वैदिक प्रकरण:एक राष्ट्रीय नखरा

।। आकार पटेल ।। वरिष्ठ पत्रकार इस छोटी सी नौटंकी ने ब्रिक्स देशों के सम्मेलन के लिए मोदी की ब्राजील यात्रा और चीनी राष्ट्रपति से उनकी महत्वपूर्ण मुलाकात से लोगों का ध्यान हटा दिया. महान नेता की नवीनतम विजयों पर कहीं कोई चर्चा नहीं है. चाय की प्याली में तूफान या बात का बतंगड़ जैसे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 17, 2014 6:18 AM

।। आकार पटेल ।।

वरिष्ठ पत्रकार

इस छोटी सी नौटंकी ने ब्रिक्स देशों के सम्मेलन के लिए मोदी की ब्राजील यात्रा और चीनी राष्ट्रपति से उनकी महत्वपूर्ण मुलाकात से लोगों का ध्यान हटा दिया. महान नेता की नवीनतम विजयों पर कहीं कोई चर्चा नहीं है.

चाय की प्याली में तूफान या बात का बतंगड़ जैसे मुहावरे इस मामले पर बड़े सटीक बैठते हैं. वेद प्रताप वैदिक ने जो विवाद खड़ा किया है, उससे सबसे अधिक खुश वही होंगे.

जून में पाकिस्तान गये 12-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल में मेरे साथ पत्रकार वैदिक भी थे. प्रतिनिधिमंडल के बाकी लोग तो तीन दिन बाद ही वहां से लौट आये, लेकिन वैदिक कई सप्ताह के लिए वहीं ठहर गये. इस दौरान वे कई लोगों से मिले, जिनमें, हाफिज सईद, जिनसे मिलने के चाहे उनके जो भी कारण रहे हों, भी थे.

भारत लौट कर वेद प्रताप वैदिक ने बताया कि हाफिज सईद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान यात्रा का विरोध नहीं करेंगे और उन्होंने (सईद ने) मोदी की पत्नी के बारे में भी पूछा. मुङो समझ में नहीं आता कि इस तरह की बातें किसी साक्षात्कार के दौरान क्यों आयीं! बहरहाल, यह कोई खास मसला नहीं है.

वेद प्रताप वैदिक का कहना है कि वे एक पत्रकार हैं और जिससे वे मिलना चाहते हैं, उससे मिलने के लिए स्वतंत्र हैं. मैं इससे सहमत हूं और मुङो यह भी समझ में नहीं आता कि इस पर इतना शोरगुल क्यों मचा हुआ है. मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने लिखा है, हंगामा है क्यूं बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है?

समाचार चैनल इस मसले पर बदहवास हो चले और जैसा कि वहां अक्सर होता है, हल्ला मचने लगा. मैं एक टीवी बहस में शामिल था, जिसमें इस कोने से उस कोने तक लोग चिल्ला रहे थे और 40 मिनट का निर्धारित समय बिना कोई मतलब की बात किये निकल गया. संसद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज व रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने वैदिक के क्रियाकलापों की निंदा की और लोकसभा में दो दिनों तक हंगामा होता रहा. पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायुक्त, जो कि एक भले और मिलनसार व्यक्ति हैं, को रिपोर्ट भेजने का आदेश दिया गया है कि क्या उन्हें वैदिक की गतिविधियों की जानकारी थी (उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं थी).

चुनाव के बाद मैदान से निकले मुक्केबाज, जिस पर मुक्कों के प्रहार का असर अब भी दिख रहा हो, की तरह दिखनेवाले राहुल गांधी ने कहा कि वैदिक का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा होना चिर-परिचित तथ्य है. वास्तविकता यह है कि ऐसा नहीं है. वैदिक कहते हैं कि हिंदुत्ववादी संगठनों और व्यक्तियों के करीब है, सबसे अधिक रासपुतिन की तरह दिखनेवाले बाबा रामदेव के, लेकिन वे संघ के पर्चीधारी सदस्य नहीं हैं.

इन सबके बावजूद सेवानिवृत्त हो चुके रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के प्रमुख और सेना के जनरल हमें यह बता रहे हैं कि एक पुराने चर्चा में रहना पसंद करनेवाले से दूसरे चर्चा में रहना पसंद करनेवाले की मुलाकात के क्या रणनीतिक खतरे हो सकते हैं.

