डॉक्टर भगवान होते हैं !
मिथिलेश कु राय रचनाकार mithileshray82@gmail.com पहले मैं विकास जी को धार्मिक समझता था. वह रोज स्नान के बाद टीका लगाते थे और कुछ देर आसन पर आंखें बंद कर बैठे रहते थे. उनका विचार सात्विक था. उनकी बातों में शांति, अहिंसा, मानवता और करुणा होती थी. मुझे लगता था कि ऐसे लोगों के पास ईश्वर […]
मिथिलेश कु राय
रचनाकार
mithileshray82@gmail.com
पहले मैं विकास जी को धार्मिक समझता था. वह रोज स्नान के बाद टीका लगाते थे और कुछ देर आसन पर आंखें बंद कर बैठे रहते थे. उनका विचार सात्विक था. उनकी बातों में शांति, अहिंसा, मानवता और करुणा होती थी. मुझे लगता था कि ऐसे लोगों के पास ईश्वर को लेकर एक एहसास जैसा कुछ होता है, लेकिन विकास जी ने ईश्वर के बारे में कभी कुछ नहीं बताया.
एक दिन उन्होंने कहा कि ईश्वर तो है, लेकिन ईश्वर उस रूप में है या नहीं, जिस रूप में हम उसे विभिन्न धार्मिक स्थलों में पूजते हैं, यह मैं नहीं जानता. मैं ध्यान में अपने चित्त की शांति के लिए उतरने की कोशिश करता हूं. ललाट पर चंदन का टीका मस्तक को शीतल रखता है. स्वास्थ्य ठीक रहे, इसके लिए पेट नरम, पैर गरम और सिर को ठंडा रखने की बात हमारे पूर्वज बता गये हैं.
विकास जी ने कहा कि अगर आप ईश्वर के बारे में जानना चाहते हैं, तो इसके लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. ईश्वर यहीं हम सब के बीच रहते हैं. उन्होंने कहा कि आपने गौर नहीं किया है क्या, मनुष्य ही अपने नेक कर्मों से ईश्वर बनता रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि ईश्वर एक पवित्र पदवी की तरह होता है. उनका मानना था कि उन्हें ऊपर का कुछ भी पता नहीं है. लेकिन इस धरती पर डॉक्टर साक्षात देवता हैं.
विकास जी एक घटना सुनाते हैं. उनकी पत्नी गर्भवती थीं. पता नहीं क्या हुआ कि लोग दबी जुबान में यह कह रहे थे कि जच्चा और बच्चा को अब कोई भगवान ही बचा सकता है. सब ने हाथ खड़े कर दिये थे, लेकिन डॉक्टरों ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने लगभग मर चुके उस बच्चे और उसकी मां में जीवन फूंक दिया. उस दिन बात समझ में आयी कि ईश्वर कौन है और उसका रूप कैसा होता है.
ईश्वर की बात छिड़ते ही विकास जी यह कहने लगते हैं कि हमने जो ईश्वर गढ़े हैं, हो सकता है कि उनकी नजर में सब बराबर हों, लेकिन हमने ईश्वर गढ़ने के साथ ही अपनी सुविधा के लिए उसे अलग-अलग रूप में बांट दिया, जैसे कि हम खुद हैं, लेकिन डॉक्टर ने मनुष्य को एक समान रखा.
एक डॉक्टर का ध्येय हमेशा से यह रहा कि शारीरिक कष्टों के कारण मनुष्य की खुशहाली में जो रुकावटें आयी हैं, उन्हें दूर किया जाये. इसके लिए डॉक्टर ने कभी भी सबसे सुंदर और सबसे वीभत्स मनुष्यों में भेद नहीं किया. डॉक्टर ने अपने पास आये मरीजों से सिर्फ परेशानी पूछी, कभी किसी से जाति-धर्म के बारे में नहीं पूछा. उन्होंने मरणासन्न को जीवनदान दिया और मरीज के परिजनों के साथ ही उनके होठों पर भी मुस्कुराहट आयी.
यह सब बताते हुए विकास जी भाव-विह्वल हो जाते हैं. तब मुझे कक्का का वह कथन याद आ जाता है कि धरती पर डॉक्टर ही भगवान हैं. ऊपर का उन्हें कुछ भी नहीं पता. एक बार अखिल ने मुझसे कहा था कि उन्होंने ईश्वर को देखा भी है. सबने देखा है, लेकिन सबके मन में किसी और ही ईश्वर की अवधारणा है. इसलिए लोग देखे हुए को भूल जाते हैं. जरूरतमंदों की मदद करनेवाले ईश्वर जैसे ही होते हैं!