पारा शिक्षकों, बीआरपी-सीआरपी तथा अल्पसंख्यक विद्यालयों के 4200 शिक्षकों को चार माह से मानदेय नहीं मिल रहा. टेट पास शिक्षकों की भरती नहीं हो पा रही है. मैट्रिक पास कर छात्र इंटर में चले गये, कुछ जगहों पर इंटर की कक्षाएं भी शुरू हो गयीं, पर मैट्रिक की कॉपी जांचने का मानदेय अब तक नहीं बंटा. इंटर की कॉपी जांचने के मानदेय का भुगतान भी आधा-अधूरा है.
किसानों को सब्सिडी पर बीज उपलब्ध नहीं हैं. यही नहीं, मुख्यमंत्री दाल-भात योजना तथा कन्यादान योजना बंद हैं. बिजली फ्रेंचाइजी को लेकर मामला झारखंड उच्च न्यायालय में लटका है. कुल मिला कर, सरकार के परफॉरमेंस से यह जाहिर होता है कि कल्याणकारी योजनाएं हों या कोई और क्षेत्र, सरकार कुछ भी करने से बच रही है. ऐसा लगता है, मानो वह विस्मृति का शिकार हो. पिछले दिनों केंद्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री पीयूष गोयल ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखा.
केंद्र को राज्य को यह याद दिलाना पड़ता है कि झारखंड राज्य बिजली बोर्ड की एक इकाई झारखंड ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) के मासिक बिल का भुगतान नहीं कर रही. और यह भी कि 31 मार्च 2013 तक 4370 करोड़ रुपये का बकाया बढ़ कर 30 जून 2014 तक सूद समेत 7425 करोड़ रुपये हो गया. केंद्र को याद दिलाना पड़ रहा है कि बकाये के भुगतान में देरी से एक संयुक्त उद्यम (डीवीसी) के कर्मियों के वेतन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. सीधे तौर पर देखें, तो यह सरकार की उदासीनता का मामला लगता है. लेकिन, यह भी संभव है कि जिन कामों को लेकर सरकार उदासीन है, वे उसकी प्राथमिकता सूची में ही न हों.
वैसे, जिस सरकार के सिर पर आसन्न चुनाव की छाया मंडरा रही हो, उसके ऊपर अच्छा प्रदर्शन करने का एक अलग ही दबाव रहता है. सवाल उठता है कि जो सरकार अपनी जिम्मेवारियों और कार्य निष्पादन को लेकर इतनी उदासीन है कि याददिहानी के लिए केंद्र सरकार को उसे पत्र लिखना पड़ता है और असहाय जनता को सड़क पर उतरना पड़ता है, उसका भविष्य क्या है. वैसे, लुंज-पुंज प्रदर्शन करनेवाली किसी सरकार को अपनी आयु को लेकर कोई गलतफहमी भी नहीं होनी चाहिए.