संतुलित नीतिगत दृष्टि
देश का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीति आयोग की शासकीय परिषद की बैठक में अपनी प्राथमिकताओं को रेखांकित किया है. हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था संतुलित गति से विकासशील है, परंतु आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय कारकों के कारण वृद्धि दर बाधित हुई है. इस अवरोध से पार पाने के लिए उन्होंने राज्यों […]
देश का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीति आयोग की शासकीय परिषद की बैठक में अपनी प्राथमिकताओं को रेखांकित किया है. हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था संतुलित गति से विकासशील है, परंतु आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय कारकों के कारण वृद्धि दर बाधित हुई है. इस अवरोध से पार पाने के लिए उन्होंने राज्यों से प्रमुख क्षमताओं को चिह्नित कर जिले के स्तर से सकल घरेलू उत्पादन को बढ़ाने का आह्वान किया है.
जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है, पांच वर्षों में अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर के स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य चुनौतीपूर्ण अवश्य है, पर असंभव कतई नहीं. ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के सूत्र को साकार कर आर्थिक विकास हासिल किया जा सकता है.
इसके लिए रोजगार और आय बढ़ाने के प्रयासों पर ध्यान देने की आवश्यकता है. इसके लिए निर्यात में बढ़ोतरी के लिए पहलकदमी करनी होगी. हाल के समय में निर्यात में अपेक्षित बढ़त नहीं होने तथा आयात अधिक होने से व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है. यह देशी उद्योगों, रुपये की कीमत और विदेशी मुद्रा भंडार के लिए चिंताजनक है.
अमेरिकी संरक्षणवादी नीतियों, शुल्कों को लेकर भारत और चीन से उसकी तकरार तथा दुनिया के विभिन्न हिस्सों में राजनीतिक व वाणिज्यिक अनिश्चितताओं ने जहां भारत के कुछ मुश्किलें पैदा की हैं, वहीं व्यापारिक संभावनाओं के द्वार भी खोले हैं.
ऐसे में, जाहिर है, अगर केंद्र और राज्य सरकारें साझा उत्साह से घरेलू उत्पादन को बढ़ाने की कोशिश करती हैं, तो नतीजे सकारात्मक हो सकते हैं. इस प्रयास में घरेलू मोर्चे पर बहुत कुछ किया जाना है. इस संदर्भ में शासन को क्षमतावान, पारदर्शी और अपेक्षाओं पर खरे उतरने योग्य बनाने पर प्रधानमंत्री का जोर सराहनीय है.
लंबे समय से जारी कृषि संकट से निबटने के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाये हैं, लेकिन इस मामले में संरचनात्मक सुधार के लिए अब एक विशेष कार्य बल गठित किया जा रहा है. इसी के साथ जल संरक्षण और प्रबंधन पर ध्यान देने तथा हर गांव तक आगामी पांच सालों में पीने का पानी पहुंचाने का लक्ष्य एक महत्वपूर्ण पहल है. आज भी हमारे देश की बहुत बड़ी आबादी जीविका के लिए खेती और उससे जुड़े व्यवसायों पर निर्भर है.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए फसल की उचित कीमत के साथ सिंचाई और पेयजल का इंतजाम जरूरी है. कमजोर मॉनसून, भूजल के स्तर में कमी तथा भयानक गर्मी के कारण आज लगभग आधे देश में सूखे की स्थिति है. इन मसलों पर केंद्र सरकार की कोशिशों के साथ राज्यों को मिल-जुल कर काम करना चाहिए.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बेहतरी से न सिर्फ घरेलू मांग को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि निर्यात बढ़ाने में भी मदद मिलेगी. इसी तरह से स्वास्थ्य-संबंधी पहलों में भी राज्यों को सहभागिता करनी चाहिए. नीति आयोग की बैठक में राज्यों की चिंताओं और सुझावों पर भी आयोग और केंद्र सरकार को पूरा ध्यान देना चाहिए. संघीय सहकार की भावना ही देश को विकास और समृद्धि की राह पर अग्रसर कर सकती है.