भाषा की विविधता कायम रहे

क्या प्रस्तावित त्रिभाषा शिक्षा नीति में जोर-जबर्दस्ती से काम लेने का प्रावधान है? दक्षिण के राज्य तो इसे अपने क्षेत्रीय भाषा पर चोट के रूप में लेने लगे हैं. केंद्र सरकार भले ही यह कहे कि यह अभी ड्राफ्ट की शक्ल में है, फिर भी दक्षिण के राज्यों को इस पर अपनी राजनीति चमकाने का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 4, 2019 5:56 AM
क्या प्रस्तावित त्रिभाषा शिक्षा नीति में जोर-जबर्दस्ती से काम लेने का प्रावधान है? दक्षिण के राज्य तो इसे अपने क्षेत्रीय भाषा पर चोट के रूप में लेने लगे हैं.
केंद्र सरकार भले ही यह कहे कि यह अभी ड्राफ्ट की शक्ल में है, फिर भी दक्षिण के राज्यों को इस पर अपनी राजनीति चमकाने का मौका मिला गया है. स्थानीय भाषा के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेजी को अनिवार्य करने के विचार मात्र से अहिंदी भाषी लोग परेशान होने लगे हैं. यह राष्ट्रवादी नीति के तहत उठाया गया कदम प्रतीत हो रहा है.
आजादी के पहले, 1937 में भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने तमिलनाडु में हिंदी को थोपने का प्रयास किया था, जिसका जम कर विरोध हुआ था. आजादी के बाद नेहरू ने फिर से प्रयास किया, मगर तुरंत बैकफुट पर आ गये. उसी विरोध में तमिलनाडु से कांग्रेस का वर्चस्व खत्म होना और द्रविड़ियन पार्टियों का उदय होना शुरू हुआ.
हमारे संविधान में यह कहीं नहीं लिखा है कि हिंदी एक राष्ट्रीय भाषा है, बल्कि इसे आधिकारिक भाषा बताया गया है. विविधता में ही एकता है. एकरूपता की कोई जरूरत नहीं. हम अब तक एक थे, हैं और रहेंगे. इसलिए भाषाई विविधता को संकुचित करने की सोच सरकार को मन से निकाल देनी चाहिए.
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर

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