स्वास्थ्य, समरसता हेतु अपनाएं योग

एम वेंकैया नायडू उपराष्ट्रपति delhi@prabhatkhabar.in आज 21 जून, 2019 को जब विश्व के 170 से भी अधिक देशों में पांचवां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है. यह एक ऐसा अवसर है, जब प्राचीन भारत की इस अनमोल देन तथा अमूर्त वैश्विक विरासत के इस अनूठे हिस्से की महत्ता पर सम्यक विचार किया जाना चाहिए. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 21, 2019 3:01 AM

एम वेंकैया नायडू

उपराष्ट्रपति
delhi@prabhatkhabar.in
आज 21 जून, 2019 को जब विश्व के 170 से भी अधिक देशों में पांचवां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है. यह एक ऐसा अवसर है, जब प्राचीन भारत की इस अनमोल देन तथा अमूर्त वैश्विक विरासत के इस अनूठे हिस्से की महत्ता पर सम्यक विचार किया जाना चाहिए.
योग, जिसे विभिन्न रूपों में पूरे विश्व में अपनाया गया है और जिसकी लोकप्रियता में सतत वृद्धि हो रही है, एक ऐसी पुरातन शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्रिया है, जिसका जन्म भारत में संभवतः पांचवीं सदी ईसा पूर्व में हुआ. यह एक प्रभावी व्यायाम ही नहीं, उससे अधिक भी बहुत कुछ है.
यह स्वास्थ्य लाभ की एक सम्यक विधि है, जो शरीर एवं मन के मध्य के महत्वपूर्ण संबंध को मान्यता देती है. योग ‘संतुलन’ एवं ‘समभाव,’ ‘शांति,’ ‘स्थिर प्रज्ञा’ तथा ‘सुघड़ता’ को लक्षित करता है. यह उत्कृष्टता, संश्लेषण एवं समरसता के संधान की सर्वोत्कृष्ट अभिव्यक्ति तथा भारतीय विश्व-दृष्टि का एक मुखर प्रतिमान है.
योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसका अर्थ ‘जुड़ना’ या ‘जोड़ना’ होता है. योग का विज्ञान शरीर एवं मन से शुरू करके मानवीय अस्तित्व के विभिन्न पहलुओं को जोड़ता है. भारतीय ऋषियों ने बल देकर शारीरिक स्वास्थ्य को एक स्वर से मानवीय उन्नति का पहला अहम पड़ाव माना है- शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम् यानी शरीर ही धर्म का साधन है.
यह मानते हुए कि योग स्वास्थ्य एवं खुशहाली का एक संपूर्ण मार्ग है तथा यह भी कि योग साधना के लाभों के विषय में सूचनाओं का व्यापक प्रसार वैश्विक आबादी के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होगा, संयुक्त राष्ट्रसंघ ने अपने प्रस्ताव संख्या 69/131 के द्वारा 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी.
हम अप्रत्याशित दिशाओं में अभूतपूर्व परिवर्तनों की महान चुनौतियों के काल में जी रहे हैं. हम जिस तरह जीते, सीखते, काम करते और आनंद लेते हैं, उसमें तेजी से बदलाव हो रहे हैं. प्रौद्योगिकी के जरिये जीवनशैलियों का रूपांतरण हो रहा है. हम आर्थिक प्रगति एवं समृद्धि के अपने अथक प्रयास में, सुविधा एवं आराम की बढ़ोतरी में, अपनी जानकारी तथा दक्षता की वृद्धि में और मनोरंजन एवं शिक्षा विषयक अपने विकल्पों की व्यापकता में अहम प्रगति हासिल कर रहे हैं, मगर जब वैश्विक समुदाय ने वर्ष 2015 में अपने विकास के एजेंडे का खाका खींचना आरंभ किया, तो उसने यह महसूस किया कि ‘विकास’ का एक बड़ा हिस्सा हमसे छूट रहा है. तब एक संतुलन की जरूरत महसूस की गयी.
गरीबों तथा खुद पृथ्वी का ख्याल रखने की जरूरत थी. ‘समग्र राष्ट्रीय उत्पाद’ के साथ ही ‘समग्र राष्ट्रीय प्रसन्नता’ की आवश्यकता अनुभूत की गयी. आत्यंतिकता, प्रकृति के अंधाधुंध दोहन और अत्यधिक उपभोग से बचने की जरूरत थी. तब सतत वहनीयता (सस्टेनेबिलिटी) नया मंत्र बनी, जिसके केंद्र में ‘संतुलन’ हो. और योग यह बताता है कि कैसे शारीरिक स्वास्थ्य से शुरू कर हम सभी क्षेत्रों में संतुलन साध सकते हैं.
