पानी ने उतारा पानी

सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार drsureshkant@gmail.com पानी अगर नहीं होता, तो अच्छे-भले का पानी उतार देता है और अगर होता है, तो पानी-पानी कर देता है. देश में दोनों ही तरह के नजारे देखने को मिल जाते हैं. हालांकि, वे नजारे नहीं, हादसे होते हैं, फिर भी उन्हें नजारा इसलिए कहना पड़ता है, क्योंकि मुख्यमंत्री वगैरह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 5, 2019 7:17 AM

सुरेश कांत

वरिष्ठ व्यंग्यकार

drsureshkant@gmail.com

पानी अगर नहीं होता, तो अच्छे-भले का पानी उतार देता है और अगर होता है, तो पानी-पानी कर देता है. देश में दोनों ही तरह के नजारे देखने को मिल जाते हैं. हालांकि, वे नजारे नहीं, हादसे होते हैं, फिर भी उन्हें नजारा इसलिए कहना पड़ता है, क्योंकि मुख्यमंत्री वगैरह हेलीकॉप्टर में बैठ कर उनका नजारा लेने ही जाते हैं. शायद उन्हें पता होता है कि अन्य तरीकों से देखने जाने पर वे हादसानुमा नजारे या नजारानुमा हादसे अपमानित महसूस कर नजर आने से मना कर सकते हैं.

पैदल देखने आने का तो शायद वे बहुत ही ज्यादा बुरा मानते हैं, यही कारण है कि कोई भी मंत्री उन्हें पैदल देखने जाने की सोचता भी नहीं. ऐसे में वे हेलीकॉप्टर बनानेवाले के और बनानेवाले से भी ज्यादा उसे उपलब्ध करवानेवाले के बहुत एहसानमंद होते हैं और यह सोच कर कांप उठते हैं कि ये न होता, तो वे अपनी प्यारी जनता को सूखाग्रस्त या बाढ़पीड़ित हालत में कैसे देख पाते. उसका यह एहसान वे जिंदगीभर नहीं भूलते और मौका मिलते ही उतारने की कोशिश करते हैं.

देश में पहले यह नजारा आम होता था कि कहीं बाढ़ ने रंगत बढ़ायी हुई है, तो कहीं सूखा अपनी छटा बिखेर रहा है. लेकिन अब हालत बदल गयी है और सभी जगहों पर एक-साथ पहले सूखे और फिर बाढ़ के दर्शन होने लगे हैं. कुछ समय पूर्व तक जहां लोग बूंद-बूंद पानी के लिए गहरे गड्ढों में उतरते दिखते थे या गधों पर दूर-दूर से पानी लादकर लाते नजर आते थे, वहीं अब इतना पानी बरस रहा है कि ‘गयी भैंस पानी में’ नामक मुहावरे के अनुसार, जिसके पास भैंस नहीं भी है, उसकी भी भैंस पानी में चली जा रही है.

कई जगहों पर तो लोगों ने घरों के बाहर ‘पानी नहीं है’ के पोस्टर चिपका दिये थे. यह संदेश अपने लिए था या औरों के लिए, पता नहीं. शायद दोनों के लिए ही रहा होगा. अपने लिए इसलिए कि ध्यान रहे कि पानी नहीं है और उसका इंतजाम करना है, और दूसरों के लिए इसलिए कि वे पानी मांगने न आ जाएं. मेहमानों को उन्होंने खास तौर से सूचित कर रखा था कि वे गलती से भी आने की गलती न करें, क्योंकि पानी नहीं है.

परिवार के सदस्यों को खाना खाते समय, अगर घर में खाना हो तो, हिचकी तक लेने की मनाही थी, क्योंकि न केवल उस हालत में पानी की ज्यादा जरूरत पड़ जाती है, बल्कि वह किसी के द्वारा याद किये जाने का भी संकेत होता है, जिससे यह डर लगना स्वाभाविक है कि याद करते-करते कहीं वह खुद भी न आ धमके.

उन्हीं जगहों पर अब इतना पानी बरस रहा है कि लोगों को उनके घरों और उनके बाहर चिपके पोस्टरों समेत बहाये लिये जा रहा है.

एक जगह तो पानी रोकने के लिए बनाया गया बांध तक टूट गया और अपने बनाये जाने का प्रयोजन भूल कर पानी रोकने के बजाय पानी छोड़ने लगा. कुछ जगहों पर कारें और बसें सड़कें छोड़ पानी में चलने लगीं, लोकल ट्रेनें भी पानी पर चलती देखी गयीं. यह देख अमेरिका और जापान सहित सभी देश हैरत में पड़ गये हों, तो आश्चर्य नहीं. कुछ भी हो, भारत को इसकी तकनीक उन्हें देने पर राजी नहीं होना चाहिए.

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