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आर्थिक सर्वेक्षण का अनुमान

संदीप बामजई आर्थिक मामलों के जानकार sandeep.bamzai@gmail.com आर्थिक सर्वे एक प्रकार से एक दस्तावेज है, जो केंद्रीय बजट से एक दिन पहले संसद के पटल पर रखा जाता है. यह दस्तावेज बताता है कि क्या करना चाहिए. क्या-क्या हुआ और क्या-क्या होगा, इन बातों को यह दस्तावेज नहीं बताता है. इसलिए कल संसद में पेश […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 5, 2019 7:21 AM
संदीप बामजई
आर्थिक मामलों के जानकार
sandeep.bamzai@gmail.com
आर्थिक सर्वे एक प्रकार से एक दस्तावेज है, जो केंद्रीय बजट से एक दिन पहले संसद के पटल पर रखा जाता है. यह दस्तावेज बताता है कि क्या करना चाहिए. क्या-क्या हुआ और क्या-क्या होगा, इन बातों को यह दस्तावेज नहीं बताता है.
इसलिए कल संसद में पेश हुए आर्थिक सर्वेक्षण से बस अंदाजा लगाने से कुछ नहीं होगा कि बजट में ये होगा, वो होगा. बजट सही मायने में कितना जनकल्याणकारी है, हर वर्ग और समुदाय के लिए राहत देनेवाला है, उसमें अमीर-गरीब के बीच संतुलन दिख रहा है, आदि बातों के लिए बजट से ही उम्मीद की जा सकती है, आर्थिक सर्वेक्षण के अनुमानों से नहीं. कुल मिला कर आर्थिक सर्वेक्षण एक तस्वीर पेश करता है कि सरकार को क्या-क्या करना है. बहरहाल, आर्थिक सर्वेक्षण में जो भी मुख्य बातें सामने आयीं हैं, उनके बारे में कुछ चर्चा तो होनी ही चाहिए.
आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की गति ठीक रहेगी और इसे आठ प्रतिशत तक रखने की कोशिश की जायेगी. भारत की अर्थव्यवस्था अभी 2.6 ट्रिलियन डॉलर की है, जिसे साल 2024-25 तक दोगुनी यानी पांच ट्रिलियन डॉलर तक करने की बात आर्थिक सर्वे में की गयी है. यह इतना आसान नहीं है. इसके लिए बहुत बड़े आर्थिक सुधार की जरूरत पड़ेगी और सबसे पहले उपभोग बढ़ाना होगा, क्योंकि यहां उपभोग बहुत धीमी गति से चल रहा है.
अर्थव्यवस्था का स्वरूप ऐसा बनाना पड़ेगा, ताकि उपभोग शुरू हो सके. पूंजी निवेश बढ़ाना होगा. भारत अपनी अर्थव्यवस्था का 62-63 प्रतिशत हिस्सा देश के भीतर ही उपभोग करता है. इन सब चीजों के मद्देनजर देखें, तो भारत में बहुत अच्छा आर्थिक और वाणिज्यिक माहौल बनाने की जरूरत है, जो उपभोग को धक्का दे सके और अर्थव्यवस्था की गति को बढ़ा सके.
भारत में बचत की दर, जो सरकारें और जनता अपनी कमाई से बचाती हैं, पिछले बीस साल के सबसे निचले स्तर पर है. भारत में बीस साल पहले बचत की यह दर 36 प्रतिशत थी, लेकिन आज यह गिर कर 20-21 प्रतिशत पर रह गयी है. ऐसे में कहां उम्मीद है कि लोग उपभोग के लिए अपने हाथ खोलेंगे. ऐसे में अगर भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि को आठ प्रतिशत का आंकड़ा छूना है, तो उपभोग को जबर्दस्त तरीके से धक्का देना पड़ेगा. इसके लिए पूंजी निवेश बढ़ाना पड़ेगा और बाजार को थोड़ा खोलना पड़ेगा.
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि तेल के दाम में गिरावट का अनुमान है, तो यह मुमकिन नहीं लगता है, क्योंकि कोई भी अनुमान अगर दूसरे की गतिविधियों पर निर्भर है, तो उस पर अनुमान सटीक हो, यह संभव ही नहीं है.
