मानसून ने काफी तरसाने के बाद अब झारखंड पर थोड़ी कृपा की है. राज्य के तकरीबन हर इलाके में पिछले दो दिनों से रुक-रुक कर या फिर तेज बारिश हो रही है. पानी के लिए सबसे ज्यादा तरस रहे चतरा और पलामू जिलों में भी बारिश का आगाज हो गया है. लेकिन अभी यह उस मात्र में नहीं हो रही है कि धरती की प्यास बुझ सके और किसानों के चेहरे चमक उठें.
धान की रोपाई भी पूरे राज्य में काफी पिछड़ गयी है. फिर भी किसान अपने स्तर से सिंचाई का प्रबंध करके कुछ इलाकों में धान रोप रहे हैं. सरकारी स्तर पर भी राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अधिकारियों के साथ उच्चस्तरीय बैठक की और निर्देश दिया कि जिन इलाकों में बारिश कम हो रही है या अब भी हुई ही नहीं है, वहां के लोगों की मदद की तैयारी शुरू कर दी जाये. हालांकि सरकार ने फैसला किया है कि सुखाड़ घोषित करने से पहले 31 जुलाई तक का इंतजार कर लिया जाये. मुख्यमंत्री ने हालांकि इस दौरान मुख्य सचिव को संबंधित विभागों के साथ तालमेल करके समन्वय के साथ स्थिति पर पैनी नजर रखने की सलाह भी दी है.
मानसून में हुई देरी के चलते राज्य के ग्यारह जिलों में अब तक धान की रोपाई शुरू भी नहीं हो पायी है. यह हाल अकेले झारखंड का ही नहीं है. अषाढ़ में मानसून ने पूरे देश को जम कर तरसाया है. लेकिन अब सुखद पहलू यह है कि सावन शुरू होने के बाद से मानसून ने गति पकड़ी है और सभी इलाकों में बारिश हो रही है. पिछले कई सालों से अषाढ़ महीने में प्राय: यही हो रहा है. इस दौरान राज्य के कुछ इलाकों में बारिश भले हो जाये, लेकिन चतरा, पलामू और गढ़वा जैसे जिले प्यासे ही रह जाते हैं.
इनकी प्यास सावन में ही बुझती है, जब बारिश की झड़ी लग जाती है. राजधानी रांची समेत राज्य के अधिकांश हिस्सों में हो रही बारिश से देर से ही सही, काफी राहत मिली है. सूखते कुओं में फिर से पानी आ गया है. नदी-नालों में भी रवानी आयी है. हालांकि बेतरतीब शहरीकरण से कई स्थानों पर जलभराव की समस्या भी पैदा होने लगी है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सावन में झारखंड में इतनी बारिश होगी कि मानसून में देरी का सारा कोटा पूरा हो जायेगा. हो रही बारिश से सब तरफ खुशी और उल्लास का वातावरण है. तो सावन जरा झूम के बरसो.