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कर चोरों पर नकेल

आर्थिक अपराधों पर अंकुश लगाना वित्तीय व्यवस्था को सुदृढ़ करने की अनिवार्य शर्त है. बीते वर्षों में अर्थव्यवस्था को औपचारिक और पारदर्शी बनाने की दिशा में सरकार ने ठोस प्रयास किया है. इस क्रम में अब कर चोरों से कड़ाई से निपटने की तैयारी हो रही है. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने कुछ विशेष प्रकार […]

आर्थिक अपराधों पर अंकुश लगाना वित्तीय व्यवस्था को सुदृढ़ करने की अनिवार्य शर्त है. बीते वर्षों में अर्थव्यवस्था को औपचारिक और पारदर्शी बनाने की दिशा में सरकार ने ठोस प्रयास किया है. इस क्रम में अब कर चोरों से कड़ाई से निपटने की तैयारी हो रही है.
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने कुछ विशेष प्रकार की कर चोरी, जैसे कि विदेशों में काला धन जमा करना, के मामलों में नये निर्देश जारी किया है. सोमवार से लागू हुए इन नियमों से भारी शुल्क या अर्थदंड देकर आर्थिक अपराधों से बरी होने की परिपाटी का अंत हो जायेगा. अभी तक ऐसा होता था कि विदेशी बैंकों में जमा अघोषित रकम या रखी गयी संपत्ति का खुलासा होने पर दोषी व्यक्ति आर्थिक दंड के रूप में बड़ी धनराशि सरकार को देकर अपराधमुक्त हो जाता था. हालांकि, 2015 के काला धन निरोधी कानून में चक्रवृद्धि हिसाब से रकम देकर बरी होने पर पूरी तरह रोक लगा दी गयी थी, परंतु उसमें भी 30 फीसदी कर तथा भारी अर्थदंड का प्रावधान है.
अब कर चोरी कर बाहर धन भेजनेवालों को कर और उसके ब्याज के हिसाब से पैसा जमाकर बच निकलने का रास्ता बंद कर दिया है. वैसे कुछ मामलों में बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार वित्त मंत्री को दोषी को छूट देने का अधिकार होगा. यह पहल सरकार और संबद्ध विभागों द्वारा उठाये जा रहे कदमों का एक हिस्सा है.
अप्रैल में भारत ने अमेरिका से एक करार किया है, जिसके तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा कर चोरी रोकने का प्रावधान है. अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं, जिनमें एक से अधिक देशों में सक्रिय कंपनियां कानूनों की अवहेलना कर किसी और देश की कमाई को ऐसे देशों में दिखा देती हैं, जहां करों की दरें बहुत कम हैं.
ऐसी कंपनियों द्वारा कर चोरी को रोकने के लिए विकसित अर्थव्यवस्थाओं के समूह के बहुपक्षीय समझौते पर भी भारत ने हस्ताक्षर किया है. इसके तहत अभी 90 देश वित्तीय खातों और कर संबंधी सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं. भारत उन देशों में है, जहां आयकर और अन्य प्रत्यक्ष कर देनेवालों की संख्या आबादी के अनुपात में बहुत कम है. ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जो पर्याप्त आमदनी के बावजूद कर नहीं देते हैं.
रिपोर्टों के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष के पहले दिन यानी एक अप्रैल से सरकार ने ऐसे लोगों की सूचना जुटाने की एक परियोजना शुरू की है. इसमें सोशल मीडिया और अन्य स्रोतों से व्यक्ति द्वारा बतायी गयी आमदनी से अधिक खर्च पर नजर रखने का इंतजाम किया जा रहा है. अभी तक सूचना तकनीक के विपुल डेटा भंडार से ऐसी जानकारी जुटाने की व्यवस्था बेल्जियम, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ ही देशों में है.
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद भी कर चोरी रोकने के नियमों को कड़ा करने की कोशिश में है. ऐसे उपायों से न सिर्फ सरकार का राजस्व बढ़ेगा और सार्वजनिक खर्च के लिए अधिक राशि उपलब्ध होगी, बल्कि अर्थव्यवस्था की गति और पारदर्शिता में बढ़ोतरी होगी.

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