जैसा मैंने पहले कहा है, इस सर्कस से सबसे अधिक खुशी वैदिक को ही हो रही होगी, क्योंकि वे चर्चा के केंद्र में हैं और वे यही चाहते हैं. उन्हें दुनिया को यह बताने का मौका मिला है कि पहले भी संसद में उनको लेकर हंगामा हो चुका है, 1960 के दशक में जब अफगानिस्तान पर उनकी पीएचडी के शोध-प्रबंध को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने खारिज कर दिया था, क्योंकि वह हिंदी में लिखी गयी थी.

टाइम्स नाउ के अर्नब गोस्वामी ने उन्हें डपटते हुए कहा था- ‘आज आप एक भी सवाल का जवाब नहीं दे सकते और बस अपना बायो-डेटा ही पढ़ते रहें’. लेकिन, अर्नब, यही तो वैदिक भी चाहते थे और इसके लिए उन्हें एक घंटा देने के लिए आपको धन्यवाद! वेद प्रताप वैदिक को बड़े-बड़े नाम गिनाने और अपने को बढ़ा-चढ़ा कर बताने के नुकसानहीन जुनून के लिए 48 घंटे मिले.

दूसरी चीज, जिसने मीडिया को भड़का दिया, वह थी वेद प्रताप वैदिक द्वारा पाकिस्तान के डॉन न्यूज को दिया गया इंटरव्यू. इसमें उन्होंने कहा कि कश्मीर स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अव्यावहारिक है, लेकिन भारत और पाकिस्तान द्वारा उसे हरसंभव आजादी दी जानी चाहिए. इस बहुत समझदारी भरी बात कहने में क्या हर्ज है? लेकिन चैनलों पर चल रहे उन्माद के लिए वेद प्रताप वैदिक का यह बयान भी असहनीय था. मेरे जैसे एक टिप्पणीकार के लिए यह सब देखना बड़ा शर्मनाक है, जो उन सब चीजों के बारे में लिखता रहा है, जो देश के लिए ठीक नहीं हैं और जिनसे देश परेशान है.

आश्चर्यजनक रूप से इस मामले के सनसनीखेज बनने के एक दिन पहले वैदिक ने मुङो फोन किया था. 13 जुलाई की सुबह उन्होंने फोन कर कहा कि उन्हें पिछले सप्ताह का मेरा कॉलम पसंद आया था और वे इसे ‘नरेंद्र’ और ‘अमित’ को दिखायेंगे. निश्चित रूप से यह सही है कि वे कई बड़े नेताओं को जानते हैं और बड़ी अच्छी तरह से जानते हैं. वैदिक ‘नवाज’ से मिलने पाकिस्तान गये थे.

चाहे जितनी अच्छी जान-पहचान हो, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वेद प्रताप वैदिक से बहुत नाराज होंगे. इस छोटी सी नौटंकी ने ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन के लिए मोदी की ब्राजील यात्रा और चीन के राष्ट्रपति से उनकी महत्वपूर्ण मुलाकात से लोगों का ध्यान हटा दिया. महान नेता की नवीनतम विजयों पर कहीं कोई चर्चा नहीं है. ध्यान रहे, नरेंद्र मोदी जिस बात को सबसे अधिक नापसंद करते हैं, वह है उनका चर्चा में न रहना.

मुङो इस बात की प्रसन्नता है कि भारतीय जनता पार्टी इस फालतू मसले पर आरोपों के निशाने पर है. विपक्ष में रहते हुए भाजपा भी ऐसे बेतुके मामले नियमित रूप से उठाया करती थी. उदाहरण के रूप में, भाजपा द्वारा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर के एक पाकिस्तानी टेलीविजन के कार्यक्रम में शामिल होने पर हंगामा करना, जिसमें हाफिज सईद ने कॉल कर अपनी बात कही थी, या फिर तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे द्वारा इस पाकिस्तानी को ‘श्री हाफिज सईद’ कहने पर (क्या यह अच्छे संस्कार का परिचायक नहीं है?) शोर-शराबा करना आदि-आदि.

अब इस राष्ट्रीय नखरे का सामना करने की बारी भारतीय जनता पार्टी की है जिसे हम पूरी दुनिया के सामने प्रदर्शित कर रहे हैं. हंसती हुई दुनिया के सामने एक बार फिर शर्मसार होते हुए.

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