अभी तो फिलहाल ठीक चल रहा है, लेकिन कल को ईरान और अमेरिका के बीच युद्ध छिड़ जाता है या फिर तेल वाले देशों में कोई और संकट आ जाता है, तो यह कैसे संभव है कि तेल की कीमतें कम होंगी या बढ़ जायेेंगी? यहां बैठ कर अनुमान लगाना आसान है, लेकिन सचमुच क्या होनेवाला है, उस पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है.
आर्थिक सर्वेक्षण में यह बात भी कही गयी है कि हर साल 97 लाख तक श्रम बल (वर्किंग फोर्स) बढ़ेगा. यह भी अगर अनुमान है, तो इसके लिए भी सरकार को बजट में कुछ करना होगा. श्रम बल अपने आप नहीं बढ़ता, बल्कि उसके लिए अवसरों को बढ़ाना होगा. अब यह बात तो बजट में ही पता चलेगा कि सरकार श्रम बल बढ़ाने के लिए क्या करनेवाली है.
आर्थिक सर्वेक्षण में बहुत-सी बातें कही गयी हैं, बहुत-सी चीजों पर अनुमान लगाया गया है, लेकिन मेरा अनुमान है कि यह सरकार जनकल्याणकारी योजनाओं को लेकर आयेगी.
जन आरोग्य, जन सौभाग्य और जन कल्याण की सारी योजनाओं में सरकार पैसे खर्च करेगी. वह चाहे प्रधानमंत्री किसान योजना हो या प्रधानमंत्री सड़क योजना हो या फिर आम जन के लिए प्रधानमंत्री के नाम से जुड़ी सभी योजनाओं में पैसा लगाया जायेगा.
हालांकि, भारत का राजस्व घाटा इससे बढ़ जायेगा, लेकिन फिर भी सरकार पैसे खर्च करेगी. इसके लिए भले उसे दूसरी योजनाओं में कटौती करनी पड़े या फिर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से लेना पड़े. यानी मनरेगा जैसी बड़ी योजना में से कुछ राशि काट कर दूसरी नयी जनकल्याणकारी योजना में लगाया जा सकता है.
जिस तरह से साल 2014 के बाद मोदी सरकार ने एक से बढ़ कर एक जनकल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लगा दी थी, जिसके दम पर वे दोबारा सत्ता में आये, ठीक उसी तरह इस बार भी वे ऐसा ही कुछ करनेवाले हैं.
हर बार जब बजट पेश होता है, तो मिडिल क्लास यानी मध्य वर्ग सबसे ज्यादा ध्यान देता है कि उसके लिए क्या राहत की बात होनेवाली है, क्योंकि वह टैक्स चुकाता है. लेकिन हर बार उसे निराशा हाथ लगती है. इस बार भी मध्य वर्ग के लिए कुछ खास बड़ी राहत नहीं मिलनेवाली है, क्योंकि एनडीए की दूसरी बार सत्ता में आने का यह पहला साल है, अभी यह जनकल्याणकारी नीतियों पर ही ज्यादा जोर देगी.
एक बहुत महत्वपूर्ण बात है कि देश में जब भी आम चुनाव का साल आता है, तो उसके ठीक पहले पेश होनेवाले अंतरिम बजट में सरकार वोट ऑन एकाउंट (लेखानुदान) देती है और सरकार कोई बड़े नीतिगत फैसले लेने से बचती है और फिर चुनाव संपन्न होकर जब नयी सरकार का गठन हो जाता है, तब जुलाई में वास्तविक बजट पेश करती है, लेकिन इस बार मोदी सरकार ने लेखानुदान को एक बजट के रूप में ही पेश कर दिया था, इसलिए अब नयी सरकार के पास गुंजाइश कुछ कम हो गयी कि वह अब नयी योजनाओं में क्या खर्च करे और कहां से खर्च करे? इसलिए अब जो आज का बजट हमारे सामने है, इसमें विकल्प कम दिख रहे हैं.
मैंने सुना है कि इस विकल्पहीनता से निबटने के लिए सरकार सोच रही है कि एसेट मोनेटाइजेशन करने की यानी जो सरकारी कंपनियां ठप पड़ी हैं, उनके पास अरबों की जमीन पड़ी हुई है, उसे बेच कर सरकार पैसे इकट्ठा करेगी और फिर उसको जनकल्याणकारी योजनाआें पर खर्च करेगी. अब आज सरकार को बताना होगा कि अगले नौ महीने में यानी अगले बजट से पहले सरकार क्या करनेवाली है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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