फेक न्यूज की मुश्किल
पिछले कुछ सालों में इंटरनेट, सोशल मीडिया और स्मार्ट फोन के व्यापक विस्तार के साथ फर्जी खबरों, अफवाहों व अपुष्ट सूचनाओं के प्रसार में भी तेजी आयी है. इस बारे में परंपरागत एवं डिजिटल माध्यमों में लगातार चर्चा और चेतावनी के बावजूद भारत समेत अनेक देशों में यह समस्या गंभीर होती जा रही है. इंटरनेट […]
पिछले कुछ सालों में इंटरनेट, सोशल मीडिया और स्मार्ट फोन के व्यापक विस्तार के साथ फर्जी खबरों, अफवाहों व अपुष्ट सूचनाओं के प्रसार में भी तेजी आयी है. इस बारे में परंपरागत एवं डिजिटल माध्यमों में लगातार चर्चा और चेतावनी के बावजूद भारत समेत अनेक देशों में यह समस्या गंभीर होती जा रही है. इंटरनेट सोसायटी और संयुक्त राष्ट्र वाणिज्य एवं विकास सम्मेलन के सहयोग से सेंटर फॉर इंटरनेशनल गवर्नेंस इनोवेशन की ओर से कराये गये इपसॉप के सालाना सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि 85 फीसदी लोग फर्जी खबरों के झांसे में आकर उन पर भरोसा कर चुके हैं.
यह सर्वेक्षण पिछले साल दिसंबर और इस साल फरवरी के बीच हुआ था तथा इसमें 25 देशों के 25 हजार से अधिक इंटरनेट इस्तेमाल करनेवाले लोगों की राय ली गयी थी. इसमें पाया गया है कि सर्वाधिक फेक न्यूज फेसबुक के जरिये फैलाया जाता है, लेकिन इसके लिए यूट्यूब, ट्विटर और ब्लॉग का इस्तेमाल भी धड़ल्ले से किया जा रहा है.
दिलचस्प है कि सूचनाओं का फर्जीवाड़ा फैलाने के लिए लोगों ने सबसे ज्यादा दोष अमेरिका, रूस और चीन को दिया है. इस संदर्भ में हमें भारत में इस चुनौती का संज्ञान तत्परता से लेना चाहिए. सरकारी विभागों से लेकर समाचार माध्यमों ने नागरिकों को लगातार चेताया है कि इंटरनेट के रास्ते, खा सकर व्हॉट्सएप से, खतरनाक अफवाहें और गलतबयानी की जाती है.
फेसबुक के स्वामित्व के अंतर्गत आनेवाले व्हाॅट्सएप का सबसे बड़ा बाजार भारत है, जहां 20 करोड़ से अधिक लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. अक्सर इस प्लेटफॉर्म का फर्जीवाड़ा फेसबुक पर भी पहुंचता है. फेक न्यूज और अफवाह किस हद तक भयावह हो सकते हैं, इसका उदाहरण 2017 और 2018 में भीड़ द्वारा पीट कर की गयी हत्याओं में देखा जा सकता है. उसका एक स्वरूप राष्ट्रनिर्माताओं और सार्वजनिक जीवन में सक्रिय प्रतिष्ठित व्यक्तियों के बारे में अभद्र सूचनाओं का आदान-प्रदान है.
इपसॉप के सर्वे में ऐसे कई अन्य अध्ययनों में इंटरनेट इस्तेमाल करनेवाले लोगों ने अपने डेटा और निजी सूचनाओं की रक्षा पर भी चिंता जतायी है. व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक गतिविधियों एवं व्यवहार को प्रभावित करनेवाले फेक न्यूज को रोकने के लिए सरकारें, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और बड़ी टेक कंपनियां चिंतित भी हैं तथा उन्होंने कुछ ठोस पहलकदमी भी की है, परंतु इंटरनेट की बेहतरी के लिए सक्रिय कई कार्यकर्ताओं और पर्यवेक्षकों का मानना है कि टेक कंपनियां तत्परता और क्षमता से कार्रवाई नहीं कर रही हैं.
फेसबुक और गूगल भले ही खुद को टेक्नोलॉजी कंपनी कह कर फेक न्यूज रोकने की पूरी जवाबदेही लेने में कोताही कर रही हों, पर यह सरकारों की राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है कि वे इन कंपनियों पर कितना दबाव बना पाती हैं? इस संबंध में मीडिया, सामाजिक व राजनीतिक संगठनों और नागरिकों को भी सचेत रहना चाहिए तथा जागरूकता बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए.