बेनजीर हैं बेगूसराय और कन्हैया
मंत्रिमंडल गठन के बाद पूरा देश मोदी का कायल है. वहीं कन्हैया की आशातीत असफलता लोकतंत्र का दूसरा पहलू है. बेगूसराय नजीर है, जिससे लोकतंत्र की दशा और दिशा का आकलन किया जा सकता है. मोदी ने जातिवादी विभिन्नता में एकता के प्रयोग से लोकतंत्र को जीवंत बना दिया है. वहीं कन्हैया ने जातिवाद और […]
मंत्रिमंडल गठन के बाद पूरा देश मोदी का कायल है. वहीं कन्हैया की आशातीत असफलता लोकतंत्र का दूसरा पहलू है. बेगूसराय नजीर है, जिससे लोकतंत्र की दशा और दिशा का आकलन किया जा सकता है. मोदी ने जातिवादी विभिन्नता में एकता के प्रयोग से लोकतंत्र को जीवंत बना दिया है.
वहीं कन्हैया ने जातिवाद और संप्रदायवाद से ऊपर उठ कर कई मानवीय मुद्दों को राजनीति का विषय बना कर पराजय को गले लगाया. विचारों की मौत नहीं होती. इस आशा से डूबती नाव पर सवार कन्हैया की जिजीविषा लोकतंत्र का एक बेनजीर प्रयोग है. हालांकि कन्हैया के राजनीतिक जीवन के डूबे सूरज का सवेरा कब होगा, कहना मुश्किल है, पर उनकी जिद का कायल कौन नहीं?
मतदाताओं के संदेश से हम सभी वाकिफ हैं. कन्हैया के सम्यक विरोध के बावजूद बेगूसराय में उनकी जबर्दस्त हार आज लोकतंत्र में मोदी के लिए प्रेरणा स्रोत है. पूरा देश बेगूसराय की लहर से अपने आपको अछूता नहीं रख पाया.
डॉ प्रदीप कुमार सिंह, रामगढ़