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वो हकदार हैं. समाज में महिलाओं के […]
आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. वे निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास कर रही हैं और इस पथ पर उन्हें कामयाबी भी हासिल हो रही है, लेकिन इस कामयाबी में उन्हें वह सम्मान नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वो हकदार हैं. समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराध तो रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं.
रात हो या दिन, महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं. घर से बाहर निकलते वक्त उनके अंदर एक ही डर समाया रहता है कि क्या वह सही-सलामत वापस घर लौट पायेंगी? इन बढ़ते अपराधों पर अब तक सरकार और उसके खोखले कानून कोई लगाम नहीं लगा पाये हैं. उल्टा महिलाओं को ही लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं. कोई उनके परिधान को दोषी ठहराता है तो कोई उनके चरित्र को, लेकिन अत्याचायिों को कोई कुछ नहीं कहता. ऐसा क्यों?
दिव्या सिन्हा, बारीडीह, जमशेदपुर