प्राचीन भारत की उत्कृष्ट कृति भगवद्गीता की दो महत्वपूर्ण उक्तियां हैं: योगस्थः कुरु कर्माणि (अपने कर्तव्य योग की दृष्टि से करें) तथा समत्वं योग उच्यते (समत्व को ही योग कहते हैं). योग जीवन का ऐसा तरीका है, जो शारीरिक संतुलन, मानसिक समभाव तथा पर्यावरण संरक्षण सहित विभिन्न तत्वों के समरस संश्लेषण के लिए कार्य करने पर केंद्रित है. इसलिए यह सर्वथा उचित ही है कि वर्ष 2019 के अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का विषय ‘जलवायु विषयक क्रियाकलाप’ है.
योग के लाभों को धीरे-धीरे पूरे विश्व में समझा जाने लगा है. अब, जबकि विश्व महामारियों के दौर से निकल उस ओर बढ़ रहा है, जहां समग्र रोग भार में गैर-संचारी रोग वर्गों का अनुपात बढ़ता जा रहा है, यह महत्वपूर्ण हो चला है कि मनुष्य व्यक्तिगत स्तर पर अधिक स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों का चयन कर जीवनशैली के ऐसे प्रतिमानों का अनुपालन करे, जो उत्तम स्वास्थ्य का पोषण करते हों.
जैसा हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के विशेषज्ञों ने माना है, आसन, श्वास-प्रश्वास, गहरा विश्राम तथा ध्यान जैसे अपने चार अवयवों के साथ योग स्वास्थ्य पर खासा सकारात्मक असर डालता है. चूंकि योग हमारे शरीर की कई प्रणालियों पर एक साथ काम करता है, हार्वर्ड के शोधकर्ताओं ने यह दर्ज किया कि यह प्रतिरक्षण प्रणाली मजबूत करता एवं मधुमेह की दवाओं की जरूरत में 40 प्रतिशत तक की कमी ला देता है. यह सचमुच अत्यंत संतोष का विषय है कि योग के द्वारा भारत पूरी पृथ्वी के करोड़ों लोगों के स्वास्थ्यवर्धन में अपना योगदान कर रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी ज्ञान के इस भंडार को साझा करने के इस विराट आयोजन का नेतृत्व कर रहे हैं. यह तथ्य कि मोदीजी के नेतृत्व की सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र में प्रायोजित इस प्रस्ताव को एक साथ 177 देशों ने सह-प्रायोजित किया, योग की सार्वभौमिक स्वीकार्यता के साथ ही वैश्विक स्वास्थ्य के समर्थन हेतु भारत की इच्छा का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करता है.
उपराष्ट्रपति का पदभार संभालने के पश्चात विभिन्न राष्ट्रों के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों की बेहतरी के लिए मैं उन देशों के दौरे करता रहा हूं. मुझे यह देख कर सुखद विस्मय हुआ कि योग पूरे विश्व में अत्यंत लोकप्रिय हो चुका है. अमेरिका समेत कई देशों के स्कूली पाठ्यक्रमों में योग को एक विषय के रूप में शामिल किया गया है. योग केवल स्वास्थ्य एवं खुशहाली के लिए ही नहीं ‘ध्यान’ तथा ‘उत्कृष्टता’ के लिए भी अहम है. जैसा गीता कहती है, योगः कर्मसु कौशलम् (कर्म में कुशलता योग है).
इस प्रकार, योग चिंतन, व्यवहार, सीखने तथा समस्याओं को सुलझाने का एक तरीका है. यह हमें हमारे बाह्य पर्यावरण से जोड़ने तथा विचार एवं व्यवहार के सकारात्मक समन्वय का एक अनोखा मार्ग है. यह स्थिरता लाता है, योग्यता बढ़ाता है एवं मित्रभाव का वर्धन करता है. यह सतत वहनीयता का एक प्रभावी आधार बन सकता है.
इस पांचवें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर मैं प्राचीन भारत के ऋषियों की इस कालजयी सार्वजनीन प्रार्थना से भारत तथा विश्व के लोगों का अभिनंदन करना चाहता हूं: सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत् यानी सभी जन सुखी और स्वस्थ हों, सभी रोगमुक्त रहें, सभी सर्वत्र शुभता के दर्शन करें और किसी को भी दुख न भोगना पड़े.(अनुवाद : विजय नंदन)

Next Article

Exit mobile version