कश्मीर में उम्मीद
केंद्र सरकार और सुरक्षा बलों की लगातार कोशिशों के बावजूद कश्मीर में हिंसा रोकने की चुनौती बनी हुई है. ऐसे में गृह मंत्री अमित शाह के दौरे से यह इंगित होता है कि उनके एजेंडे में कश्मीर ऊपर है. इस दौरे से उम्मीदें इस वजह से भी बढ़ गयी हैं कि अलगाववादियों ने किसी तरह […]
केंद्र सरकार और सुरक्षा बलों की लगातार कोशिशों के बावजूद कश्मीर में हिंसा रोकने की चुनौती बनी हुई है. ऐसे में गृह मंत्री अमित शाह के दौरे से यह इंगित होता है कि उनके एजेंडे में कश्मीर ऊपर है. इस दौरे से उम्मीदें इस वजह से भी बढ़ गयी हैं कि अलगाववादियों ने किसी तरह के बंद या विरोध का आयोजन नहीं किया. तीन दशकों से अशांत घाटी में ऐसा पहली बार हुआ है. आतंकियों के हाथों मारे गये लोगों के परिजनों तथा विभिन्न समुदायों और संगठनों के प्रतिनिधियों से गृह मंत्री की मुलाकात से भी भरोसे बनाने में मदद मिलेगी.
साल 2014 से ही कश्मीर घाटी में विकास की गति तेज करने तथा लोकतांत्रिक भागीदारी बढ़ाने के प्रयास जारी हैं. फिर भी, 2018 में दस सालों में सबसे अधिक मौतें हुई थीं और यह सिलसिला इस साल भी जारी है. इस महीने की 17 तारीख तक दो सौ से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. हालांकि, इन आंकड़ों में आतंकियों की तादाद बहुत है, फिर भी सुरक्षाकर्मियों और नागरिकों की जानें भी जा रही हैं. यह भी सच है कि पाकिस्तान द्वारा पाले-पोसे और बरसों से चल रहे आतंकवाद से निजात पाने में अभी वक्त लगेगा.
एक तरफ गृह मंत्री ने जहां विकास कार्यों की समीक्षा की है, वहीं उन्होंने आतंक के खिलाफ सख्त रवैया बरकरार रखने का भी निर्देश दिया है. कश्मीर समस्या का समाधान निकलने की दिशा में प्रगति की आशा बंधने का एक आधार जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल का बयान है कि अलगाववादी समूह हुर्रियत बातचीत के लिए तैयार है.
हुर्रियत के रुख में बदलाव के अनेक कारण हैं. भारत के कूटनीतिक प्रयासों से पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. पाकिस्तान को आर्थिक तबाही से बचाने में मदद दे रही संस्थाएं भी कह रही हैं कि वह अपनी धरती पर सक्रिय चरमपंथी और हिंसक गिरोहों पर लगाम लगाये. अलगाववाद और आतंकवाद के विरुद्ध केंद्र की कठोर नीतियों ने भी हुर्रियत को यह अहसास दिला दिया है कि उनके पास बातचीत के अलावा विकल्प नहीं बचा है. इस साल सौ से अधिक आतंकियों का सफाया तथा अलगाववादी नेताओं पर जांच का कसता शिकंजा केंद्र के रवैये के साफ संकेत हैं.
सुरक्षा कारणों से लोकसभा चुनाव के साथ राज्य विधानसभा के चुनाव नहीं हो सके थे. अब चुनाव आयोग इसके लिए तैयार है. हुर्रियत को यह भी अहसास है कि राज्य में निर्वाचित सरकार स्थापित होने के बाद बातचीत का हिसाब बदल जायेगा तथा कश्मीरियों का प्रतिनिधित्व करने का उसका दावा और भी कमजोर पड़ जायेगा.
पाकिस्तानी आतंकियों के खिलाफ घाटी के लोगों में असंतोष बढ़ता जा रहा है और आम कश्मीरी अपने युवाओं को हिंसा की राह में भटककर मौत के मुंह में जाते नहीं देखना चाहता है. नौजवानों के बड़े हिस्से को भी विकास में भविष्य नजर आ रहा है. बदलते हालात में कश्मीर में बदलाव की बयार बह सकती है और गृह मंत्री शाह के दौरे को इसकी शुरुआत माना जा सकता है.